निर्वाचन में स्वतंत्रता और निष्पक्षता के साथ खजाने का बोझ कम करने की मंशा
निर्वाचन अर्थात जन प्रतिनिधियों का चुनाव प्रतिनिधि लोकतंत्र की सबसे महत्वपूर्ण प्रक्रिया है। यह सर्वविदित है कि भारत प्रतिनिधि लोकतंत्र का सर्वोत्तम उदाहरण है, क्योंकि यह न केवल विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, बल्कि यह सबसे सफल लोकतंत्रों में से भी एक है। भारत में निर्वाचन की एक और बड़ी विशेषता यह भी है कि यहां एक आदर्श संसदीय प्रणाली की भांति प्रत्यक्ष और परोक्ष, दोनों ही प्रकार के निर्वाचन का मिश्रित प्रावधान है।
प्रत्यक्ष लोकतंत्र के लिए हमने फर्स्ट-पास्ट-द-पोस्ट प्रणाली अपनाई है, जिसका अर्थ यह है कि सबसे अधिक वैध मत प्राप्त करने वाला प्रत्याशी विजयी होता है। यह प्रणाली ग्राम पंचायत, राज्यों की विधानसभाओं और लोकसभा के निर्वाचन में प्रयोग में लाई जाती है। दूसरी ओर, अप्रत्यक्ष निर्वाचन के लिए आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के तहत एकल संक्रमणीय पद्धति का प्रयोग जिला परिषद, विधान परिषद, राज्यसभा, राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के निर्वाचन में किया जाता है। यहां यह उल्लेख भी समीचीन होगा कि संरचना की दृष्टि से भारत एक संसदीय परिसंघ है। अतः राज्यों में निर्वाचन भी संसदीय निर्वाचन के समान महत्वपूर्ण है। ऐसी स्थिति में अगर लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं के निर्वाचन को एक साथ (एक तिथि पर या एक निश्चित समय सीमा के भीतर) कराया जाए, तो कदाचित इससे न केवल निर्वाचन की स्वतंत्रता और निष्पक्षता सुनिश्चित हो सकती है, बल्कि राज्य के खजाने पर पड़ने वाले अत्यधिक दबाव को भी कम किया जा सकता है। ‘एक राष्ट्र एक चुनाव’ की अवधारणा के पीछे यही मंशा है। इस रूप में इसकी संरचनात्मक प्रासंगिकता पर प्रश्न चिह्न नहीं लगाया जा सकता।
सितंबर, 2023 में पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक उच्च स्तरीय समिति गठित कर उसे इसकी व्यवहार्यता बताने की जवाबदेही दी गई थी। समिति द्वारा ‘मैक्रोइकनॉमिक इंपैक्ट ऑफ हार्मोनाइजिंग इलेक्टोरल साइकल, एविडेंसेज फ्रॉम इंडिया’ नामक शोध पत्र के आधार पर यह संकेत दिया गया है कि एक साथ चुनाव से उच्च आर्थिक विकास को गति मिलेगी, और पूंजी व राजस्व पर व्यय में सरकारी निवेश अधिक होगा। निर्वाचन आयोग और अन्य अंशधारकों के साथ की गई वार्ताओं से प्रेरित होकर समिति ने जनता से इस विषय पर राय मांगी थी।
हाल ही में एक उत्साहवर्धक आंकड़ा सामने आया है। लगभग 81 प्रतिशत सुझाव ‘एक राष्ट्र एक चुनाव’ के पक्ष में है। निश्चित रूप से सरकार के लिए यह एक बड़ा प्रेरणा स्रोत होगा। लेकिन अब भी मंजिल पाना बहुत सरल नहीं है। एक ओर इसका विरोध करने वालों द्वारा उठाए गए मुद्दों को संबोधित करना आवश्यक है, वहीं दूसरी ओर इसके सांविधानिक पक्षों पर गौर करना भी अनिवार्य है। ध्यातव्य हो कि 1967 तक देश में एक साथ चुनाव कराए जाते रहे थे, लेकिन 1968 और 1969 में कुछ राज्यों की विधानसभाओं के भंग हो जाने के कारण यह परंपरा टूट गई। इस पूरी प्रक्रिया में यही मुद्दा सबसे गंभीर है। इसके अतिरिक्त, इतने बड़े पैमाने पर एक साथ चुनाव कराने के लिए ईवीएम, लॉजिस्टिक समर्थन और अन्य अवसंरचनात्मक सुविधाओं की उपलब्धता भी एक बड़ी चुनौती होगी।
