अग्नि आलोक
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*केन्द्रीय जांच एजेंसियों के दायरे में प्रदेश के कई अफसर*

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*परिवहन आयुक्त दीपांशु काबरा की अनिवार्य सेवानिवृत्ति की उठने लगी मांग*

*आनंद छाबड़ा ने एसएस फंड में की करोड़ों की हेराफेरी, क्या होगी कार्यवाही?*

*ईओडब्‍ल्‍यू में आईजी के पद पर तैनात रहते आरिफ शेख ने कई भ्रष्ट अफसरों के खिलाफ दर्ज आपराधिक प्रकरणों का करवाया था एकतरफा खात्मा*

*दागी आईएएस-आईपीएस अफसरों को राज्य से बाहर करने की मांग**

*विजया पाठक,

छत्तीसगढ़ में परिवहन आयुक्त दीपांशु काबरा को अनिवार्य सेवानिवृत्ति की मांग उठने लगी है। आधा दर्जन आईपीएस के खिलाफ भ्रष्टाचार के गंभीर मामले सुर्खियों में हैं। छत्तीसगढ़ में अखिल भारतीय सेवाओं के अधिकारियों की कार्यप्रणाली सवालों के घेरों में है। यह अधिकारी भ्रष्टाचार और गंभीर कदाचारों के मामलों को लेकर अखिल भारतीय सेवाओं की साख पर बट्टा सा लगा दिया है, वहीं राज्य सरकार की छवि पर बुरा प्रभाव डाल रहे हैं। राज्य में लगभग आधा दर्जन आईपीएस अधिकारी हैं, जिनके क्रियाकलापों में भ्रष्टाचार को लेकर मामला कायम होने से सरकार की छवि धूमिल हुई है। राजनीति और अपराध के गढ़जोड़ से ऐसे अफसरों ने मलाईदार पदों पर बने रहने के लिए कानून की धज्जियां उड़ाई हैं। उनके कारनामों से अखिल भारतीय सेवाओं की विश्वसनीयता पर भी बुरा प्रभाव पड़ा है। प्रदेश की जनता का पढ़ा-लिखा अब मानने लगा है कि यूपीएससी के जरिए चयनित होने वाले अफसर भ्रष्टाचार करने पर ज्यादा जोर दे रहे हैं, न कि कानून लागू करने पर।

छत्तीसगढ़ में ऐसे अफसरों की तादात लगातार बढ़ती जा रही है, जो राजनेताओं के साथ मिलकर भ्रष्टाचार के एक से बढ़कर एक मामलों को अंजाम दे रहे हैं। इस कड़ी में आईपीएस अफसरों के खिलाफ लगातार एफआईआर दर्ज हो रही हैं। यहां तक कि उनके ठिकानों पर आयकर और ईडी जैसी केन्द्रीय एजेंसियों ने छापेमारी कर कई बढ़े खुलासे किए हैं। ताजा मामला राज्य अपराध अनुसंधान ब्यूरो में दर्ज एफआईआर का है। जिसमें कई आईएएस/आईपीएस और राज्य प्रशासनिक अधिकारियों की कार्यप्रणाली की चर्चा का विषय बनी हुई है। क्या एफआईआर आर्थिक मामलों की जांच करने वाले देश की सबसे बड़ी एजेंसी प्रवर्तन निदेशालय में दर्ज की है। अखिल भारतीय सेवाओं के अधिकारियों की भूमिका को लेकर पहले से ही कई विवाद सुर्खियों में रहे हैं। ऐसे विवादों को लेकर यूपीएससी को और केन्द्र सरकार को भी प्रशासनिक और अदालती आलोचनाओं का सामना करना पड़ा है। अदालत में चुनौती दिये गये ज्यादातर मामले अखिल भारतीय सेवाओं के भ्रष्ट आचरणों से जुड़े हुए थे।

