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समाज के खिलाफ जाकर सीखा संगीत, बनीं ठुमरी की रानी

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ठुमरी साम्राज्ञी गिरिजा देवी को उनके चाहने वाले प्यार से ‘अप्पा जी’ कहते हैं। 8 मई 1929 को
बनारस के निकट एक गांव में जन्मीं गिरिजा देवी हिंदुस्तानी शास्त्रीय गायन का वो सितारा थीं
जिन्हें ख्याल, ठुमरी, टप्पा, कजरी, चैती में महारत हासिल थी। गिरिजा देवी ने बचपन में ही अपनी
संगीत शिक्षा प्रसिद्ध सारंगी वादक सरजू प्रसाद मिश्र और चंद्र मिश्र से हासिल की। गिरिजा देवी
उन्हें बोलती थीं दादा गुरु ……

पूरम अंग गायिकी की आदर्श गिरिजा देवी ने ठुमरी की एक लंबी परंपरा को हर दिशा में फैलाया।
गायकी के क्षेत्र में बहुमूल्य योगदान के लिए उन्हें 1972 में पद्मश्री, 1989 में पद्म भूषण और 2016
में पद्म विभूषण से अलंकृत किया गया था।
सेनिया और बनारस घराने से संबंध रखने वाली गिरिजा देवी शायद अकेली ऐसी गायिका थीं जिन्होंने
अपने लंबे करियर में भक्त कवियों के साथ निर्गुणियों को भी गाया। हे मां कारी बदरिया बरसे… पिया
नहीं आए…। नयन की मत मारो तलवारिया… और झूले बगिया में राम ललना रे…… जैसी ठुमरी की
मांग हर मंच पर उनसे की जाती थी। बेशक शुरुआत में ही मामा के घर कोलकाता में जाकर करियर
को आगे बढ़ाया लेकिन बनारस और काशी हमेशा उनके हृदय में बसता था।
पांच वर्ष की उम्र से गायकी में उतरने वाली गिरिजा देवी ने बहुत कम उम्र में ख्याल और टप्पा
गायकी में अपनी एक अलग पहचान बना ली थी। नौ वर्ष की उम्र में गिरिजा देवी ने एक फिल्म में
अछूत कन्या की भूमिका भी निभाई थी। गिरिजा देवी ने एक साक्षात्कार में बताया था कि “मैंने शादी
से पहले ही पति से करार कर लिया था कि मुझे बाद में गाने देंगे। वह भी संगीत के प्रेमी थे। पति
ने शर्त रख दी थी कि किसी राजा महाराजा, प्राइवेट प्रोग्राम में नहीं गाओगी। मैंने वादा कर दिया कि
रेडियो, बड़े संगीत कार्यक्रम, स्कूल, गुरु भाई-बहनों के घर गा लेंगे और कहीं नहीं गाएंगे।” 1949 में
पहला संगीत इलाहाबाद रेडियो से गाया, फिर आरा, बनारस और दिल्ली के संगीत सम्मेलनों में भाग
लिया।
ठुमरी की मल्लिका की संजीदगी, जीवंतता और शास्त्रीय संगीत के लिए प्रेम का अंदाजा इससे लगा
सकते हैं कि जीवन के अंतिम वर्ष में भी अपनी गायकी की प्रस्तुति देती रहीं। दिल्ली के एक
कार्यक्रम में करीब 88 वर्ष की उम्र में नवाब वाजिद अली शाह का गीत… ‘बाबू मोरा नैहर छूटो ही
जाय…’ गाया। यह गीत जैसे ही खत्म हुआ तो उन्होंने अपने पानदान से पान निकालकर मुंह में रखा
और कहा- “बहुत अच्छा लगा कि आप सब आए। अब पता नहीं दोबारा आ पाऊंगी या नहीं। नब्बे की
होने जा रही हूं।” इसके दो महीने बाद ही 24 अक्टूबर, 2017 वह इस दुनिया चली गईं। आज भी जब
उनके गायन को सुनते हैं तो ऐसा लगता है कि सुरों की बरसात में भीगने का आनंद मिल रहा हो।

गिरिजा देवी के निधन पर पीएम नरेंद्र मोदी ने शोक में कहा था, “गिरिजा देवी जी के निधन से दुखी
हूं, भारतीय शास्त्रीय संगीत ने अपनी सबसे मधुर आवाजों में से एक को खो दिया है। गिरिजा देवी का
संगीत हर पीढ़ी को आकर्षित करता था। भारतीय शास्त्रीय संगीत को लोकप्रिय बनाने के लिए उनकी
कोशिशें हमेशा हमारी यादों में रहेंगी।”n

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