विरेन्द्र भदोरिया
आज की भाजपा और अटल आडवाणी युग की भाजपा में जमीन आसमान का फर्क है। वैचारिक भिन्नता रखने वाले लोग भी भाजपा नेताओं की सादगीपूर्ण जीवन शैली, शालीनता व शिष्टता के कायल होते थे। आज की भाजपा कटुता, शत्रुता, वैमनस्य, अभद्रता, अहंकार ,शाही जीवन शैली व अमर्यादित आचरण का पर्याय बन गई है, वह एक ऐसी पार्टी होकर रह गई है,जिसका वास्तविक नियंत्रण पार्टी के कार्यकर्ताओं व नेताओं के पास न होकर दो कार्पोरेट घरानों के हाथ में है। बेईमानी से अर्जित पूंजी के बल पर राष्ट्रीय मीडिया, चुनाव आयोग सहित लगभग सभी संवैधानिक संस्थाएं, चुनाव प्रक्रिया, भाजपा पार्टी व सत्ता पर उनका पूरी तरह कब्जा हो चुका है।
ये जो कार्पोरेट्स हैं,वे बड़े वेल कैलक्यूलेटेड लोग हैं, चर्चित टीवी सीरियल ‘बिग बॉस’ के शक्तिशाली, रहस्यमय व अदृश्य बिग बॉस की तरह पूरे सिस्टम को कठपुतली की तरह नचाते हैं। लाजिकल दिखने व लोकतंत्र का आभास कराने के लिए वे यदा-कदा किसी किसी छोटे राज्य में विपक्ष को जीतने देते हैं, पर जहां उनके बड़े आर्थिक हित जुड़े होते हैं, वहां अपनी पपेट सरकार बना लेते हैं।
विपक्ष को छोटी-मोटी जीत का स्वाद चखाने के पीछे इस तर्क को मजबूती देना है कि, जब विपक्ष को जीत मिलती है तो ईवीएम ठीक व चुनाव निष्पक्ष होते हैं, लेकिन जब भाजपा जीत जाती है तो ईवीएम में धांधली व बेइमानी की बात उठाई जाती है। यह बेहद शातिराना तरीके से विपक्ष और अंततः लोकतंत्र को पूरी तरह नेस्तनाबूद करने की चाल है।
दुनिया में सामान्यतः तीन विचारधाराएं होती हैं, दक्षिणपंथ, वामपंथ और मध्यमार्ग। भाजपा दक्षिण पंथ व कांग्रेस मध्य मार्ग का प्रतिनिधित्व करती है। जब तक जनता का मिजाज सत्य, प्रेम, करूणा ,अहिंसा, आपसी मेल-जोल, भाईचारा, सर्वधर्म समभाव व राजनीति को धर्म से परे रखने का था,तब तक वह कांग्रेस का समर्थन करती रही, राममंदिर आंदोलन के प्रभाव से राजनीति में धर्म के घालमेल की शुरुआत हुई, जिसके परिणामस्वरूप धीरे धीरे देश का मिजाज बदलता चला गया, हिंसा, घृणा,क्रोध, अलगाव की भावना और सांप्रदायिकता के जबरदस्त उभार के चलते आज एक बड़ा जनसंकुल दक्षिण पंथी विचारधारा का प्रतिनिधित्व करने वाली भाजपा के साथ खड़ा दिखाई दे रहा है, जिससे कभी छोटी सी पार्टी रही भाजपा आज देश की सबसे बड़ी पार्टी बन गई। कांग्रेस ने देश पर लगभग 55 साल राज किया है, इसलिए यदि भाजपा भी दस – बीस साल तक सत्तारूढ़ रहे तो किसी को भला क्यों ऐतराज होना चाहिए ??? दरअसल ऐतराज भाजपा के राज से नहीं है, बल्कि भाजपा की रामनामी चादर ओढ़कर निर्दय कार्पोरेट्स द्वारा परोक्षरूप से सत्ता प्रतिष्ठान पर कब्जा कर लेना चिंता का विषय है। इसलिए सभी लोकतंत्र प्रेमियों का फर्ज बनता है कि वे भाजपा को कार्पोरेट्स के चंगुल से बाहर निकालने के लिए मिलजुल कर कोशिश करें। सत्ता पाने व बनाए रखने की चाहत में संघ ने लाखों स्वयंसेवकों की दशकों की मेहनत से खड़ी की गई भाजपा को खुशी खुशी चंद कार्पोरेट्स के हाथों गिरवी रख दिया है।
लगभग सौ साल चली आजादी की लड़ाई व असंख्य बलिदानों से हासिल की गई आजादी आज पुनः खतरे में है, जिन्हें यह खतरा नजर नहीं आ रहा है,वे या तो बड़े नादान हैं या बेहद चालाक हैं।
इस बात में कोई संदेह नहीं होना चाहिए कि भारत में अब चुनाव महज दिखावा मात्र रह गया है, परिणाम पहले से तय रहते हैं। खेल केवल विपक्ष के साथ ही नहीं होता है, भाजपा के ऐसे नेता जो उनके मनमाफिक नहीं हैं, उन्हें भी ठिकाने लगा दिया जाता है। भाजपा के नेताओं को भी अपनी पार्टी के हाईजैक होने की पूरी जानकारी है, लेकिन कुछ डर से और कुछ सत्ता की पंजीरी मिलने से चुप हैं, वे सोचते हैं भाड़ में जाए देश और लोकतंत्र, जो मिल रहा है, उसका भरपूर इंज्वॉय किया जाए।
कोई भ्रम में न रहे,भारत में अब लोकतंत्र लगभग खत्म हो चुका है। जनता भी हैरान हैं कि वोट विपक्ष को देते हैं, चुनाव भाजपा कैसे जीत जाती है? चुनाव दर चुनाव लगातार पराजय मिलने से विपक्ष भी बहुत जल्दी खत्म हो जाएगा, उनके कार्यकर्ताओं का मनोबल टूटेगा और वे या तो निष्क्रिय हो जाएंगे या भाजपा के खेमे में जाने के लिए मजबूर हो जाएंगे या मजबूर कर दिए जाएंगे। लोकतंत्र को बचाने का ठेका कांग्रेस या विपक्षी दलों ने नहीं लिया है, इसलिए सवाल कांग्रेस या विपक्ष के अस्तित्व का न होकर देश के भविष्य का है, जिस पर जनता को ही विचार करना होगा।
Add comment