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चाह कर भी नवीन पटनायक नहीं बन सकतीं ममता बनर्जी, ये है बड़ी वजह

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सोशल मीडिया पर लोग कहने लगे हैं कि ममता बनर्जी अपने बवालों से जानी जाती हैं और नवीन पटनायक अपने काम से.

दो व्यक्तियों या यूं कहें कि दो नेताओं में कितना फर्क हो सकता है इसका ताज़ा उदाहरण पिछले हफ्ते प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) के ओडिशा (Odisha) और पश्चिम बंगाल (West Bengal) के दौरे में देखने को मिला. समुद्री तूफ़ान से दोनों तटवर्ती पूर्वी राज्यों में भारी क्षति हुई थी. कोरोना महामारी से जूझते भारत के लिए प्रकृति की यह दूसरी मार थी. पश्चिमी तट के राज्यों में ऐसे ही समुद्री तूफ़ान से कई राज्यों को नुकसान का सामना करना पड़ा था. पिछले शुक्रवार को मोदी पहले ओडिशा और फिर पश्चिम बंगाल गए, जहां उनका राज्य के मुख्यमंत्रियों और अधिकारियों से मीटिंग पूर्व नियोजित था. ओडिशा में मीटिंग काफी सौहार्दपूर्ण माहौल में हुआ. नुकसान का आंकलन करने में समय लगता है और उसके बारे में सिर्फ अनुमान ही लगाया जा सकता है. केंद्र सरकार हुए नुकसान की शत प्रतिशत भरपाई तो नहीं कर सकती, पर इस दिशा में एक योगदान दिए जाने की परंपरा शुरू से चली आ रही है.

जनता को राहत पहुंचाने की जिम्मेदारी मुख्य रूप से राज्य सरकारों की होती है. ओडिशा में मीटिंग में प्रधानमंत्री मोदी ने ओडिशा को 500 करोड़ रुपए की सहायता राशि देने की पेशकश की. प्रदेश के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक (CM Naveen Patnaik) ने मोदी को सम्मानजनक तरीके से कहा कि राज्य नुकसान की पूर्ति अपने दम पर करने में पूर्ण रूप से सक्षम है और चूंकि भारत कोरोना से जूझ रहा है, इसलिए ओडिशा सरकार केंद्र से कोई मांग नहीं रख रही है, पर उसकी अपेक्षा है कि केंद्र सरकार कोई ऐसी योजना लाये जिससे प्रदेश में बार-बार समुद्री तूफ़ान से होने वाले नुकसान को रोका जा सके.

मीटिंग छोड़ कर चली गईं थीं ममता बनर्जी

मोदी के ओडिशा के निकटवर्ती राज्य पश्चिम बंगाल में प्रवेश करते ही समुद्री तूफ़ान यास से कहीं ज्यादा बड़ा राजनीतिक तूफ़ान मच गया, जिसका असर अभी तक दिख रहा है. राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से जैसी की उम्मीद थी वैसा ही हुआ, उन्हें केंद्र सरकार से बिना पंगा लिए शांति नहीं मिलती. प्रधानमंत्री को लेने राज्य सरकार की तरफ से हवाईअड्डे पर कोई नहीं गया, मुख्यमंत्री और राज्य के मुख्य सचिव प्रधानमंत्री की मीटिंग में आधा घंटा देरी से पहुंचे, मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री को दस्तावेजों का एक पुलिंदा पकड़ाया और मुख्य सचिव के साथ मीटिंग छोड़ कर चली गयीं. उन दस्तावेजों में राज्य सरकार की तरफ से 20,000 करोड़ रुपयों के क्षति का ब्योरा था. प्रधानमंत्री ने पश्चिम बंगाल को ओडिशा से दुगना राशि देने की घोषणा की पर ममता बनर्जी के लिए यह ऊंट के मुंह में जीरा डालने वाली बात थी.

मुख्य सचिव के तबादले पर केंद्र से मतभेद

पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव के तबादले पर केंद्र और राज्य सरकार के बीच जो रस्साकसी अभी भी चल रही है उस पर बहुत कुछ कहा और लिखा गया है. और यह ड्रामा अभी भी जारी है. बात करते हैं अन्य राज्यों की जिसे हाल ही में समुद्री तूफ़ान से नुकसान का सामना करना पड़ा था. पश्चिमी तट के सभी राज्यों में अरब सागर में आये तूफ़ान से क्षति हुआ. गुजरात में इसका सबसे ज्यादा असर दिखा. प्रभावित राज्यों में केरल और महाराष्ट्र में भी गैर-बीजेपी दलों की सरकार है, पर उन राज्यों ने नुकसान और अनुदान राशि पर कोई विवाद खड़ा नहीं किया. पश्चिम बंगाल में गुजरात और ओडिशा से ज्यादा नुकसान होने की कोई रिपोर्ट नहीं है. पर बवाल सिर्फ पश्चिम बंगाल में ही हुआ