गौरतलब है कि इस प्रस्ताव को सांविधानिक आधार देना सबसे महत्वपूर्ण होगा, जो भारत में संविधान की सर्वोच्चता और विधि के शासन के प्रचलन के अनुरूप होगा। इसके लिए कई सांविधानिक प्रावधानों में संशोधन की आवश्यकता होगी। सबसे पहले, अनुच्छेद 83 और 85, जो क्रमशः संसद के सदनों की अवधि और राष्ट्रपति द्वारा लोकसभा को भंग करने से संबंधित है, में संशोधन की आवश्यकता है। इसी प्रकार, अनुच्छेद 172, जो राज्य विधानमंडलों की अवधि से संबंधित है और अनुच्छेद 174 राज्य विधानमंडलों के विघटन से संबंधित है, में भी संशोधन आवश्यक है। एक और प्रावधान, जिसमें संशोधन की आवश्यकता होगी वह अनुच्छेद 356 है, जो राज्यों में राष्ट्रपति शासन लगाने से संबंधित है। ध्यातव्य हो कि एक संसदीय समिति ने भारत के निर्वाचन आयोग सहित विभिन्न हितधारकों के परामर्श से एक साथ चुनाव के मुद्दे की जांच की थी। इन प्रावधानों में सबसे महत्वपूर्ण अनुच्छेद 83 है, जिसमें भारत के परिसंघीय ढांचे के स्थायित्व के लिए राज्यसभा को तो स्थायी सदन बनाया गया है, लेकिन संसदीय तंत्र और प्रतिनिधि लोकतंत्र की व्यावहारिकता के लिए लोकसभा का पांच वर्षीय कार्यकाल उल्लिखित है। सबसे बड़ी चुनौती यह है कि यदि इसके विघटन पर रोक लगाने का प्रावधान किया जाएगा, तो यह संविधान के विरुद्ध होगा। ऐसी स्थिति में यदि कार्यकाल के पूर्व विघटन की घटना होती है, तो चुनावी चक्र बाधित हो जाएगा। यही स्थिति राज्यों के स्तर पर भी है। उच्च स्तरीय समिति के सामने इसी समस्या का समाधान सबसे महत्वपूर्ण है।
अब यदि विरोधी पक्ष के तर्कों पर बात की जाए, तो यह कहा गया है कि ऐसा कोई भी कदम संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन होगा। साथ ही, इस प्रक्रिया से भारत में क्षेत्रीय हितों की अनदेखी होने की आशंका है, जो परिसंघीय अभिलक्षणों का विरोध करेगी। संविधान के मूल ढांचे के उल्लंघन का तर्क प्रासंगिक प्रतीत नहीं होता, क्योंकि चुनाव एक साथ हों या अलग-अलग, किसी भी स्थिति में वह प्रतिनिधि लोकतंत्र के ही अनुरूप है। सबसे बड़ी बात यह है कि पहले भी जब तक ऐसे चुनाव होते थे, तो आने वाले समय में भी कुछ संशोधनों के माध्यम से ऐसा किया जा सकता है।
दूसरी ओर, जहां तक परिसंघीय ढांचे और क्षेत्रीय हितों का प्रश्न है, इनके भी प्रभावित होने की आशंका नहीं है, क्योंकि यह प्रक्रिया केवल चुनावों के संचालन के लिए है, न कि राजनीतिक दलों के विरुद्ध। क्षेत्रीय राजनीति संबंधित क्षेत्र के हितों के संरक्षण के लिए कटिबद्ध भी है और सक्षम भी। देखना केवल यह है कि जो सांविधानिक और कानूनी (लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1950 और 1951) संशोधन आवश्यक हैं, उनमें तार्किकता का प्रयोग हो। अंत में, यह उल्लेख अत्यंत उपयुक्त है कि भारत का निर्वाचन आयोग इस बात के लिए तैयार है कि वह इस प्रक्रिया के अनुरूप कार्य करेगा, जो ऐसे प्रस्ताव की व्यावहारिकता बनाए रखे हुए है।
