
सनत जैन
प्रयागराज के त्रिवेणी तट पर आस्था का सबसे बड़ा महाकुंभ हो रहा है। संसार का यह सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन है, जिसमें करोड़ों की संख्या में श्रद्धालु शामिल होते हैं। देश और विदेश से कुंभ मेले में शामिल होने के लिए आने वाले श्रद्धालुओं के लिए बड़े पैमाने पर इंतजाम किया जाता है। कुंभ मेला लगातार एक माह से ज्यादा दिनों तक चलता है। नागा साधु कुंभ मेले में सबसे बड़े आकर्षण का केंद्र होते हैं। इस बार किन्नर साधु भी बड़े पैमाने पर कुंभ मेले में पहुंचे हैं। धार्मिक आस्था के इस महाकुंभ में पहली बार बाजारवाद भी देखने को मिल रहा है। साधु, सन्यासी भी इससे अछूते नहीं दिख रहे हैं। जो साधु, सन्यासी कुंभ मेले में पहुंच रहे हैं उनमें से अधिकांश नेशनल मीडिया और सोशल मीडिया में धूम मचा रहे हैं।

गंगा, जमुना और सरस्वती की इस त्रिवेणी में सब अपने-अपने पाप धोकर ज्यादा से ज्यादा पुण्य पाने की लालसा लिए आते हैं। वहीं बाजारवाद के पोषक हर वह हथकंडा अपना रहे हैं जिससे वो ज्यादा से ज्यादा अर्थ कमा सकें। वहीं दूसरी तरफ धार्मिक आस्था के इस महापर्व पर अनेक साधू, सन्यासियों द्वारा जिस तरह से अपने भक्तों को लुभाया जा रहा है, जिस तरह से कुंभ मेले में साधु, सन्यासी अपनी शान-शौकत का प्रदर्शन कर रहे हैं, साधु सन्यासी के पंडाल और उनके पंडाल में भक्तों के लिए जिस तरह के आधुनिक इंतजाम किए गए हैं वो भी सभी का ध्यान खींच रहे हैं। एक-एक रात रुकने का खर्चा लाखों रुपया बताया जा रहा है। साधु-संतों को उनके भक्त चढ़ावे में वह सब दे रहे हैं जिसकी कल्पना करना धार्मिक आयोजनों में संभव नहीं होता है।
इसके अतिरिक्त सरकार भी इस अर्थतंत्र के युग में महाकुंभ के इस आयोजन से पुण्य के रूप में वह सब कुछ पा लेना चाहती है जो शायद इसके बाद संभव न हो। सरकार ने दावा किया है कि एक दिन में त्रिवेणी के तट पर 3.50 करोड़ श्रद्धालुओं ने आस्था की डुबकी लगाकर अपने पापों को धोया है। तड़के शुरू हुआ यह स्नान रात तक चलता रहा। कुंभ के आयोजकों और सरकार के द्वारा एक ही दिन में 3.50 करोड लोगों के स्नान करने की बात पूरे देश और दुनिया में चर्चा का विषय बन गई है। कुंभ मेला क्षेत्र में साढ़े 3 करोड़ श्रद्धालु होने का जो दावा किया जा रहा है उस पर कोई भी विश्वास करने के लिए तैयार नहीं है। कहा जा रहा है कि मेला क्षेत्र के लिए जिस तरह का प्रचार-प्रसार किया जा रहा है उसमें सरकारी मशीनरी इंतजाम के नाम पर भारी भ्रष्टाचार कर रही है, लेकिन इस तरह से यदि सरकारी प्रचार किया जाता है तो जिस पर लोगों को विश्वास ही ना हो तो वह चर्चा का विषय बन जाता है। अब सच्चाई अपनी जगह है और दावे-प्रतिदावे अपनी जगह, जिस पर लगातार बात होती रहेगी।
बहरहाल कुंभ के मेला क्षेत्र में साधु, संतों और सन्यासियों द्वारा सनातन की शक्ति और वैभव का प्रदर्शन किया जा रहा है। अखाड़े और नागा साधु-संतों को लेकर जिस तरह से श्रद्धालुओं के बीच में उनका आकर्षण बना हुआ है वह काबिले जिक्र तो हो ही गया है। देसी और विदेशी श्रद्धालु भी कुंभ के मेले में आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं। विश्व के कई देशों से वहां के नागरिक जो सनातन परंपरा से प्रभावित हैं वह हिंदी और संस्कृत के मत्रों के साथ कुंभ मेले में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं। उसको लेकर कुंभ मेले का आकर्षण अपने आप में अनूठा है। सारी दुनिया के देशों में इतनी बड़ी संख्या में कहीं पर श्रद्धालु एकत्रित नहीं होते हैं। यह अपने आप में एक रिकॉर्ड है। कुंभ के मेले में जाकर साधु-संतों की शोभायात्रा, तरह-तरह की ध्वजा, घोड़े-हाथी पर सवार धर्मगुरु, नागा साधुओं का त्रिशूल, भाला, गदा, तलवार और विभिन्न वेशभूषा में जो प्रदर्शन किए जाते हैं उसको श्रद्धालु देखकर रोमांचित हो उठते हैं। इस बार के कुंभ मेले में एप्पल के को-फाउंडर स्टीव जॉब्स का एक पत्र 4.32 करोड रुपए में नीलाम हुआ है। 1974 में उन्होंने अपने जन्मदिन पर अपने दोस्त को यह पत्र भेजा था, जिसमें उन्होंने कुंभ मेले में शामिल होने की इच्छा जताई थी। उनकी पत्नी लॉरेन पावेल अपने पति स्टीव के निधन के 12 साल के बाद कुंभ मेले में पहुंची हैं, वह यहां पर रहकर कल्पवास करने जा रही हैं। यह आस्था है और महाकुंभ ऐसी ही आस्थाओं का महापर्व है। यहां आस्था के साथ ही करोड़ों-खरबों रुपयों का व्यापार भी हो रहा, जिसके और बढ़ने की संभावनाएं व्यक्त की जा रही हैं, जो बाजारवाद को रेखांकित करता है। ऐसे में यह ध्यान रखने वाली बात है कि आस्था का महापर्व कुंभ पूरी तरह बाजारवाद के हवाले न होने पाए और अपनी परंपराओं को बनाए रखे, जिसके लिए पूरी दुनियां में भारत पहचाना जाता है।