प्रधानमंत्री बनने का सपना देख रही हैं ममता बनर्जी

कारण साफ़ है, ओडिशा और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्रियों के विपरीत ममता बनर्जी की नज़र अब केंद्र की राजनीति पर है. शायद उनके अन्दर कहीं यह सोच बसती जा रही है कि 2024 के आमचुनाव में उनके प्रधानमंत्री बनने की सम्भावना तब ही बन सकती है जब वह हर एक बात पर मोदी सरकार को विवाद में घेरती रहें. दोनों राज्यों ओडिशा और पश्चिम बंगाल को आनेवाले तूफ़ान की पूर्व जानकारी थी. सभी को पता होता है कि तूफ़ान में क्या क्षति होती है, मकान टूट जाते हैं, बिजली और पानी की सप्लाई ठप्प हो जाती है. ओडिशा में सात लाख लोगों को समय रहते हुए सुरक्षित जगहों पर पहुंचा दिया गया था, बिजली के तार और खम्भे, पंप इत्यादी की तैयारी तूफ़ान आने से पहले ही कर ली गयी थी, सरकारी कर्मचारियों को जिनकी इन व्यस्थाओं को बहाल करने की जरूरत होती है, तैनाती कर दिया गया था

.नवीन पटनायक अपने काम से जाने जाते हैं

ओडिशा के मुख्य सचिव सुरेश महापात्रा का एक बयान आया है, इसमें उन्होंने कहा कि ओडिशा के पास राज्य के आपदा फण्ड में 600 करोड़ रुपए हैं जिसमें से 300 करोड़ रुपए का उपयोग करोना से लड़ाई में और बाकी के 300 करोड़ रुपए का इस्तेमाल तूफ़ान से हुए नुकसान की भरपाई में होगा. केंद्र सरकार से मिले 500 करोड़ रुपए का भी इसमें इस्तेमाल होगा और कुल 800 करोड़ रुपए इस मदद के लिए फिलहाल पर्याप्त राशि है. क्योंकि ओडिशा में आपदा के नाम पर भ्रष्टाचार नहीं होता और नवीन पटनायक को पता है कि सरकारी कर्मचारियों से काम कैसे लिया जाता है. ओडिशा के मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव का आचरण सराहनीय रहा है.

वहीं दूसरी तरफ पश्चिम बंगाल में राजनीति से प्रेरित तूफ़ान ऐसा उठा जो अभी भी थमने का नाम नहीं ले रहा. पश्चिम बंगाल में तूफ़ान का सामना करने की दिशा में पहले से क्या तैयारी की गयी थी, इसकी अभी तक कोई जानकारी नहीं है. संभव है, कोई तैयारी हुई ही नहीं हो. नुकसान कितना हुआ और उसकी भरपाई के लिए कितने पैसों की ज़रुरत है इससे ज्यादा पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री का फोकस सिर्फ इसी बात पर रहा कि मीटिंग में बंगाल के नेता प्रतिपक्ष को क्यों बुलाया गया और केंद्र ने क्यों ‘उनके’ मुख्य सचिव का दिल्ली तबादला कर दिया.

यहां यह बताना जरूरी है कि पश्चिम बंगाल की ही तरह ओडिशा में भी बीजेपी अब प्रमुख विपक्षी दल है. नवीन पटनायक और ममता बनर्जी में फर्क इतना ही है कि पटनायक काम की राजनीति करते हैं बेवजह संघर्ष की नहीं. पटनायक 2019 में लगातार पांचवीं बार मुख्यमंत्री बने, 21 वर्षों से इस पद पर हैं और उनके नाम के साथ किसी भी तरह का विवाद नहीं जुड़ा है. ओडिशा वही राज्य है जहां कालाहांडी भी है, जहां कांग्रेस शासन में भुखमरी से मौत हुई थी, और आज ओडिशा में इतना विकास हो चुका है और राज्य इतना सक्षम हो चुका है कि तूफ़ान से हुए क्षति की पूर्ति में वह केन्द्रीय सहायता पर निर्भर नहीं था.

राज्य की भाषा नहीं बोल पाते पटनायक फिर भी 21 वर्षों से हैं मुख्यमंत्री

चूंकि पटनायक की माता पंजाबी थीं और उनकी पढ़ाई देहरादून और दिल्ली में हुई, वह ठीक से ओडिया भाषा बोल भी नहीं सकते हैं. बताने की ज़रुरत नहीं की उनके पिता बीजू पटनायक थे. भारत में नवीन पटनायक एकलौते ऐसे मुख्यमंत्री हैं जो अपनी राज्य की भाषा नहीं बोल सकते, जबकि अंग्रेजी, हिंदी और पंजाबी बोलने में वह माहिर हैं. चुनावों में वह देवनागरी लिपि में लिखी ओडिया भाषा में भाषण पढ़ते हैं. शुरू में ऐसा लगा कि ओडिशा के लोग ऐसे मुख्यमंत्री को नकार देंगे पर 21 वर्षों से मुख्यमंत्री हैं और अगले ढाई वर्षों में ज्योति बसु के साढ़े तेईस वर्षों तक तागातर मुख्यमंत्री बने रहेने का रिकॉर्ड भी तोड़ने वाले हैं.

कारण सिर्फ इतना ही है कि वह सिर्फ जनता के लिए और विकास के कामो पर ध्यान देते हैं. राज्य में विकास कितना हुआ है इसका अहसास वहां जाने से ही पता लगता है. बिना विवाद के और बिना बड़े सपने देखे नवीन पटनायक अपना काम कर रहे हैं और जनता का आशीर्वाद उनके सर पर है. काश ममता बनर्जी भी नवीन पटनायक से सबक सीख लेतीं तो पश्चिम बंगाल की जनता को तूफ़ान के बाद इतनी मुसीबतों का सामना नहीं करना पड़ता. पर दीदी हैं जिन्हें अब दिल्ली दूर नहीं दिख रही है.

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