चुनाव की दहलीज पर चौतरफा संकट में पाकिस्तान, नई सरकार के लिए भीषण चुनौती पहले से तैयार
पहले भी केंद्र की सत्ता में रह चुकी पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) के अध्यक्ष बिलावल भुट्टो का दावा है कि उनकी पार्टी का चुनावी घोषणा पत्र रोटी, कपड़ा और मकान से ही जुड़ा हुआ है। यदि पीपीपी जीतती है, तो बिलावल ही प्रधानमंत्री का पद संभालेंगे। आम ख्याल यह है कि मतदाता पीपीपी को भरपूर वोट देंगे, क्योंकि इस पार्टी के नेताओं ने बड़ी कुर्बानियां दी हैं और पाकिस्तान के लोग उन्हें भूले नहीं हैं।
पाकिस्तान में आगामी आठ फरवरी को आम चुनाव होने जा रहे हैं, जबकि देश की जनता भारी मुश्किलों में फंसी हुई है। वहां महंगाई आसमान छू रही है। जमाखोरी और मुनाफाखोरी बढ़ रही है। पाकिस्तान पर 63,399 लाख करोड़ रुपये का कर्ज है। चीन के अलावा कहीं और से उसे उधार भी नहीं मिल रहा है। पाकिस्तान ने जिन आतंकियों को पाला है, वे भी सक्रिय हैं। इसके अलावा पाकिस्तान ने भारत, ईरान और अफगानिस्तान जैसे अपने पड़ोसी देशों के साथ रिश्ते खराब कर लिए हैं, जिसके चलते उसकी मुश्किलें बढ़ रही हैं।
बताया जा रहा है कि चुनाव के मद्देनजर इस्लामाबाद की चार यूनिवर्सिटी को भी बंद कर दिया गया है। भारी संख्या में अर्ध सैनिक बल तैनात करके सुरक्षा के कड़े बंदोबस्त किए गए हैं। राजनीतिक पार्टियां जोर-जोर में प्रचार में लगी हुई हैं। पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) के मुखिया इमरान खान जेल में हैं। उनकी पार्टी का चुनाव चिह्न बल्ला छीन लिया गया है। उनके उम्मीदवार स्वतंत्र तौर पर चुनाव लड़ रहे हैं।
पहले भी केंद्र की सत्ता में रह चुकी पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) के अध्यक्ष बिलावल भुट्टो का दावा है कि उनकी पार्टी का चुनावी घोषणा पत्र रोटी, कपड़ा और मकान से ही जुड़ा हुआ है। यदि पीपीपी जीतती है, तो बिलावल ही प्रधानमंत्री का पद संभालेंगे। आम ख्याल यह है कि मतदाता पीपीपी को भरपूर वोट देंगे, क्योंकि इस पार्टी के नेताओं ने बड़ी कुर्बानियां दी हैं और पाकिस्तान के लोग उन्हें भूले नहीं हैं। लेकिन दुनिया भर की निगाहें नवाज शरीफ पर लगी हैं, जिन्हें मुल्क की अदालतों ने भ्रष्टाचार के सभी आरोपों से बरी कर दिया है। बताया जाता है कि पाकिस्तान की सेना अनौपचारिक रूप से नवाज शरीफ का समर्थन कर रही है। यानी सेना किसी भी सूरत में नवाज शरीफ को सत्ता दिलाने की कोशिश करेगी। कुछ समय पहले नवाज शरीफ कह चुके हैं कि ‘कश्मीर का मसला इस्लामाबाद शालीनता के साथ हल करना चाहता है। हमारे देश की समस्याएं न तो भारत की देन हैं और न अमेरिका की। हमने अपने पांव पर खुद ही कुल्हाड़ी मारी है।’ मगर अब नवाज शरीफ की पार्टी मुस्लिम लीग (नवाज) ने जो चुनावी घोषणा पत्र जारी किया है, उसमें भारत से कश्मीर को लेकर अगस्त, 2019 का फैसला वापस लेने के लिए शर्त लगाई है, लेकिन उनकी यह शर्त कभी पूरी नहीं होगी। इस चुनावी गहमागहमी के बीच ईरान से पाकिस्तान की ठन गई है, जबकि कुछ दिनों पहले तक दोनों अच्छे मित्र थे। अचानक पाकिस्तानी आतंकवादियों ने ईरान पर मिसाइल से हमला कर दिया और फिर अगले दिन ईरान ने जवाबी कार्रवाई की। इससे दोनों देशों में जान-माल का भारी नुकसान हुआ। इसके तुरंत बाद दोनों ने इस विवाद को आपसी बातचीत से सुलझाने की घोषणा कर दी। इस घटना से पूरी दुनिया हैरान रह गई, क्योंकि ईरान सरकार को इस साल कई अंतरराष्ट्रीय विवादों से निपटना है।
