-सुसंस्कृति परिहार
कांग्रेस की महू रैली में कांग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे जी के गंगा में डुबकी वाले बयान पर जिसमें उन्होंने कहा कि गंगा में डुबकी लगाने से गरीबी दूर नहीं होती ,पेट नहीं भरता। इस साफ सुथरे कथन से मनुवादियों को तकलीफ़ हो गई और वे कांग्रेस को दूसरी मुस्लिम लीग कहने लगे। इसे सनातन धर्म का अपमान बता रहे हैं।
जबकि यह बात जगजाहिर है कि गंगा नदी में डुबकी लगाने से उसके सारे पाप धुल जाते हैं। कथित 144 साल बाद आए इस महाकुम्भ में सर्वाधिक भीड़ भाड़ नज़र आ रही है। जो सीधे तौर पर यह ज़ाहिर करती है कि इस पावन धरा पर पापियों की संख्या बहुत बढ़ गई है।
यह भी कहा जाता है इस वक्त किए स्नान या डुबकी से व्यक्ति जन्म मरण के चक्र से मुक्त हो जाता है। इस डुबकी का अर्थ डूब जाना है गंगा की गोद में।जैसे सरयू में राम ने डुबकी लगाई या पांडव केदारनाथ के ग्लेशियर में डूब गए। लेकिन ऐसा दृश्य अब नहीं दिखाई देता। जीवन जीने की जिनके मन में घोर लालसा है आजकल वहीं आस्था के वशीभूत हो यहां डुबकी लगाते हैं। ये वही लोग हैं जो जीवन चक्र से मुक्ति नहीं चाहते। वे पापों से भी नहीं घबराते और गंगा की पुण्य स्थली में भी पाप करते नहीं घबराते।
पौराणिक कथाओं के मुताबिक त्रिवेणी का जल सभी प्रकार की अशुद्धियों को दूर कर आत्मा को दिव्यता प्रदान करता है। जबकि यहां सरस्वती विलीन है वह एक नाले में परिणत हो चुकी है। यमुना इतनी गंदी है कि संगम से आधा किलोमीटर पहले उसका पानी गंधाता है। अस्थि विसर्जन करने जाते समय नाव यमुना के स्थिर जल में जब खड़ी होती है तब जो आप गंगाजी को जो समर्पित करते हैं उन तमाम चीजों को पंडे निकाल लेते हैं। सिर्फ़ अस्थियां ही गंगा की तेज धार में फेंकी जाती है उत्तर से आती तेज बहाव वाली गंगा का पानी जो स्वच्छ नज़र आता है वह भी स्वच्छ नहीं है। पीने योग्य तो बिल्कुल भी नहीं। यदि ऐसा होता तो बिसलेरी बोतल और पानी की मांग हेतु महाकुम्भ में चारों ओर आवाज ना उठती। हां,हिमालयीन खनिजों के कारण बीच धार का पानी सड़ता नहीं है जिसे चमत्कार मानते हुए उसे पूजा में शामिल किया जाता है।यही गंगा को चमत्कारिक बनाती है।ऐसी और भी नदियां दुनिया में हैं। कहने का आशय यह है कि यह जल आत्मा को कैसे शुद्ध कर सकता है जो पीने योग्य नहीं है। जहां तक आस्था का सवाल है आजकल तो गौमूत्र पीने और गोबर खाने का भी चलन है।
बहरहाल, ये तमाम बातें दकियानूसी लोगों की समझ से परे है इसलिए उन्हें खरगे जी की गंगा डुबकी से ऐतराज़ है। क्योंकि उन्होंने अंध भक्त लोगो के बीच सच कहने का साहस किया है। उन्हें अच्छे से समझ है कि गरीब और दलित इस अंधश्रद्धा के शिकार सदियों से हैं और आज़ादी के 78,साल बाद आज भी शोषित हैं। वे ही सबसे ज़्यादा लुटते पिटते हैं जबकि इस बार तो आॉन लाईन डुबकी के नाम पर करोड़ों की कमाई भी चल रही है। कुछ लोग इलाहाबाद और बनारस के होटलों में आ रहे गंगा जल से स्नान से भी पुण्य ले रहे हैं।इस महाकुंभ में मेला है, तमाशा है पर्यटन की दृष्टि से सजावट है, बनावट है। अनेकों आकर्षण भी हैं किंतु सनातन धर्म की शुचिता नहीं है। कहीं आध्यात्मिक ज्ञान की सार्थक चर्चा भी नहीं है।
