*सुसंस्कृति परिहार
जनहित के स्नेह में डूबी भोजपुरी गायिका नेहा सिंह राठौर का जवाब नहीं।उनके लोकगीतों में जहां एक ओर समाज में व्याप्त पीड़ाओं की बात मुख्य होती है वहीं वे सरकार की उम्दा नीतियों का बराबर प्रचार भी करती हैं।शिक्षा, सामाजिक सुधार और मौलिक अधिकार जैसे महत्वपूर्ण विषय भी वे जागरूकता हेतु उठाती रही हैं ताज़ातरीन घटनाओं को वे जिस तेजी से लोकगीत की शक्ल में सामने लाती हैं वह लोगों को अपनी ओर आकृष्ट करता है।जन की भाषाओं में वे चूंकि बेझिझक अपनी खूबसूरत और प्रेमिलअदाओं के साथ बात रखती हैं इसलिए वे देश में निरंतर लोकप्रिय हो रही हैं। उनका मानना है कि भोजपुरी लोकगीत जिस तरह अश्लील होते जा रहे थे उसके प्रतिरोध में ही उन्होंने समसामयिक विषयों को लोकगीत का आधार बनाया ।कहना ना होगा कि उन्होंने लोकगीत को नई दिशा दी और वे बराबर सुने जा रहे हैं।यह इस बात का भी प्रतीक है कि उन्होंने भोजपुरी लोकगीत को प्रतिरोध के स्वर भी दिए जो आज सशक्त विपक्ष की भूमिका में भी नज़र आ रहे हैं। इससे पहले गीत,ग़ज़ल और समकालीन कविता में ये तेवर सामने आए।वे अन्य विधाओं की तरह प्रतीकों और विम्बों का सहारा नहीं लेतीं सीधी खरी खरी बात कहती हैं जो सीधे लोगों के पास पहुंचती है। पिछले दिनों उन्होंने ‘रजऊ’प्रतीक का भी सुंदर इस्तेमाल नया रंग दिया है।
पिछले दिनों यू पी में काबा की दूसरी किस्त पर तो यूपी की सरकार ने गज़ब कर दिया।नेहा की सच अभिव्यक्ति से वह इतनी परेशान हो गई उसने एक बड़ा पुलिस बल उसकी ससुराल नोटिस लेकर ससुराल भेजा वहां जब नेहा नहीं मिली तो उसके दिल्ली निवास पर पहुंचकर नोटिस थमा दिया यहां वह अपने पति हिमांशु के साथ रहती है।वह बताती है कि इतना भारी पुलिस बल देखकर वह घबरा गई थी लेकिन दूसरे ही पल वह संभल गई और पुलिस से सवाल कर दिया आप काहे परेशान हो रहे हैं पुलिस ने कहा परेशान तो आप कर रही हैं।सच कहा पुलिस ने आज के दौर में सत्य ही परेशान है और झूठ सर चढ़कर बोल रहा है ।
याद आते हैं मुक्तिबोध जिन्होंने बहुत पहले कहा था अभिव्यक्ति के ख़तरे उठाने ही होंगे। डाक्टर नरेन्द्र दाभोलकर, कामरेड गोविन्द पानसरे , एम एम कलबुर्गी एवं गौरी लंकेश जी ने जिस तरह सीने पर गोलियां खाईं वे इस बात की पुष्टि करते हैं कि 2014 में काबिज केन्द्रीय सत्ता के आते ये बड़े ख़तरे सामने आए हैं।आज के बहुसंख्यक लेखक,कवि संस्कृति कर्मी और पत्रकार इन खतरों से बचने सरकार शरणम् गच्छामि हैं तब एक युवती लोकगीतों के माध्यम से जो सवाल उठा रही है वे मायनेखेज हैं और सनसनी फैलाकर अद्भुत तौर पर जनजागरण कर रहे हैं ये डरे हुए अभिव्यक्तिकारों के लिए शर्मसार करने वाले हैं। आज़ादी के दौरान गांधी जी ने जो निडरता का संदेश दिया था उसकी वज़ह से उस समय भी महिलाओं ने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ इसी तरह लोकगीतों का सहारा लिया था। गांधी जी के भारत भ्रमण के दौरान ये लोकगीत खूब सुनने मिले। अंग्रेजों ने तब ना तो किसी महिला को नोटिस भेजा और ना ही किसी को धमकी दी।जनकवि बाबा नागार्जुन ने तो सीधे ही प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी के सामने मंच पर प्रतिरोध की कविताएं पढ़ी किंतु किसी ने नागार्जुन का विरोध नहीं किया वे मुस्कराते रहे यही लोकतंत्र की खूबसूरती है। यूं तो समकालीन कविताओं, ग़ज़लों तथा कहानियों और संस्कृति मंचों पर विरोध दर्ज होता रहा किन्तु लोकगीतों में ये स्वर मुखरता से सुनाई नहीं देते हां सामाजिक बुराईयों को ज़रुर इसमें उठाया गया वरना ये विशुद्ध मनोरंजन करते रौहे हैं भक्तिभाव की भी इसमें प्रबलता रही। लोकगीतों की खासियत ये है कि जन्म से लेकर आखिरी सफ़र तक गाए जाते हैं।इनका क्षेत्र व्यापक है इसलिए ये अलग पहचान बनाते हैं।
आज जब संसद से लेकर सड़क तक अभिव्यक्ति पर पहरा है तब चंद लोग जिनमें रवीश कुमार,अजित अंजुम, पुण्य प्रसूनजोशी, अभिसार शर्मा,आरफा खानम आदि प्रमुख हैं जो सतत सच उजागर कर रहे हैं लेकिन लोकगीत के ज़रिए जो बीड़ा नेहा ने उठाया है वह बहुत प्रभावी है।यह इस बात से ज़ाहिर होता है कि सरकार ने किस तरह एक युवती की आवाज़ दफ़न करने यह ख़ौफनाक माहौल रचा है।
काबिले तारीफ़ है नेहा की ताक़त कि वह पूर्ववत आज भी अपने काम में संलग्न हैं और बड़े प्रेम से पहली बार मंच पर जाकर श्रोताओं और पुलिस से अपनी कमी बताने का आग्रह दुस्साहस से कर रही है। लोगों के आव्हान पर कि यूपी काबा के बाद निजीकरण और कारपोरेट जगत पर भी उसी ताज़गी से लिख और गा रही हैं।उसका विस्तार हुआ है वह भारत में काबा की ओर बढ़ चली है।इसके पीछे उनका संघर्षरत जीवन ही है जहां वे सच कहने से कभी नहीं चूकती। मध्यप्रदेश काबा की धूम है। मामा सरकार परेशान हैं बड़ी संख्या में उन पर एफ आई आर दर्ज हो रही हैं। इससे पूर्व नेहा को दिए नोटिस में भी कानूनी त्रुटियां थीं। पूर्व जज मार्कंडेय काटजू ने एक पोस्ट लिखा है जिसमें उन्होंने 160 Cr.P.C. का जिक्र करते हुए बताया था कि यह नोटिस अवैध था।वह समस्या टल गई ।अब नेहा जनता की अदालत में अपनी बात रखती हैं उनकी बात को बल मिलता है लेकिन सरकारी अदालत कैसा रुख अख्तियार कर ले यह कहना मुश्किल है क्योंकि अदालत फैसलों से सरकार जिस तरह निपट रही है वह चिंताजनक है।आज नेहा जिस क्रांतिकारी स्वरुप में सक्रिय है वह अभिनंदनीय है।देश को आज ऐसी ही निडर अभिव्यक्ति की ज़रूरत है।
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