न देश अंधेर नगरी हो,
न दिखे राजा निरंकुश होता हुआ…!
न व्यवस्था हो पाए चौपट,
न दिखे कभी कानून सोता हुआ…!
खिली हो मुस्कान चेहरे पर,
हर कोई हो फूल सा खिलता हुआ….!
न दिखे मुरझाया कोई चेहरा ,
न पीला पात सा झरता हुआ….!
हर मरीज का इलाज हो,
हो हर दुःख दर्द की यहाँ पर दवा
अबाल वृद्ध स्वस्थ हों यहाँ,
न दिखे यहाँ रोग कोई फैलता हुआ…!
छत हो यहाँ हर एक के सर पर,
हो वस्त्र हरेक के तन पर
कोई भी न मिले भूखा, नंगा
या फिर फुटपाथ पर सोता हुआ….!
स्कूल हो हर बच्चे के लिए
हाथ में हर नौजवां के काम हो
न दिखे इस देश में एक भी हाथ
खैरात के लिए उठता हुआ….!
करता हूँ दुआ कि आवाम में
आजाए समझ इतनी,इतनी हिम्मत
हर शख्स यहाँ पर दिखे
अन्याय के खिलाफ बोलता हुआ….!
नये साल में जन गण के लिए,
मांगता हूँ बस इतनी सी दुआ।
इतनी उपलब्धियाँ हों कि कतार में
न दिखे कोई खड़ा होता हुआ….!
रामकिशोर मेहता ,अहमदाबाद, गुजरात
संकलन - निर्मल कुमार शर्मा, गाजियाबाद, उप्र