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निजी कंपनियों की तरह अब सरकारों में भी ठेका कर्मी बढ़ रहे हैं

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निजी कंपनियों की तरह अब सरकारों में भी हर तरफ ठेका कर्मी बढ़ रहे हैं। ठेका यानी कॉन्ट्रैक्ट या संविदाकर्मी। दरअसल, ऐसे कर्मचारियों को पेंशन और अन्य कई सुविधाएं नहीं कर देनी पड़ती। पेंशन के भारी-भरकम बोझ से दबी सरकारों को इसीलिए ठेका कर्मी सुविधाजनक लग रहे हैं।

एक दौर था जब सरकारी नौकरी को ही नौकरी माना जाता था। बाकी सब नौकरियां आया राम गया राम ही समझी जाती थीं। हालांकि, बदलते समय में सरकारी नौकरियों का क्रेज कम हुआ है। इसलिए नहीं कि लोग सरकारी नौकरी से तंग आ चुके हैं, बल्कि इसलिए कि उसमें लंबा समय लगता है। भर्ती की प्रक्रिया बेहद जटिल है और सबसे बड़ी बात, बहुत हद तक भ्रष्टाचार व्याप्त है।

सरकारें इस प्रक्रिया को आसान नहीं बना पाईं। भ्रष्टाचार पर भी काबू नहीं पा पाईं। इसलिए उन्होंने ठेका प्रथा का आसान तरीका ढूंढ निकाला। कोरोना काल ने सरकारों की इस मंशा को और भी आसान बना दिया। निजी कंपनियों से छंटनी के नाम पर हकाले गए लोग जहां, जिस रूप में भी नौकरी मिली, पकड़ने लगे।

एक रिपोर्ट बताती है कि केंद्र ही नहीं, राज्य सरकारों ने भी पिछले चार-पांच सालों में ठेका कर्मियों की संख्या दुगनी ताकत से बढ़ाई। 2017 में सरकारों में ठेका कर्मियों की जो संख्या 11.11 लाख थी, वह 2021 के अंत तक बढ़कर 24.31 लाख हो गई। इसी तरह पीएसयू में 2016 में ठेका कर्मियों की जो संख्या 2.68 थी, वह 2020 तक 4.99 लाख हो गई। जानकार, ठेका कर्मियों की तेजी से हुई इस बढ़त की मुख्य वजह कोरोनाकाल को ही मान रहे हैं। उनका कहना है कि इस दौरान सरकारी स्थाई भर्तियों पर रोक रही लेकिन काम तो रोका नहीं जा सकता था। सो सरकारों ने आउट सोर्सिंग पर फोकस किया और इस तरह ठेका कर्मी बढ़ते गए।

वैसे भी आज जो युवा नए-नए कोर्सेज कर रहा है, उन सबके लिए सरकारों के पास न तो पर्याप्त जॉब हैं और न हीं वैसी विशेषज्ञता की सरकारों को जरूरत है। आज का युवा नई विशेषज्ञताओं के साथ प्राइवेट कंपनियों में अपनी दक्षता साबित करता है और बहुत कम समय में इच्छित प्रमोशन या सैलरी पाता है। यही वह चाहता भी है।

कुछ प्रदेशों के कुछ क्षेत्रों छोड़ दिया जाए तो युवा अब प्राइवेट नौकरी की तरफ ही ज्यादा भाग रहा है। वहां एक कंपनी द्वारा उसकी दक्षता न पहचानने पर दूसरी कंपनी में जाने का ऑप्शन भी उसके पास होता है और दो-चार नौकरी छोड़ते ही उसकी मन माफिक सैलरी भी उसे मिलने लगती है। हो सकता है कुछ मामलों में ऐसा न भी होता हो, पर ज्यादातर युवा इसमें विश्वास करते हैं और मंजिल पाते भी हैं।

सरकारों के सड़े-गले सिस्टम और बोझिल प्रक्रियाओं में वैसे भी आज का युवा विश्वास नहीं करता। क्योंकि सरकारी सिस्टम को नई प्रतिभा की कद्र न कभी थी और न आगे करना चाहता। टेबल दर टेबल फाइलों की चींटी चाल सरकार को पसंद है, इसलिए चलती रहती हैं चींटियां फाइलों पर, बेधड़क।

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