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ध्यान और सप्त-शरीर :  प्रखर पॉजिटिव माइंड- प्रेमपूर्ण चित्त चाहता है ईश्वरत्व

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     डॉ. विकास मानव 

हमारे ध्यान की जो धारा है, वह जो गैर-मौजूद है, उसकी तरफ बहती है। जैसे आपका एक दांत टूट जाए, तो जीभ उस दांत की तरफ चलने लगती है। जो दांत मौजूद हैं, उनकी तरफ नहीं चलती। और भलीभांति एक दफे पता लगा लिया कि टूट गया, खाली जगह छूट गई, फिर भी दिनभर जीभ वहीं दौड़ती रहती है! जहां अभाव है, वहां हम खोजते हैं।

       जिसका अति भाव है, जो एकदम मौजूद है घना होकर, वहां हम नहीं खोजते।

     मन के गहरे नियमों में एक यह है कि जो हमें उपलब्ध है, उसकी हम विचारणा छोड़ देते हैं। जो हमें उपलब्ध नहीं है, उसकी हम खोज करते हैं। जो हमारे पास है, उसे हम भूल जाते हैं। जो हम से दूर है, उसकी हम स्मृति से भर जाते हैं। जिसे हम खो देते हैं, उसका पता चलता है; और जिसे हम कभी नहीं खोते, उसका पता भी नहीं चलता। 

हमारे सबके पास निगेटिव माइंड है, हमारे पास नकारात्मक मन है। हमें मित्र तब दिखाई पड़ता है, जब वह घर से जा चुका होता है। हमें सुख का भी तब पता चलता है, जब वह हाथ से छूट गया होता है।

      हमें प्रेम का भी तब पता चलता है, जब प्रेम का दीया बुझने लगता है। हमें पता ही तब चलता है, जब कोई चीज समाप्त होती है। जब कोई मरता है, तभी हमें पता चलता है कि वह था। जब तक वह था, तब तक हमें पता ही नहीं चलता।

      पिता घर में मौजूद है, बेटे को बिलकुल पता नहीं चलता कि है। जिस दिन मरेगा पिता, उस दिन पता चलेगा। उस दिन रोएगा, छाती पीटेगा। और जब तक पिता मौजूद था, तब कभी दो क्षण भी उसके पास नहीं बैठा था। बड़े आश्चर्य की बात है।

      तब तक कभी फुर्सत न मिली थी कि दो क्षण उसके पैरों पर हाथ रखकर बैठ जाए। अब मुर्दे की छाती पर सिर पटकेगा।

     निगेटिव माइंड है। जो नहीं है, बस, वह हमारे लिए महत्वपूर्ण हो जाता है। जो है, वह गैर-महत्वपूर्ण हो जाता है।

इसीलिए दुनिया में कोई आदमी अमीर नहीं हो पाता। कितना ही धन मिल जाए, गरीबी नहीं मिटती। क्योंकि निगेटिव माइंड गरीब है। 

     निगेटिव माइंड कभी अमीर नहीं हो सकता। क्योंकि जो भी मिल जाएगा, वह भूल जाएगा; और सदा मिलने को बाकी रहेगा, वह याद रहेगा।

भिखमंगे तो भिखमंगे होते ही हैं, अरबपति भी उतने ही भिखमंगे होते हैं। जहां तक भिखमंगेपन का सवाल है, भिखमंगे को जो उसके पास है, वह दिखाई नहीं पड़ता; अरबपति को भी, जो उसके पास है, वह दिखाई नहीं पड़ता। 

     भिखमंगे को भी उसकी मांग रहती है, जो पास नहीं है; अरबपति को भी उसकी ही मांग रहती है, जो उसके पास नहीं है। फर्क क्या है?

