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मनोज कुमार का निधन…प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से भी ले लिया था पंगा

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 दिग्गज कलाकार मनोज कुमार अब इस दुनिया में नहीं रहें। उन्होंने 87 साल की उम्र में इस दुनिया को अलविदा कह दिया है। मनोज कुमार को देशभक्ति फिल्मों और ‘भारत कुमार’ के नाम से खास पहचान मिली थी। उनके फैंस उन्हें ‘भारत कुमार’ के नाम से पहचानते थे। Manoj Kumar ने अपने फिल्मी करियर में ‘क्रांति’, ‘पूरब और पश्चिम’, ‘वो कौन थी’ और ‘उपकार’ जैसी बेहतरीन फिल्में की थीं। उनके निधन पर फैंस भी अपने प्रिय दिग्गज अभिनेता को Social Media पर श्रद्धांजलि दे रहे हैं। उनके जाने से पूरी बॉलीवुड इंडस्ट्री में शोक की लहर है। Manoj Kumar के निधन पर फिल्म इंडस्ट्री के लोगों ने श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा, कि महान Dada Saheb Falke पुरस्कार से सम्मानित, हमारे प्रेरणास्रोत और भारतीय फिल्म उद्योग के ‘शेर’ Manoj Kumar जी अब हमारे बीच नहीं रहे। यह फिल्म उद्योग के लिए बहुत बड़ी क्षति है और पूरी इंडस्ट्री उन्हें याद रखेगी।” मनोज कुमार स्वभाव से जिद्दी भी थे। अपनी फिल्मों में अंग्रेजों से पंगा लेने वाले मनोज कुमार ने इमरजेंसी के समय तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से भी ले लिया था पंगा। 


बताया जाता है कि पहले मनोज कुमार के इंदिरा गांधी से अच्छे संबंध थे, लेकिन आपातकाल के बाद इसमें खटास आ गई। मनोज कुमार ने आपातकाल का खुलकर विरोध किया। इसके बाद क्या था मनोज कुमार की फिल्में संकट में आने लगीं। उनकी फिल्म दस नंबरी को सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने बैन कर दिया। इसके बाद रिलीज हुई फिल्म शोर का भी ऐसा ही हाल हुआ। मनोज कुमार ने ही इसका निर्माण और निर्देशन भी किया था। इस फिल्म के रिलीज होने से पहले ही इसे दूरदर्शन पर दिखाया गया, जिसकी वजह से फिल्म सिनेमाघरों में कमाई नहीं कर पाई और इसे भारी नुकसान का सामना करना पड़ा। ऐसे में मनोज कुमार के पास कोई चारा नहीं बचा और उन्होंने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। उन्होंने कई हफ्तों तक कोर्ट के चक्कर लगाए, लेकिन इससे उन्हें फायदा हुआ और फैसला उनके पक्ष में आया। 
आपातकाल पर फिल्म बनाने से किया इनकार
सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने उन्हें आपातकाल पर फिल्म बनाने का ऑफर दिया, लेकिन मनोज ने इसे ठुकरा दिया। इस फिल्म की स्क्रिप्ट अमृता प्रीतम लिख रही थीं और यह एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म होने वाली थी। जब मनोज को इस बारे में पता चला तो उन्होंने अमृता प्रीतम से भी भिड़ लिए। यह फिल्म बनी ही नहीं। 
देशभक्ति की फिल्मों ने दिया भारत कुमार नाम
24 जुलाई 1937 को हरिकृष्ण गिरि गोस्वामी के रूप में जन्मे मनोज कुमार हिंदी सिनेमा के दिग्गज अभिनेता थे। उन्हें देशभक्ति थीम वाली फ़िल्मों में अभिनय और निर्देशन के लिए जाना जाता था। इसमें शहीद (1965), उपकार (1967), पूरब और पश्चिम (1970) और रोटी कपड़ा और मकान (1974) शामिल हैं। इन फिल्मों की वजह से ही उन्हें भारत कुमार भी कहा जाता था। उन्होंने हरियाली और रास्ता, वो कौन थी, हिमालय की गोद में, दो बदन, पत्थर के सनम, नील कमल और क्रांति जैसी चर्चित फिल्म बनाई।  वे आखिरी बार बड़े पर्दे पर 1995 में आई फिल्म मैदान-ए-जंग में नजर आए थे। मनोज कुमार को 1992 में पद्म श्री और 2015 में दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
लाल बहादुर शास्त्री के कहने पर बनाई उपकार
उल्लेखनीय है कि मनोज कुमार ने लाल बहादुर शास्त्री के कहने पर 1967 में उपकार फिल्म बनाई थी, हालांकि शास्त्री जी इसे देख नहीं पाए थे। फिल्म की रिलीज से पहले ही शास्त्री जी का निधन हो गया था। उन्होंने आखिरी बार फिल्म मैदान-ए-जंग में अभिनय किया था, जबकि 1999 में उन्होंने जय हिंद में आखिरी बार निर्देशन किया। फिर उन्होंने फिल्मों से दूरी बना ली थी।
पद्मश्री से लेकर फाल्के पुरस्कार तक 
भारतीय सिनेमा में अपने शानदार योगदान के लिए मनोज कुमार ने कई अवॉर्ड अपने नाम किए हैं। भारत सरकार ने उन्हें 1992 में पद्मश्री और 2016 में दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया। इसके अलावा, उन्हें 7 फिल्म फेयर अवॉर्ड भी मिले, जिनमें 1968 में उपकार के लिए बेस्ट फिल्म, बेस्ट डायरेक्टर, बेस्ट स्टोरी और बेस्ट डायलॉग के अवॉर्ड शामिल हैं। उन्हें एक नेशनल अवॉर्ड से भी सम्मानित किया गया है।
लाइट टेस्टिंग ने बदल दी किस्मत
मनोज कुमार शुरुआत में बहुत छोटे-छोटे काम किए। स्टूडियो में उन्हें लाइट और फिल्म शूटिंग में लगने वाले दूसरे सामानों को ढोने का काम मिला। धीरे-धीरे मनोज के काम से खुश होकर उन्हें फिल्मों में सहायक का काम मिला। फिल्मों के सेट पर बड़े-बड़े कलाकार अपना शॉट शुरू होने से कुछ देर पहले ही स्टूडियो आते थे। ऐसे में हीरो पर पड़ने वाली लाइट चैक करने के लिए मनोज कुमार को हीरो की जगह खड़ा कर दिया जाता था। एक दिन जब लाइट टेस्टिंग के लिए मनोज कुमार हीरो की जगह खड़े हुए थे। लाइट पड़ने पर उनका चेहरा कैमरे में इतना आकर्षक लग रहा था कि एक डायरेक्टर ने उन्हें 1957 में आई फिल्म फैशन में एक छोटा सा रोल दे दिया। इसके बाद क्या था मनोज कुमार ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। 

