झारखंड की रामनवमी से मंदिरों का नाम भी जुड़ा है. राजधानी रांची में रामनवमी के मौके पर झंडा निकालने की शुरुआत 1929 में अपर बाजार के महावीर मंदिर से हुई और जुलूस का समापन प्राचीन तपोवन मंदिर यानी श्रीराम जानकी मंदिर में हुआ था. आज भी रामनवमी के मौके पर रांची के अलग–अलग हिस्सों से निकलने वाले जुलूस इसी तपोवन मंदिर में आकर मिलते हैं, तब जाकर शोभायात्रा को संपूर्ण माना जाता है. यह मंदिर कितना प्राचीन है इसकी कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है.

झारखंड की राजधानी रांची के निवारणपुर इलाके में स्थित है श्रीराम जानकी मंदिर जिसे तपोवन मंदिर भी कहा जाता है. हर साल इस मंदिर में रामनवमी के मौके पर भगवान राम की भव्य पूजा की जाती है और उनका साज–शृंगार भी अनोखे अंदाज में किया जाता है. रामनवमी के दिन मंदिर में सुबह तीन बजे से ही पूजा शुरू हो जाती है, जो रात तक जारी रहती है.
तपोवन मंदिर का निर्माण कब हुआ ?
तपोवन श्रीराम जानकी मंदिर का निर्माण कब हुआ, इसके बारे में कोई पुख्ता जानकारी नहीं है. बताया जाता है कि यह मंदिर काफी प्राचीन है, संभवत: जगन्नाथपुर मंदिर के काल का यह मंदिर है. दरअसल जहां अभी श्रीराम जानकी मंदिर है वह जंगल था. बगल से हरमू नदी बहती है, इसलिए यहां संत महात्मा तप किया करते थे. मंदिर में दो महंतों की समाधि है, महंत बटेकेश्वर दास की समाधि 1604 में बनाई गई है. इससे यह प्रमाणित होता है कि मंदिर काफी पुराना है. एक कथा भी प्रचलित है कि जब महंत बटेकेश्वर यहां तप करते थे तो जंगली जानवर आकर उनके आसपास बैठ जाते थे. एक अंग्रेज अधिकारी ने उनके बगल में बैठे हुए एक जंगली जानवर को गोली मार दी थी, जिससे महंत बहुत दुखी हुए थे और अंग्रेज अधिकारी को भी दुख हुआ था, जब उसने माफी स्वरूप यह मंदिर बनवाया. हालांकि उस मंदिर का स्वरूप उस तरह का नहीं था जैसा कि बाद के वर्षों में दिखा है.
इस बार अस्थायी मंदिर में होगी भगवान की पूजा
श्रीराम जानकी मंदिर के महंत ओमप्रकाश शरण ने प्रभात खबर को बताया कि श्रीराम जानकी मंदिर का पुनर्निर्माण कार्य जल्द ही शुरू हो जाएगा और भगवान सीताराम का भव्य मंदिर बनाया जाएगा. संभवत: यह मंदिर 2028–29 तक तैयार हो जाएगी. उसके लिए मुख्य मंदिर से भगवान को अस्थायी मंदिर में ले आया गया है. अन्य विग्रहों को भी इसी अस्थायी मंदिर में स्थापित किया गया है. इस बार की रामनवमी में भगवान की पूजा इसी मंदिर में होगी. 15 दिसंबर 2024 को भगवान को इस मंदिर में लाया गया है.
तपोवन मंदिर और अयोध्या का कनेक्शन
रांची के तपोवन मंदिर और अयोध्या के राम मंदिर में खास संबंध है. महंत ओमप्रकाश शरण बताते हैं की यहां की पूजा पद्धति, भगवान की साज–सज्जा सबकुछ अयोध्या के मंदिर के तर्ज पर होती है. यहां सुबह 5:30 बजे भगवान की आरती होती है और उन्हें सूखा मेवा और दूध का भोग चढ़ाया जाता है. उसके बाद 11:30 बजे चावल, दाल, रोटी और सब्जी का भोग लगता है. शाम को आरती होती है और फिर रात को 8:30 बजे उन्हें रोटी सब्जी और दूध का भोग लगाया जाता है.
तपोवन मंदिर में कैसी है व्यवस्था?
तपोवन मंदिर के पुजारी रामविलास दास बताते हैं इस मंदिर में जो व्यवस्था है उसके अनुसार यहां के प्रमुख महंत हैं, जो यहां की पूरी व्यवस्था को देखते हैं. उसके बाद चार पुजारी है, जिनके नाम रामविलास दास, गोपाल दास, सुनील शरण और प्रवीण शरण है. यह महंत का विशेषाधिकार है कि वे मंदिर के लिए कितने पुजारियोंं की नियुक्ति करें. वे चाहें तो चार या इससे अधिक भी पुजारी रख सकते हैं. उसके बाद मंदिर के परिकर हो जाते हैं, जो रसोई काम, साफ–सफाई का काम और गौशाला में सेवा करते हैं.
रामनवमी में क्या चढ़ेगा भोग?
रामनवमी के दिन सुबह तीन बजे से ही भगवान की सेवा और पूजा शुरू हो जाएगी. सुबह की पूजा के बाद सुबह सात बजे से पूरी–सब्जी और बुंदिया का भोग वितरण शुरू हो जाएगा. लगभग 3–4 क्विंटल आटे की पूरी और उतनी ही सब्जी और बुंदिया बनाई जाती है. उसके बाद गुड़– चना और पंजीरी का प्रसाद भी वितरित किया जाता है. सुबह से महावीरी झंडे की पूजा शुरू हो जाती है, जो जुलूस के समापन के बाद ही समाप्त होती है.
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