छत्तीसगढ़ में 2200 करोड़ के शराब घोटाले और मॅनी लार्डिंग के अपराधों की जड़ें आईएएस/आईपीएस अफसरों के ठिकानों तक फैली हैं। जानकारी के अनुसार आईपीएस अधिकारी दीपांशु काबरा के खिलाफ ईडी ने जो एफआईआर दर्ज कराई है वह शराब घोटाले से जुड़ी है। इस एफआईआर को दर्ज करवाने से पहले ईडी ने काबरा के भिलाई, दुर्ग और रायपुर स्थित ठिकानों पर छापेमारी की थी। सूत्र बताते हैं कि छत्तीसगढ़ के अलावा महाराष्ट्र के कई बड़े शहरों में काबरा ने बड़े पैमाने पर चल-अचल संपत्ति में निवेश किया है। सूत्र यह भी बता रहे हैं कि छापेमारी के दौरान मिली एक पेन ड्राईव में कई महत्वपूर्ण जानकारियां भी एजेंसियों को मिली हैं। यह भी चर्चा है कि मामले को निपटाने को लेकर एक राजनैतिक दल के कोषाध्यक्ष से काबरा ने मुलाकात भी की थी। दीपांशु काबरा उस समय सुर्खियों में आये जब पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने उन्हें मलाईदार पदों की कुर्सी एक साथ सौंप दी थी। पहले उन्हें परिवहन आयुक्त बनाया था। इसके बाद जनसंपर्क विभाग की बांगडोर भी सौंप दी गई थी। उनकी क्रियाकलापों से दोनों विभागों में अरबों रुपयों की लेन-देन की खबरें आ रही थी। भ्रष्टाचार के कई बड़े मामले को लेकर काबरा के खिलाफ मांग उच्च स्तर पर उठ रही हैं। सूत्र बताते हैं कि अकेले जनसंपर्क विभाग में करीब-करीब 2000 करोड़ का घोटाला हुआ है। कांग्रेस पार्टी और पूर्व मुख्यमंत्री बघेल की छवि निखारने के लिए सरकारी तिजोरियों से जनता की रकम पानी की तरह बहाई गई थी। काबरा के चलते कई पत्रकारों और मीडियाकर्मियों की नौकरियों पर भी संकट आया था। पीडि़त पत्रकार बताते हैं कि उन्हें सिर्फ इसलिए नौकरी से निकाल दिया करते थे क्योंकि उनकी लेखनी उनको पंसद नही थी। उनके मुताबिक अनुचित रूप से मोटे विज्ञापन और प्रचार-प्रसार के ठेके देकर अपात्र मीडिया संस्थानों को अपकृत किया गया है। काबरा ने सरकारी रकम का भी बेजा इस्तेमाल अपने कार्यकाल के दौरान किया है। रायपुर से लेकर दिल्ली तक मीडिया मैनेजमेंट को लेकर अरबों का घोटाला सामने आया। कई पत्रकारों को ईडी ने शिकायती पत्र सौंपकर जनसंपर्क विभाग के ठेकों पर भारी भरकम भ्रष्टाचार के आरोप लगाये हैं। यही हाल परिवहन विभाग का भी बताया जाता है। बताया जाता है कि परिवहन विभाग की चेक पोस्ट, बैरियर लूट का अड्डा बन गये थे। परिवहन चौकियों में सिर्फ उन्हीं अधिकारियों को तैनाती दी जाती थी, जो अवैध वसूली को अंजाम दे सकते थे। काबरा के निर्देश पर बड़ी तादात में गुंड़ों-बदमाशों की तैनाती परिवहन चौकियों में की गई थी। ये लोग ट्रक ड्राईवर, वाहन चालकों से मोटी रकम वसूला करते थे। ऐसी घटनाओं के कई वीडियो सोशल मीडिया में वायरल हुए थे। परिवहन विभाग में तैनात किये गये इन गुंडों-बदमाशों के खिलाफ राज्य की विभिन्ने थानों में शिकायतें दर्ज करवाई थीं। लेकिन आईपीएस अधिकारी दीपांशु काबरा के चलते पीडि़तों को न्याय नही मिल पाया था। ऐसे पीडि़त अब मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय से परिवहन आयुक्त के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाने की मांग कर रहे हैं। सत्ता परिवर्तन के बाद राज्य में आईपीएस अधिकारियों की अवैध वसूली और भ्रष्टाचार से जुड़े संगीन मामलों की जांच सीबीआई को सौंपे जाने की मांग उठ रही है। काबरा के अलावा 2005 बैच के आईपीएस आरिफ शेख और आनंद छाबड़ा के खिलाफ भी उच्च स्तरीय जांच की मांग उठ रही है। इन दोनों अफसरों ने भी भ्रष्टाचार को अंजाम देने में मुख्य भूमिका निभाई है। ईओडब्‍लयू में आईजी के पद पर तैनात रहते आरिफ शेख ने उन भ्रष्ट अफसरों के खिलाफ दर्ज आपराधिक प्रकरणों का एकतरफा खात्मा कर दिया, जो पूर्ववर्ती बीजेपी सरकार के कार्यकाल में दर्ज किये गये थे। इन भ्रष्ट अफसरों से जमकर उगाही की गई थी और अदालत में खात्मा प्रकरण पेश कर दिया था। यही हाल 2001 बैच के आईपीएस आनंद छाबड़ा का बनाया गया था।