दिवंगत अभिनेता, निर्माता, निर्देशक Manoj Kumar की हिंदी Film Industry में हमेशा एक अलग पहचान रही है। मनोज कुमार का असली नाम हरिकिशन गिरि गोस्वामी (Hari Kishan Giri Goswami) था। उन्होंने अपना नाम Dilp Kumar की फिल्म देखकर बदल लिया था, क्यूंकि वे Dilip Saheb के बहुत बड़े फैन थे। मनोज कुमार ने कुछ ऐसी फिल्मों का निर्देशन किया जो आज भी काफी पसंद की जाती हैं। उनमें से ‘क्रांति’ (Kranti) एक ऐसी फ़िल्म है, जिसके जरिए उन्होंने लोगों के भीतर देशभक्ति की भावना को जगा दिया था। इस फ़िल्म के गीत आज भी लोगों के दिलों पर राज़ करते हैं।

बंटवारे में Refugee Camp में रहे Manoj Kumar

मनोज कुमार का जन्म 24 जुलाई 1937 को उत्तर-पश्चिम सीमांत प्रांत (अब खैबर पख्तुन्वा) पाकिस्तान के एक शहर एबटाबाद (Abotabad) में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। ये वही जगह है जहां कुख्यात आतंकवादी ओसामा बिन लादेन को अमेरिका के सैनिकों ने रात के अंधेरे में मार गिराया था। विभाजन के पहले ये भारत का हिस्सा हुआ करता था। Manoj Kumar जब महज 10 साल के थे, उसी वक्त विभाजन की वजह से उन्हें परिवार सहित जलियाला शेर खान से दिल्ली जाना पड़ गया था।मनोज कुमार का परिवार विजय नगर, KIngsway Camp में शरणार्थियों के तौर पर रहा। काफी समय तक मनोज कुमार और उनके परिवार को रिफ्यूजी की तरह रहना पड़ा। इस दौरान अबोध Manoj Kumar को वह सब देखना पड़ा, जिसकी कभी कल्पना भी नहीं की थी। Refugee Camp में ही Manoj Kumar के छोटे भाई Kuku का जन्म हुआ । उस समय उनकी मां और छोटे भाई की तबीयत बहुत ही ज्यादा खराब थी। मां डॉक्टरों को आवाज दे रही थी लेकिन वो सभी अंडरग्राउंड थे। मनोज कुमार ने बताया था, ‘Kuku हमे छोड़ कर जा चुका था। मां ने चीख मार मार कर मदद की गुहार लगाई लेकिन कोई सुनने वाला नहीं था। मैं बहुत गुस्से में था। मैंने एक लाठी उठाई और अंडरग्राउंड जाकर कुछ डॉक्टरों और नर्सों को बुरी तरह पीटा। मेरे पापा वहां आए और उन्होंने किसी तरह सिचुएशन संभाली।’ इसके बाद मनोज कुमार के पिता ने उन्हें कसम दिलवाई कि वह कभी मारपीट या हिंसा नहीं करेंगे। कुछ समय के बाद दिल्ली के पुराने राजेंद्र नगर इलाके में चले गए।
Hindu College, Delhi University से ग्रैजुएशन की पढ़ाई पूरी करने के बाद मनोज कुमार ने फिल्म इंडस्ट्री में जाने का फैसला किया। मनोज कुमार की पत्नी का नाम शशि गोस्वामी हैं और उनके तीन बच्चे हैं कर्म गोस्वामी, वंश गोस्वामी और मुस्कान गोस्वामी।