याद होगा हुजूरेआला का वह बयान जब उन्होंने पहली दफा यहां से सांसद हेतु फार्म भरा था -कहा था गंगा मां ने मुझे यहां बुलाया है।तब से गंगा मां राजनीति का अखाड़ा बन चुकी हैं।इस बार के चुनाव में गंगा मां की नगरी बनारस में साहिब बाल बाल बच गए।
इस बार महाकुम्भ का राजनैतिज्ञ फायदा लेने योगी और मोदी का ज़ोर है। दोनों के पोस्टर इस आध्यात्मिक स्थल पर अपनी राजनीति चमकाने की कोशिश में लगे हैं। ऐसे दृश्य इस महाकुंभ की असलियत उजागर करते हैं।
ज्ञात हुआ है कि जब सारा देश गणतंत्र दिवस के उल्लास में डूबा था उसी दिन हमारे संविधान की जगह, मनुवादी संविधान निर्माताओं की बैठक भी थी जो देश से लोकतंत्र और वर्तमान संविधान को ख़त्म करने और उसकी जगह अपने राजसी शासन की धाराओं के निर्माण को अंतिम रुप देने एकत्रित हुए थे। जिसके दो शब्द ही बहुत कुछ कह लेते सांसदों को धर्म सांसद कहा जाएगा। ईसाई, मुसलमानों को वोट देने का अधिकार नहीं होगा। शिक्षा ब्राह्मण और क्षत्रिय को मिलेगी उसके लिए गुरुकुल होंगे।मंत्री वहीं बन सकेंगे जो शस्त्र विद्या में निपुण होंगे।आदि आदि।
स्वाभाविक तौर पर जब इस तरह की कोशिश लोकतंत्र की आड़ में हो रही हो तब गरीबों को आस्था के नाम पर क्षति पहुंचाने वालों की पोल खुली ही चाहिए आस्था के जंजाल में डूबे लोगों की जागृति के लिए डुबकी के बहाने सरकार के इरादों पर चोट करना प्रतिपक्ष का कर्तव्य हो जाता है।आज के तकनीकी युग में कथित डुबकी को भंजाने वालों का भंडाफोड़ करना हर तरह से लाजमी है। क्योंकि यहां सैंकड़ों पंडालों में अंधश्रद्धा की दूकानें चमत्कारी बाबा और बाबाईन लगाए बैठे हैं।याद आते हैं अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के अध्यक्ष डा नरेंद्र दाभोलकर जिनकी हत्या सनातन संस्था के एक व्यक्ति ने कर दी थी। क्योंकि ये चाहते हैं लोग यूं ही कूप मंडूप बने रहें। इस समिति के ही तर्क शास्त्री श्याम मानव ने धीरेन्द्र शास्त्री को चमत्कार दिखाने की चुनौती दी थी तब धीरेन्द्र को दुम दबाकर भागना पड़ा था।जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने कहा था कि अगर धीरेंद्र शास्त्री जोशीमठ के घरों की दीवारों को चमत्कार से भर दें, तो वे उनका स्वागत करेंगें। किंतु वे इससे भाग रहे हैं और सरकार के संरक्षण में अंधविश्वास फैला रहे हैं।
डुबकी ज़रुर लगाइए लेकिन अंध नहीं पूर्ण श्रद्धा से ज्ञान के सागर में। तभी हम वास्तविक पुण्य के भागी बनेंगे। तथास्तु।
खरगे जी ने अंधविश्वास के खिलाफ जो कहा है वह स्वागतेय है।उसे आज नहीं कल, सच मानना ही पड़ेगा। अंधश्रद्धा की यह धुंध एक दिन ज़रूर छंटेगी ।
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