*आनंद छाबडा ने किया एसएस फंड (मुखबिरी) का दुरूपयोग*

एसएस फंड की एक बड़ी रकम नक्सल प्रभावी क्षेत्र में भेजे जाने के बजाय आनंद छाबडा ने खुद ही हथिया ली थी। बताया जाता है कि राज्य सरकार मुखबिरी फंड से प्रतिमाह करोड़ों रुपये विभिन्नि मदों के खुफिया एजेंसी के अफसरों को सौंपती है ताकि पुलिस प्रशासन को महत्व पूर्ण खुफिया जानकारी समय पर प्राप्त हो सकें। लेकिन इस रकम का जमकर दुरुपयोग किया गया है। सूत्र दावा कर रहे हैं कि एसएस फंड की बड़ी रकम साल दर साल आनंद छाबड़ा हड़प लिया करते थे। बताते हैं कि नक्सल प्रभावित इलाके हो या मैदानी जिलों में इसी फंड से नाम मात्र की रकम पुलिस अधिकारियों को जारी की जाती थी। उधर मुखबरी न मिलने से नक्सल प्रभावित इलाकों में पुलिस का सूचना तंत्र विध्वंस हो गया था। इसका खामियाजा आम जनता और केन्द्रीय सुरक्षाबलों को भोगना पड़ा। कई जिलों में नक्सलियों ने आम जनता और केन्द्रीय सुरक्षाबलों के जवानों को मौत के घाट उतार दिया था। बस्त‍र के कई पत्रकार और नक्सनली मामलों के जानकार बताते हैं कि एसएस फंड के दुरुपयोग करने से पुलिस और केन्द्रीय सुरक्षा बलों को जानमाल का नुकसान उठाना पड़ा। एसएस फंड की रकम सही हाथों में पहुंचती तो आम जनता और पुलिसकर्मियों की जान बचाई जा सकती थी। महालेखाकार और केन्द्र सरकार से एसएस फंड की इंटरनल ऑडिट कराये जाने की मांग उठाई जा रही है। इसके लिए जल्द ही एक प्रतिनिधि मंडल गृह मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों से मिलने के लिए दिल्ली रवाना होने वाला है। केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह को सौंपे जाने वाले ज्ञापन में दागी आईपीएस अधिकारियों को जल्द‍ ही अनिवार्य सेवानिवृत्ति करने की मांग की गई है। ताकि भ्रष्टाचार के समस्त मामलों की जांच निष्पक्ष कराई जा सके।

गौरतलब है कि‍ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने विधानसभा चुनाव के पूर्व अपनी जनसभाओं में भ्रष्टाचारियों को सबक सिखाने का ऐलान किया था। राज्य के कई जनप्रतिनधियों ने प्रधानमंत्री मोदी से आग्रह किया है कि लोकसभा चुनाव से पूर्व अखिल भारतीय सेवाओं के दागी अधिकारियों को राज्य से बाहर किया जाये।

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