मनोज कुमार की पहली फिल्म थी ‘Fashion’

मनोज कुमार ने साल 1957 में पहली फिल्म ‘Fashion’ की थी। इस फिल्म में उन्होंने एक 80 वर्षीय बुजुर्ग का रोल निभाया था। इस फिल्म के बाद उन्होंने विजय भट्ट के निर्देशन में बनी साल 1962 में आई फिल्म ‘हरियाली और रास्ता’ में अभिनय किया। इसी फिल्म से Manoj Kumar की किस्मत चमक उठी। इस फिल्म में उनके अपोजिट माला सिन्हा थीं और दोनों की जोड़ी को उस वक्त दर्शकों ने काफी पसंद किया था। इसके बाद साल 1964 में उनकी एक और सुपरहिट फिल्म ‘वो कौन थी’ आई। साल 1965 में मनोज कुमार की एक और फिल्म ‘गुमनाम’ रिलीज हुई थी। इस फिल्म में दर्शकों के लिए वो सब कुछ मौजूद था, जिसने फ़िल्म को Super Hit बना दिया। इसके बाद साल 1965 में उन्होंने विजय भट्ट के ही निर्देशन में बनी फिल्म ‘हिमालय की गोद में’ काम किया, ये फिल्म भी बॉक्स ऑफिस पर हिट साबित हुई। साल 1965 में ही उनकी फ़िल्म शहीद’ आई जो उनके कैरियर की अहम फ़िल्मों में शुमार हुई। इस फ़िल्म में उन्होंने भगत सिंह का किरदार निभाया था।

‘उपकार’ का किया Manoj Kumar ने निर्देशन

साल 1967 में आई उनकी फिल्म ‘उपकार’ में वो एक किसान की भूमिका में नजर आए थे। इस फिल्म में उनके कैरेक्टर का नाम भारत था। बाद में मनोज कुमार इसी नाम से फिल्म इंडस्ट्री में फेमस हो गए। इस फिल्म का निर्माण Manoj Kumar ने भूतपूर्व प्रधानमंत्री Lal Bahadur Singh के कहने पर किया था। ये फिल्म शास्त्री जी के दिए हुए नारे ‘जय जवान जय किसान’ पर आधारित थी। हिंदी सिनेमा में जिस एक्टर को देशभक्ति की अलख जगाने के लिए जाना जाता है, वह हैं अभिनेता ‘Manoj Kumar’! मनोज कुमार ने देशभक्ति से भरी इतनी फिल्में कीं, कि उन्हें ‘भारत कुमार’ के नाम से जाना जाने लगा। मनोज कुमार सिर्फ एक एक्टर ही नहीं, बल्कि डायरेक्टर, एडिटर और लिरिस्ट भी रहे हैं। मनोज कुमार ने अपने करियर में कई फिल्मों का निर्देशन भी किया, जिनमें जय हिंद, क्लर्क, क्रांति, रोटी कपड़ा और मकान, शोर, पूरब और पश्चिम और उपकार जैसी फिल्में शामिल हैं। मनोज कुमार ने कई यादगार फिल्मों में अभिनय किया, इनमें ‘पिया मिलन की आस’, ‘हरियाली और रास्ता’, ‘शहीद’, ‘वो कौन थी’, ‘दो बदन’, ‘हिमालय की गोद में’, ‘गुमनाम’ और ‘सावन की घटा’ के अलावा ‘पूरब और पश्चिम’, ‘यादगार’, ‘मेरा नाम जोकर’, ‘बलिदान’ और ‘रोटी कपड़ा और मकान’ जैसी ढेरों फिल्में शामिल हैं।

पद्मश्री अवॉर्ड से सम्मानित

Manoj Kumar को साल 1972 में आई फिल्म ‘बेईमान’ के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता और साल 1975 में आई फिल्म ‘रोटी कपड़ा और मकान’ के लिए सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का फिल्मफेयर अवॉर्ड मिला। इसके बाद साल 1992 में उन्हें पद्मश्री पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया। साल 2016 में मनोज कुमार को दादा साहब फाल्के पुरस्कार भी दिया गया। अपनी अनोखी अदाकारी और Dialogue Delivery के अनूठे अंदाज़ से अपना नाम भारतीय सिनेमा के इतिहास में सुनहरे अक्षरों में दर्ज करवा कर Bollywood के दिग्गज ‘Bharat Kumar’ अनंत में विलीन हो गए। देश के हर सिने प्रेमी का Manoj Kumar को शत शत नमन!

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