भारत से तो पाकिस्तान के रिश्ते खराब हैं ही, अफगानिस्तान के साथ रिश्ते भी निचले स्तर पर पहुंच गए हैं। पाकिस्तान में करीब 40 लाख अफगान नागरिक हैं, जिनमें 17 लाख अवैध रूप से रह रहे हैं। पाकिस्तान ने अवैध अफगानियों को वापस भेजना शुरू कर दिया है और अब तक पांच लाख अफगानी वापस भेजे भी जा चुके हैं। चूंकि अफगानिस्तान की तालिबान सरकार के पास भी उनको खिलाने-रखने का माकूल इंतजाम नहीं है, इसलिए दोनों देशों के बीच तल्खी बढ़ी है। इसके अलावा दोनों मुल्कों के बीच तनाव का एक और कारण डूरंड रेखा है। डूरंड रेखा अफगानिस्तान व पाकिस्तान के बीच 2,430 किलोमीटर अंतरराष्ट्रीय सीमा है। पिछली सरकारों की तरह अफगान की मौजूदा सरकार डूरंड रेखा को सीमा के रूप में मान्यता देने की तैयार नहीं है। सीमा पर पाकिस्तानी सैनिकों और तालिबान के बीच अक्सर झड़पें होती रहती हैं। इसे हल किए बगैर दोनों देशों के संबंधों में सुधार नहीं आ पाएगा।
उम्मीद करनी चाहिए कि पाकिस्तान में जो नई सरकार सत्ता में आएगी, वह लोकतंत्र के नाम पर आतंक के घिनौने खेल को इजाजत नहीं देगी और जनता के गंभीर मसलों को दूर करेगी, अन्यथा पाकिस्तान में अस्थिरता व अनिश्चितता जारी रहेगी। अब देखना है कि पाकिस्तान की राजनीति का ऊंट किस करवट बैठता है!
कुष्ठ रोग अनुवांशिक बीमारी नहीं
सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र थानाकलां में राष्ट्रीय कुष्ठ रोग रोधी दिवस पर जिला स्तरीय कार्यक्रम आयोजित किया गया। इसकी अध्यक्षता डॉ. अशोक दढोच ने की। इस दौरान जन शिक्षा एवं सूचना अधिकारी शारदा सारस्वत ने बताया कि 30 जनवरी से 13 फरवरी तक विशेष स्पर्श अभियान चलाया जा रहा है। कुष्ठ रोग को लेकर लोगों और समाज में फैली भ्रांतियों को दूर करने के लिए हर साल जनवरी के अंतिम रविवार को राष्ट्रीय कुष्ठ रोग रोधी दिवस मनाया जाता है।
उन्होंने कहा कि जिला में वर्तमान में नौ प्रवासी मूल के मरीज इस रोग के संक्रमण से ग्रस्त हैं, जिसका उपचार चल रहा है। शारदा सारस्वत ने कहा कि कुष्ठ रोग किसी दैवीय श्राप या पाप से नहीं होता बल्कि माइक्रो बैक्टीरियम लेप्रे नामक जीवाणु से फैलता है। यह कोई अनुवांशिक बीमारी नहीं है। इलाज करवाने से यह पूरी तरह से ठीक हो जाता है। साथ ही अपंगता से भी बचा जा सकता है।
उन्होंने कहा कि माइक्रो बैक्टीरियम लेप्रे जीवाणु त्वचा और स्नायु तंत्र पर प्रभाव डालता है। इस रोग में त्वचा पर सुन्नता के साथ साथ कोई भी दाग, हाथों या पैरों में सुन्नता या झुनझुनापन, दर्दनाक नसें हो तो शीघ्र ही नजदीक के स्वास्थ्य संस्थान में अपनी जांच करवाएं। इसका इलाज सभी स्वास्थ्य संस्थानों में निशुल्क किया जाता है। एमडीटी इसका पूर्ण इलाज है। इस कार्यक्रम में हिस्सा लेने वाले प्रतिभागियों को स्मृति चिह्न देकर सम्मानित किया गया।
