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रोगमुक्ति की एकमात्र औषधि और स्वास्थ्य का अकेला आधार है प्रेम

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जूली सचदेवा (दिल्ली)

 _प्रेम जीवन में न हो तो मस्‍तिष्‍क रूग्‍ण होगा। चिंता से भरेगा, आदमी शराब पियेगा। नशा करेगा। कहीं जाकर अपने को भूल जाना चाहेगा। दुनिया में बढ़ती हुई शराब शराबियों के कारण नहीं है। परिवार ने उस हालत में ला दिया है लोगों को कि बिना बेहोश हुए थोड़ी देर के लिए भी रास्‍ता मिलना मुश्‍किल हो गया है। तो लोग शराब पीने चले जायेंगे। लोग बेहोश पड़े रहेंगे लोग हत्‍या करेंगे, लोग पागल होते चले जायेंगे।_
   अमरीका में प्रतिदिन बीस लाख आदमी अपना मानसिक इलाज करवा रहे है। ये सरकारी आंकड़े है। आप तो भली भांति जानते है सरकारी आंकड़े कभी भी सही नहीं होते है। बीस लाख सरकार कहती है। तो कितने लोग इलाज करा रहे होंगे। यह कहना मुश्‍किल है। जो अमरीका की हालत है वह सारी दुनियां की हालत है।

आधुनिक युग के मानविद यह कहते है कि करीब-करीब चार आदमियों में दो आदमी एबनार्मल हो गये है। चार आदमियों में तीन आदमी रूग्‍ण हो गये है। स्‍वस्‍थ नहीं है। जिस समाज में चार आदमियों में तीन आदमी मानसिक रूप से रूग्‍ण हो जाते हों, उस समाज के आधारों को उसकी बुनियादों को फिर से सोच लेना जरूरी है।
नहीं तो कल चार आदमी भी रूग्‍ण होंगे और फिर सोचने वाले भी शेष नहीं रह जायेंगे। फिर बहुत मुश्‍किल हो जायेगी।
लेकिन होता ऐसा है कि जब एक ही बीमारी से सारे लोग ग्रसित हो जाते है। तो उस बीमारी का पता नहीं चलता। हम सब एक जैसे रूग्‍ण, बीमार, परेशान है; तो हमें पता नहीं चलता। सभी ऐसे हैइसीलिस स्‍वस्‍थ मालूम पड़ते है। जब सभी ऐसे है, तो ठीक है।
दुनियां चलती है, यही जीवन हे। जब ऐसी पीड़ा दिखाई देती है तो हम ऋषि-मुनियों के बचन दोहराते है कि वह तो ऋषि-मुनियों ने पहले ही कह दिया था। की जीवन दुःख है।
यह जीवन दुःख नहीं है। यह दुःख हम बनाये हुए है। वह तो पहले ही ऋषि-मुनियों ने कह दिया था। कि जीवन तो आसार है, उससे छुटकारा पाना चाहिए। जीवन असार नहीं है। यह असार हमने बनाया हुआ है।
जीवन से छुटकारा पाने की सब बातें दो कौड़ी की है। क्‍योंकि जो आदमी जीवन से छुटकारा पाने की कोशिश करता है वह प्रभु को कभी उपलब्‍ध नहीं हो सकता। क्‍योंकि जीवन प्रभु है, जीवन परमात्मा है।
जीवन में परमात्‍मा ही तो प्रकट हो रहा है। उससे जो दूर भागेगा,वह परमात्‍मा से ही दूर चला जायेगा।
{लेखिका चेतना विकास मिशन की फेसमॉडल हैं.)

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