        इतना ही फर्क है कि भिखमंगे के पास जो है, वह कम है भूलने को; अरबपति के पास भूलने को ज्यादा है। लेकिन भूलने को ही ज्यादा है, और तो कुछ अर्थ नहीं है। 

       भिखमंगा अपने भिक्षा के पात्र को भूलता है, अरबपति अपनी तिजोड़ी को भूलता है। लेकिन भूलने में आप तिजोड़ी भूलें कि भिक्षा का पात्र भूलें, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। न तो भिखमंगा अपने भिक्षा के पात्र का आनंद ले पाता है, न करोड़पति अपनी तिजोड़ी का आनंद ले पाता है।

जो है, वह हमें दिखाई नहीं पड़ता। और परमात्मा अतिशय है। एक इंचभर जगह नहीं है, जहां वह नहीं है। इसीलिए करोड़ में कभी कोई एक उसकी खोज पर निकलता है। प्रखर और पाजिटिव माइंड, एक प्रेमपूर्ण चित्त ही भगवत्ता को उपलब्ध हो सकता है।

       उसे देखना शुरू करें, जो है। उसे भूलना शुरू करें, जो नहीं है। खाली स्थानों में मत भटकें; भरे स्थानों में जीएं। और ध्यान रहे, हर आदमी के पास इतना है कि काश, वह देखने लगे, तो शायद इस जमीन पर गरीब आदमी खोजना मुश्किल है।

*आपका सप्त-शरीर और जीवन-सत्य :*

     मनुष्य के पास सात प्रकार के शरीर हैं। एक शरीर तो जो हमें दिखाई पड़ता है–फिजिकल बॉडी, भौतिक शरीर। दूसरा शरीर जो उसके पीछे है और जिसे ईथरिक बॉडी कहें–आकाश शरीर। और तीसरा शरीर जो उसके भी पीछे है, जिसे एस्ट्रल बॉडी कहें–सूक्ष्म शरीर। और चौथा शरीर जो उसके भी पीछे है, जिसे मेंटल बॉडी कहें–मनस शरीर। 

      पांचवां शरीर जो उसके भी पीछे है, जिसे स्प्रिचुअल बॉडी कहें–आत्मिक शरीर। छठवां शरीर जो उसके भी पीछे है, जिसे हम कास्मिक बॉडी कहें–ब्रह्म शरीर। और सातवां शरीर जो उसके भी पीछे है, जिसे हम निर्वाण शरीर, बॉडीलेस बॉडी कहें–अंतिम। 

   इन सात शरीरों के संबंध में थोड़ा समझेंगे तो फिर कुंडलिनी की बात पूरी तरह समझ में आ सकेगी। 

पहले सात वर्ष में भौतिक शरीर ही निर्मित होता है। जीवन के पहले सात वर्ष में भौतिक शरीर ही निर्मित होता है, बाकी सारे शरीर बीजरूप होते हैं; उनके विकास की संभावना होती है, लेकिन वे विकसित उपलब्ध नहीं होते। पहले सात वर्ष, इसलिए इमिटेशन, अनुकरण के ही वर्ष हैं। पहले सात वर्षों में कोई बुद्धि, कोई भावना, कोई कामना विकसित नहीं होती, विकसित होता है सिर्फ भौतिक शरीर। 

      कुछ लोग सात वर्ष से ज्यादा कभी आगे नहीं बढ़ पाते; कुछ लोग सिर्फ भौतिक शरीर ही रह जाते हैं। ऐसे व्यक्तियों में और पशु में कोई अंतर नहीं होगा। पशु के पास भी सिर्फ भौतिक शरीर ही होता है, दूसरे शरीर अविकसित होते हैं। 

     दूसरे सात वर्ष में भाव शरीर का विकास होता है; या आकाश शरीर का। इसलिए दूसरे सात वर्ष व्यक्ति के भाव जगत के विकास के वर्ष हैं। चौदह वर्ष की उम्र में इसीलिए सेक्स मैच्योरिटी उपलब्ध होती है; वह भाव का बहुत प्रगाढ़ रूप है। कुछ लोग चौदह वर्ष के होकर ही रह जाते हैं; शरीर की उम्र बढ़ती जाती है, लेकिन उनके पास दो ही शरीर होते हैं। 

     तीसरे सात वर्षों में  सूक्ष्म शरीर विकसित होता है–इक्कीस वर्ष की उम्र तक। दूसरे शरीर में भाव का विकास होता है; तीसरे शरीर में तर्क, विचार और बुद्धि का विकास होता है। 