इस मौके पर आशा समन्वयक सुनील कुमार, संजू बाला, ब्लॉक लेखाकार अच्छर सिंह, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र थानाकलां के तहत समस्त आशा कार्यकर्ता मौजूद रहे।अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करें
भारतवंशी जोड़े को ऑस्ट्रेलिया में 33 साल का कारावास, 30 मामलों में आरोप, भारत में भी हत्या का केस
भारतीय मूल के एक ब्रिटिश जोड़े को ऑस्ट्रेलिया की एक अदालत ने ड्रग्स की तस्करी के आरोप में 33 साल के कारावास की सजा सुनाई है। यह वही जोड़ा है, जिसपर आरोप है कि उन्होंने गुजरात में अपने दत्तक पुत्र की हत्या की थी। भारत ने ब्रिटेन से इस जोड़े के प्रत्यर्पण की मांग भी की थी। अब ऑस्ट्रेलियाई अदालत ने भी इन्हें सना सुना दी है।मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, ऑस्ट्रेलिया के साउथवार्क क्राउन कोर्ट में सोमवार को सुनवाई के बाद जूरी ने भारतीय मूल की आरती धीर (59) और कंवलजीत सिंह रायजादा (35) को निर्यात के 12 और मनी लॉन्ड्रिंग के 18 मामलों में दोषी माना है। कोर्ट ने मंगलवार को जोड़े को 33 साल के कारावास की सजा सुनाई है।
2021 का है मामला
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, ऑस्ट्रेलिया के साउथवार्क क्राउन कोर्ट में सोमवार को सुनवाई के बाद जूरी ने भारतीय मूल की आरती धीर (59) और कंवलजीत सिंह रायजादा (35) को निर्यात के 12 और मनी लॉन्ड्रिंग के 18 मामलों में दोषी माना है। कोर्ट ने मंगलवार को जोड़े को 33 साल के कारावास की सजा सुनाई है। हालांकि, सुनवाई के दौरान धीर और रायजादा ने ड्रग्स निर्यात करने और मनी लॉन्ड्रिंग के आरोपों को सिरे से नकार दिया था। ड्रग्स के तस्करी का मामला मई 2021 का है।
514 किलो कोकीन जब्त
रिपोर्ट में सामने आया कि सिडनी के अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डे पर मई 2021 को ऑस्ट्रेलियाई सीमा बल ने छह टूलबॉक्स को जब्त किया। टूलबॉक्स यूके से ऑस्ट्रेलिया पहुंचा था। इसमें से टीम को कोकीन बरामद हुई, जिसकी कीमत 57 मिलियन पाउंड है। इसके बाद जब राष्ट्रीय अपराध एजेंसी (एनसीए) ने जांच शुरू की तो रायजादा और धीर का नाम सामने आया। एनसीए के बयान के अनुसार, टूलबॉक्स में 514 किलो कोकीन जब्त की गई है। ऑस्ट्रेलिया में कोकीन की कीमत ब्रिटेन के मुकाबले कहीं अधिक है। थोक में ब्रिटेन में एक किलो कोकीन की कीमत 26 हजार पाउंड है तो वहीं ऑस्ट्रेलिया में एक किलो कोकीन की कीमत 110,000 पाउंड है।
2015 में गठित की गई कंपनी
एनसीए जांच में सामने आया कि सिर्फ खेप की तस्करी के लिए दोनों ने विफ्लाई फ्रेट सर्विसेज नाम की एक कंपनी स्थापित की थी। कंपनी जून 2015 में गठन की गई थी। गठन के बाद से दोनों आरोपी अलग-अलग समय पर कंपनी के निदेशक रहे। जब्त टूलबॉक्स के प्लास्टिक रैपिंग पर रायजादा की उंगलियों के निशान पाए गए थे। वहीं टूलबॉक्स के ऑर्डर की रसीद दंपत्ती के घर से बरामद हुई हैं।