पटना: उधर लालू-राबड़ी को जमानत मिली है। इधर, महागठबंधन में महाभारत का आलम है। बड़े तामझाम से महागठबंधन के साथ जेडीयू का सांठगांठ हुआ था। एक दूसरे का साथ कभी न छोड़ने का सभी ने संकल्प लिया था। लेकिन सात-आठ महीने में ही महागठबंधन के दो प्रमुख घटक दलों- आरजेडी और जेडीयू नेताओं के बीच जिस तरह की तनातनी दिखती रही है, उससे नहीं लगता है कि साथ न छोड़ने का संकल्प पूरा हो पाएगा। जेडीयू विधायकों की संख्या भले ही महागठबंधन में दूसरे नंबर पर है, लेकिन वह सर्वाधिक सदस्यों वाले आरजेडी से खुद को कमतर नहीं आंकता। आरजेडी विधायक सुधाकर सिंह और कार्तिकेय सिंह के मंत्री पद से इस्तीफे के साथ ही आरजेडी और जेडीयू में तनातनी का दौर शुरू हो गया था, जो अब आरजेडी कोटे से शिक्षा मंत्री बने चंद्रशेखर के विरोध तक आ गया है।
रामचरितमानस पर चंद्रशेखर के बयान से खफा है जेडीयू
जेडीयू उसी दिन से भड़का हुआ है, जब शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर ने नालंदा ओपन यूनिवर्सिटी के दीक्षांत समारोह में रामचरितमानस को लेकर विवादास्पद बयान दिया था। जेडीयू ने न सिर्फ इसका आधिकारिक तौर पर विरोध किया, बल्कि सीएम नीतीश कुमार ने ऐसे बयान से परहेज की सलाह चंद्रशेखर को दी। चंद्रशेखर ने नीतीश को पलट कर जवाब दिया कि वे अपने स्टैंड पर कायम हैं। बीच-बीच में वे अपनी बातें जहां-तहां दोहराते भी रहे कि रामचरितमानस नफरत फैलाने वाला ग्रंथ है। हद तो तब हो गयी, जब चंद्रशेखर रामचरितमानस लेकर विधानसभा पहुंचे। उन्होंने विधानसभा में शिक्षा विभाग के बजट पर चर्चा के दौरान रामचरित मानस का मुद्दा घुसेड़ दिया। अगले दिन विधान परिषद में भी वे रामचरित मानस पर बोलने लगे, जिसका सदन में ही बीजेपी के साथ जेडीयू के सदस्यों ने भी विरोध किया। विरोध करने वालों का तर्क था कि शिक्षा मंत्री को शिक्षा बजट पर चर्चा के दौरान शिक्षा से जुड़ी बातें करनी चाहिए, न कि रामचरितमानस पर। विरोध तब परवान चढ़ा, जब विधान परिषद के सभापति देवेश चंद्र ठाकुर ने शिक्षा मंत्री को बोलने ही नहीं दिया। उन्होंने कार्यवाही स्थगित कर दी।
एमएलसी नीरज कुमार और विधायक संजीव का विरोध
शिक्षा मंत्री के मानस प्रसंग का विरोध जेडीयू के पार्षद नीरज कुमार और विधायक संजीव ने मुखर रूप से किया है। नीरज तो पहले से ही कहते रहे हैं कि चंद्रशेखर हिन्दुओं की आस्था से जुड़े रामायण पर टिप्पणी कर अच्छा नहीं कर रहे। इसके विरोध में उन्होंने हनुमान मंदिर में पूजा-पाठ भी किया था। विधायक संजीव ने तो चंद्रशेखर की योग्यता और समझ पर ही सवाल उठा दिया है। जेडीयू ने भी आधिकारिक तौर पर बयान जारी कर स्पष्ट कर दिया था कि वह ऐसे मुद्दों के खिलाफ है। इन सबके बावजूद आरजेडी ने अपने मंत्री को कभी इसके लिए न टोका और न रोका। इसका मतलब साफ है कि जेडीयू के स्टैंड से आरजेडी इत्तेफाक नहीं रखता।