इसलिए सात वर्ष के पहले दुनिया की कोई अदालत किसी बच्चे को सजा नहीं देगी, क्योंकि उसके पास सिर्फ भौतिक शरीर है; और बच्चे के साथ वही व्यवहार किया जाएगा जो एक पशु के साथ किया जाता है। उसको जिम्मेवार नहीं ठहराया जा सकता। और अगर बच्चे ने कोई पाप भी किया है, अपराध भी किया है, तो यही माना जाएगा कि किसी के अनुकरण में किया है; मूल अपराधी कोई और होगा। 

      दूसरे शरीर के विकास के बाद–चौदह वर्ष–एक तरह की प्रौढ़ता मिलती है; लेकिन वह प्रौढ़ता यौन-प्रौढ़ता है। प्रकृति का काम उतने से पूरा हो जाता है। इसलिए पहले शरीर और दूसरे शरीर के विकास में प्रकृति पूरी सहायता देती है; लेकिन दूसरे शरीर के विकास से मनुष्य मनुष्य नहीं बन पाता। तीसरा शरीर–जहां विचार, तर्क और बुद्धि विकसित होती है–वह शिक्षा, संस्कृति, सभ्यता का फल है। इसलिए दुनिया के सभी मुल्क इक्कीस वर्ष के व्यक्ति को मताधिकार देते हैं।

      लेकिन साधारणतः इक्कीस वर्ष लगते हैं तीसरे शरीर के विकास के लिए। और अधिकतम लोग तीसरे शरीर पर रुक जाते हैं; मरते दम तक उसी पर रुके रहते हैं; चौथा शरीर, मनस शरीर भी विकसित नहीं हो पाता। 

     जिसको मैं साइकिक कह रहा हूं, वह चौथे शरीर की दुनिया की बात है– मनस शरीर की। उसके बड़े अदभुत और अनूठे अनुभव हैं। जैसे जिस व्यक्ति की बुद्धि विकसित न हुई हो, वह गणित में कोई आनंद नहीं ले सकता। वैसे गणित का अपना आनंद है। कोई आइंस्टीन उसमें उतना ही रसमुग्ध होता है, जितना कोई संगीतज्ञ वीणा में होता हो, कोई चित्रकार रंग में होता हो। 

      आइंस्टीन के लिए गणित कोई काम नहीं है, खेल है। पर उसके लिए बुद्धि का उतना विकास चाहिए कि वह गणित को खेल बना सके। 

       जो शरीर हमारा विकसित होता है, उस शरीर के अनंत-अनंत आयाम हमारे लिए खुल जाते हैं। जिसका भाव शरीर विकसित नहीं हुआ, जो सात वर्ष पर ही रुक गया है, उसके जीवन का रस खाने-पीने पर समाप्त हो जाएगा। जिस कौम में पहले शरीर के लोग ज्यादा मात्रा में हैं, उसकी जीभ के अतिरिक्त कोई संस्कृति नहीं होगी। 

जिस कौम में अधिक लोग दूसरे शरीर के हैं, वह कौम सेक्स सेंटर्ड हो जाएगी; उसका सारा व्यक्तित्व, उसकी कविता, उसका संगीत, उसकी फिल्म, उसका नाटक, उसके चित्र, उसके मकान, उसकी गाड़ियां–सब किसी अर्थों में सेक्स सेंट्रिक हो जाएंगी; वे सब वासना से भर जाएंगी। 

      जिस सभ्यता में तीसरे शरीर का विकास हो पाएगा ठीक से, वह सभ्यता अत्यंत बौद्धिक चिंतन और विचार से भर जाएगी। जब भी किसी कौम या समाज की जिंदगी में तीसरे शरीर का विकास महत्वपूर्ण हो जाता है, तो बड़ी वैचारिक क्रांतियां घटित होती हैं। 

