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*दवाएं बीमारियां नहीं, हमें मारती हैं*

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(मेडिसिन नहीं, मेडिटेशन)

      ~ डॉ. विकास मानव

हम विपरीत को मिटा नहीं सकते. एक को बढ़ाकर उसके विपरीत को मिटा नहीं सकते हम, सिर्फ बढ़ा सकते हैं।

     आज जमीन पर जितनी दवाएं हैं, कभी भी नहीं थीं, लेकिन बीमारियां कम नहीं हुईं। बीमारियां बढ़ गई हैं।

      सच तो यह है कि नई-नई मौलिक बीमारियां पैदा हो गईं, जो कभी भी नहीं थीं। हमने दवाओं का ही आविष्कार नहीं किया, हमने बीमारियां भी आविष्कृत की हैं। 

 दवाइयां बढ़ें, तो बीमारियां कम होनी चाहिए; यह सीधा-सा लॉजिक है। दवाइयां बढ़ें, तो बीमारियां बढ़नी चाहिए, यह क्या है? यह कौन सा नियम काम कर रहा है?

     असल में, जैसे ही दवा बढ़ती है, वैसे ही आपके बीमार होने की क्षमता बढ़ जाती है। भरोसा अपने पर नहीं रह जाता, दवा पर हो जाता है। बीमारी से फिर आपको नहीं लड़ना है, दवा को लड़ना है। आप बाहर हो गए।

    जब दवा बीमारी से लड़ कर बीमारी को दबा देती है, तब भी आपका अपना रेसिस्टेंस, अपना प्रतिरोध नहीं बढ़ता। आपकी अपनी शक्ति नहीं बढ़ती, बल्कि जितना ही आप दवा का उपयोग करते जाते हैं, उतना ही बीमारी से आपकी लड़ने की क्षमता रोज कम होती चली जाती है।

     दवा बीमारी से लड़ती है, आप बीमारी से नहीं लड़ते। आप रोज कमजोर होते जाते हैं। आप जितने कमजोर होते हैं, उतनी और भी बड़ी मात्रा की दवा जरूरी हो जाती है। जितनी बड़ी मात्रा की दवा जरूरी हो जाती है, आपकी कमजोरी की खबर देती है। उतनी बड़ी बीमारी आपके द्वार पर खड़ी हो जाती है।

      यह सिलसिला जारी रहता है। यह लड़ाई दवा और बीमारी के बीच है; आप इसके बाहर हैं। आप सिर्फ क्षेत्र हैं, कुरुक्षेत्र, वहां कौरव और पांडव लड़ते हैं। वहां बीमारियों के जर्म्स और दवाइयों के जर्म्स लड़ते हैं। आप कुरुक्षेत्र हैं। आप पिटते हैं दोनों से।

     बीमारियां मारती हैं आपको; कुछ बचा-खुचा होता है, दवाइयां मारती हैं आपको। लेकिन दवा इतना ही करती है कि मरने नहीं देती; बीमारी के लिए आपको जिंदा रखती है। दवाओं और बीमारियों के बीच कहीं कोई अंतर-संबंध नहीं है.

जिस दिन दुनिया में कोई दवा न होगी, उसी दिन बीमारी मिट सकती हैं. यह बात हमारी, समझ में न आएगी।

 हमारा लॉजिक कुछ और है। कोई दवा न हो, तो बीमारी से आपको लड़ना पड़ेगा। आपकी शक्ति जगेगी। दवा का भरोसा खुद पर भरोसा कम करवाता चला जाता है। ध्यान हमें हमारे खुद से मिलवाता है. खुद में ख़ुदा का अनुभव होता है. ख़ुदा कभी कमजोर पड़ सकता है क्या?

     हम देख सकते हैं कि किस भांति हमारे शरीर दवाओं से भर गए हैं। लेकिन कोई उपाय नहीं है। हर घर में आज मिनी मेडिकल स्टोर है.

इसे हम ऐसा समझें : जितनी हम ऐसी कृत्रिम सुरक्षा में हो जाते हैं, उतने असुरक्षित हो जाते हैं। इसलिए मेडिसिन नहीं, मेडिटेशन.

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