तेजस्वी यादव से नजदीकी को ढाल बनाया है चंद्रशेखर ने
चंद्रशेखर की तेजस्वी यादव से नजदीकी सर्वविदित है। विवादास्पद बयान प्रकरण के बाद कई कार्यक्रमों में दोनों एक साथ प्रसन्नचित्त मुद्रा में बोलते-बतियाते दिखते रहे हैं। इसी से स्पष्ट है कि आरजेडी को चंद्रशेखर के बयान पर कोई आपत्ति नहीं है। प्रसंगवश यह बताना भी उचित है कि इस मुद्दे पर आरजेडी में भी एक राय नहीं है। प्रदेश कार्यालय में राष्ट्रीय उपाध्यक्ष शिवानंद तिवारी ने चंद्रशेखर के बयान को यह कह कर खारिज किया कि इसे पार्टी का स्टैंड नहीं माना जाना चाहिए। इसलिए कि इस पर पार्टी में कोई चर्चा ही नहीं हुई है। लेकिन शिवानंद तिवारी की बातों से प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह असहमत थे।
नीतीश के खिलाफ बोलते रहे सुधाकर सिंह, कार्रवाई नहीं हुई
महागठबंधन में खटपट के दूसरे कारक बने हैं आरजेडी विधायक सुधाकर सिंह। वे लगातार नीतीश कुमार और अपनी ही सरकार के खिलाफ बोलते रहते हैं। शिखंडी, हाईटेक भिखमंगा जैसे अनगिनत अशोभनीय शब्दों का इस्तेमाल अब तक सुधाकर सिंह ने नीतीश कुमार के लिए किया है। नीतीश ने इस बारे में उचित निर्णय लेने का जिम्मा आरजेडी पर छोड़ दिया। तेजस्वी यादव ने भी माना था कि सुधाकर सिंह जिस तरह का बयान दे रहे हैं, वह भाजपा की भाषा है। सुधाकर को आरजेडी ने शो काज नोटिस दिया तो लगा कि सच में महागठबंधन में ईमानदारी बरकरार है। पर, अब तक सुधाकर पर किसी तरह की कार्रवाई का न होना, जेडीयू को तो खटक ही रहा है। उपेंद्र कुशवाहा के जेडीयू छोड़ने का आधार भी सुधाकर सिंह का बयान ही बना था।
ईडी-सीबीआई को रोकने के लिए कानून बनाने का दबाव
अब तो आरजेडी ने जेडीयू के सामने नयी चुनौती खड़ी कर दी है। आरजेडी की ओर से नीतीश कुमार पर यह दबाव बढ़ने लगा है कि गैर भाजपा शासित कुछ राज्यों ने जिस तरह किसी के खिलाफ कार्रवाई से पहले सीबीआई और ईडी को सरकार से परमिशन का कानून बनाया है, उसी तरह का कानून बिहार में भी बनना चाहिए। यह आवाज आरजेडी के कद्दावर नेता विधायक भाई वीरेंद्र ने उठायी तो पार्टी के दूसरे नेता भी अब ऐसी ही मांग करने लगे हैं।
सब कुछ सुन-जान कर नीतीश की चुप्पी का राज क्या है
यह सब देख-सुन कर भी नीतीश कुमार ने चुप्पी साध ली है। वे कुछ बोल नहीं रहे। लालू यादव और उनके परिजनों-करीबियों के खिलाफ सीबीआई-ईडी की कार्रवाई पर भी नीतीश कुमार ने संतुलित बयान दिया था। उन्होंने कहा था कि जिनके खिलाफ कार्रवाई हो रही है, वे जवाब दे रहे हैं। वैसे भी नीतीश की चुप्पी बड़ी घातक होती है। अब तक का रिकार्ड यही रहा है कि किसी बड़े फैसले के पहले नीतीश खामोश हो जाते हैं। किसी के साथ जाने या किसी का साथ छोड़ने से पहले वे मौन रहते हैं। अचानक उनका निर्णय होता है, जो सबको अचरज में डाल देता है। इस बार भी कहीं कुछ अप्रत्याशित कर बैठें तो आश्चर्य नहीं।