अग्नि आलोक
script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

सत्ता की स्त्री विरोधी सोच है लव जिहाद कानून

Share

अनीता मिश्रा
लव जिहाद के मामले में बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड की सरकारों को नोटिस जारी किया है। इससे अंतरधार्मिक विवाह, खासकर प्रेम विवाह करने वालों के मन में एक उम्मीद जगी है। हालांकि कोर्ट ने दोनों सरकारों के इस अध्यादेश पर अभी रोक नहीं लगाई है। इस अध्यादेश के आने के बाद से ही अंतरधार्मिक शादी करने वाले लोगों को लगातार परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।

अकेले उत्तर प्रदेश में पिछले महीने से अब तक 35 से अधिक मुकदमे दर्ज हो चुके हैं। दिसंबर की शुरुआत में उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में हिंदू-मुस्लिम परिवार आपसी सहमति से अपने बच्चों की शादी कर रहे थे। अचानक ‘हिंदू वाहिनी’ नामक एक संगठन के कुछ लोग आए और शादी रुकवा दी। साथ में आई पुलिस भी यह बोली कि नए कानून के मुताबिक अंतरधार्मिक शादी के लिए एक महीने पहले डीएम की अनुमति जरूरी है। हालांकि उसके एक महीने पहले तक यह अध्यादेश उत्तर प्रदेश में आया ही नहीं था।

दरअसल हाल ही में विवाह के बहाने धर्मांतरण को रोकने के लिए योगी आदित्यनाथ की सरकार नया अध्यादेश लाई है, जो ‘लव जिहाद कानून’ के नाम से कुख्यात हो रहा है। इस अध्यादेश के आते ही इसके दुरुपयोग की शिकायतें सामने आने लगी हैं। पिछले दिनों यूपी के बरेली में तीन मुस्लिम लड़कों के खिलाफ लव जिहाद का फर्जी केस दर्ज किया गया। इसी तरह बिजनौर में एक मुस्लिम लड़के को कुछ लोगों ने यह आरोप लगाकर पीट दिया कि वह जिस हिंदू लड़की के साथ घूम रहा है, उसका धर्म बदलवाकर उससे शादी करना चाहता है। लड़की कहती रही कि ऐसा कुछ भी नहीं है, बावजूद इसके पुलिस ने लड़के पर कई धाराओं में मुकदमा दर्ज कर रखा है। क्या सरकार इस कानून के जरिए ऐसा संदेश देना चाहती है कि शादी तो दूर, दो धर्मों के युवा आपस में दोस्ती भी न रखें?

अपनी मर्जी से शादी करना या किसी भी धर्म का पालन करना हमारा मौलिक अधिकार है। ये दोनों ही अधिकार हमें संविधान के अनुच्छेद 21 और 25 से मिले हैं। लेकिन अफसोस की बात यह है कि उत्तर प्रदेश या उत्तराखंड और अब मध्य प्रदेश की सरकारों ने इस तरह के कानून बनाकर नागरिकों के मौलिक अधिकार सस्पेंड कर दिए हैं। उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार तो लगातार यही मानकर चल रही है कि ऐसी सारी शादियां हिंदू लड़कियों को बरगला कर की जाती हैं। यह सरकार की घटिया पितृसत्तामक सोच है, जिसके मुताबिक सारी लड़कियां विशुद्ध रूप से मूर्ख होती हैं और अपने निर्णय खुद नहीं ले सकती हैं।

इसी स्त्री विरोधी सोच के तहत सरकार दसियों साल पहले हुई शादियों की भी पड़ताल कर रही है। यूपी में ऐसी शादियां करने वाली लड़कियों के लिए मनोवैज्ञानिक काउंसलिंग का इंतजाम है। अगर लड़की अपनी शादी से खुश है तो भी यह माना जा रहा है कि संभव है वह ‘स्टॉकहोम सिंड्रोम’ का शिकार हो गई हो। इस सिंड्रोम में माना जाता है कि अक्सर अपने पीड़क से ही प्रेम हो जाता है। जाहिर है, इस कानून का दुरुपयोग पुरानी और सफल शादी को भी तोड़ने में किया जा सकता है।

अंतरधार्मिक विवाह के मूल में प्रेम होता है। ऐसी शादियां अमूमन घरवालों की मर्जी के खिलाफ ही होती हैं। मगर इस काले कानून के तहत घरवालों से लेकर शहर में कुकुरमुत्ते की तरह उगे संगठनों तक को यह अधिकार मिल गया है कि वे कोई ना कोई पेंच लगाकर शादी को रोक सकते हैं। गाजियाबाद में ऐसे ही कुछ लोगों ने एक वैवाहिक समारोह के दौरान हंगामा खड़ा करने की कोशिश की। वहां वर-वधू पक्ष मजबूत थे तो इन लोगों को भगा दिया गया। मगर सब इतने मजबूत नहीं होते। उन तमाम लोगों के लिए बचाव का कोई इंतजाम नहीं है। जाहिर है, सामान्य नागरिकों के मौलिक अधिकार व्यवहार में निलंबित हो गए हैं। अब जबकि मामला कोर्ट में है और नोटिस भी जारी हो चुका है, तो सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस मदन बी लोकुर की बात याद आती है कि इस कानून में इतनी खामियां हैं कि यह कोर्ट में कहीं नहीं टिकेगा।

Recent posts

script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

Follow us

Don't be shy, get in touch. We love meeting interesting people and making new friends.

प्रमुख खबरें

चर्चित खबरें