      बुद्ध और महावीर के वक्त में बिहार ऐसी ही हालत में था कि उसके पास तीसरी क्षमता को उपलब्ध बहुत बड़ा समूह था। इसलिए बुद्ध और महावीर की हैसियत के आठ आदमी बिहार के छोटे से देश में पैदा हुए, छोटे से इलाके में। और हजारों प्रतिभाशाली लोग पैदा हुए।… 

      लेकिन आमतौर से तीसरे शरीर पर मनुष्य रुक जाता है; अधिक लोग इक्कीस वर्ष के बाद कोई विकास नहीं करते। 

लेकिन ध्यान रहे, चौथा जो शरीर है उसके अपने अनूठे अनुभव हैं–जैसे तीसरे शरीर के हैं, दूसरे शरीर के हैं, पहले शरीर के हैं। चौथे शरीर के बड़े अनूठे अनुभव हैं। जैसे सम्मोहन, टेलीपैथी, क्लेअरवायंस ये सब चौथे शरीर की संभावनाएं हैं। 

      आदमी बिना समय और स्थान की बाधा के दूसरे से संबंधित हो सकता लो है; बिना बोले दूसरे के विचार पढ़ सकता है या अपने विचार दूसरे तक पहुंचा सकता है; बिना कहे, बिना समझाए, कोई बात दूसरे में प्रवेश कर सकता है और उसका बीज बना सकता है; शरीर के बाहर यात्रा कर सकता है–एस्ट्रल प्रोजेक्शन–शरीर के बाहर घूम सकता है; अपने इस शरीर से अपने को अलग जान सकता है। 

        इस चौथे शरीर की, मनस शरीर की, साइकिक_बॉडी की बड़ी संभावनाएं हैं, जो हम बिल्कुल ही विकसित नहीं कर पाते हैं; क्योंकि इस दिशा में खतरे बहुत हैं–एक; और इस दिशा में मिथ्या की बहुत संभावना है–दो। क्योंकि जितनी चीजें सूक्ष्म होती चली जाती हैं, उतनी ही मिथ्या और फाल्स संभावनाएं बढ़ती चली जाती हैं। 

अब एक आदमी अपने शरीर के बाहर गया या नहीं–वह सपना भी देख सकता है अपने शरीर के बाहर जाने का, जा भी सकता है। और उसके अतिरिक्त, स्वयं के अतिरिक्त और कोई गवाह नहीं होगा। इसलिए धोखे में पड़ जाने की बहुत गुंजाइश है; क्योंकि दुनिया जो शुरू होती है इस शरीर से, वह सब्जेक्टिव है; इसके पहले की दुनिया ऑब्जेक्टिव है।

       तो यह जो चौथा शरीर है, इससे हमने मनुष्यता को बचाने की कोशिश की। और अक्सर ऐसा हुआ कि इस शरीर का जो लोग उपयोग करनेवाले थे, उनकी बहुत तरह की बदनामी और कंडेमनेशन हुई। योरोप में हजारों स्त्रियों को जला डाला गया विचे.ज कहकर, डाकिनी कहकर; क्योंकि उनके पास यह चौथे शरीर का काम था। 

     हिंदुस्तान में सैकड़ों तांत्रिक मार डाले गए इस चौथे शरीर की वजह से, क्योंकि वे कुछ सीक्रेट्स जानते थे जो कि हमें खतरनाक मालूम पड़े। आपके मन में क्या चल रहा है, वे जान सकते हैं; आपके घर में कहां क्या रखा है, यह उन्हें घर के बाहर से पता हो सकता है। तो सारी दुनिया में इस चौथे शरीर को एक तरह का ब्लैक आर्ट समझ लिया गया कि एक काले जादू की दुनिया है जहां कि कोई भरोसा नहीं कि क्या हो जाए! और एकबारगी हमने मनुष्य को तीसरे शरीर पर रोकने की भरसक चेष्टा की कि चौथे शरीर पर खतरे हैं। 

      खतरे थे; लेकिन खतरों के साथ उतने ही अदभुत लाभ भी थे। तो बजाय इसके कि रोकते, जांच-पड़ताल जरूरी थी कि वहां भी हम रास्ते खोज सकते हैं जांचने के। और अब वैज्ञानिक उपकरण भी हैं और समझ भी बढ़ी है; रास्ते खोजे जा सकते हैं।. 

इस चौथे शरीर की बड़ी संभावनाएं हैं। जितनी भी योग में सिद्धियों का वर्णन है, वह इस सारे चौथे शरीर की ही व्यवस्था है। और निरंतर योग ने सचेत किया है कि उनमें मत जाना। और सबसे बड़ा डर यही है कि उसमें मिथ्या में जाने के बहुत उपाय हैं और भटक जाने की बड़ी संभावनाएं हैं। और अगर वास्तविक में भी चले जाओ तो भी उसका आध्यात्मिक मूल्य नहीं है।

      चौथा शरीर अट्ठाइस वर्ष तक विकसित होता है–यानी सात वर्ष फिर और। लेकिन मैंने कहा कि कम ही लोग इसको विकसित करते हैं। 

    पांचवां शरीर बहुत कीमती है, जिसको अध्यात्म शरीर या स्प्रिचुअल बॉडी कहें। वह पैंतीस वर्ष की उम्र तक, अगर ठीक से जीवन का विकास हो, तो उसको विकसित हो जाना चाहिए। 

      लेकिन वह तो बहुत दूर की बात है, चौथा शरीर ही नहीं विकसित हो पाता। इसलिए आत्मा वगैरह हमारे लिए बातचीत है, सिर्फ चर्चा है; उस शब्द के पीछे कोई कंटेंट नहीं है। जब हम कहते हैं “आत्मा”, तो उसके पीछे कुछ नहीं होता, सिर्फ शब्द होता है; जब हम कहते हैं “दीवाल”, तो सिर्फ शब्द नहीं होता, पीछे कंटेंट होता है। हम जानते हैं, दीवाल यानी क्या।

       “आत्मा” के पीछे कोई अर्थ नहीं है, क्योंकि आत्मा हमारा अनुभव नहीं है। वह पांचवां शरीर है। और चौथे शरीर में कुंडलिनी जगे तो ही पांचवें शरीर में प्रवेश हो सकता है, अन्यथा पांचवें शरीर में प्रवेश नहीं हो सकता। चौथे का पता नहीं है, इसलिए पांचवें का पता नहीं हो पाता। और पांचवां भी बहुत थोड़े से लोगों को पता हो पाता है। जिसको हम आत्मवादी कहते हैं, कुछ लोग उस पर रुक जाते हैं, और वे कहते हैंः बस यात्रा पूरी हो गई; आत्मा पा ली और सब पा लिया। 

यात्रा अभी भी पूरी नहीं हो गई। 

इसलिए जो लोग इस पांचवें शरीर पर रुकेंगे, वे परमात्मा को इनकार कर देंगे; वे कहेंगे, कोई ब्रह्म, कोई परमात्मा वगैरह नहीं है। जैसे जो पहले शरीर पर रुकेगा, वह कह देगा कि कोई आत्मा वगैरह नहीं है। तो एक शरीरवादी है, एक मैटीरियलिस्ट है, वह कहता हैः शरीर सब कुछ है; शरीर मर जाता है, सब मर जाता है। 

      ऐसा ही आत्मवादी है, वह कहता हैः आत्मा ही सब कुछ है, इसके आगे कुछ भी नहीं; बस परम स्थिति आत्मा है। लेकिन वह पांचवां शरीर ही है। 

       छठवां शरीर ब्रह्म शरीर है, वह कास्मिक बॉडी है। जब कोई आत्मा को विकसित कर ले और उसको खोने को राजी हो, तब वह छठवें शरीर में प्रवेश करता है। वह बयालीस वर्ष की उम्र तक सहज हो जाना चाहिए–अगर दुनिया में मनुष्य-जाति वैज्ञानिक ढंग से विकास करे, तो बयालीस वर्ष तक हो जाना चाहिए। 

       सातवां शरीर उनचास वर्ष तक हो जाना चाहिए। वह सातवां शरीर निर्वाण काया है; वह कोई शरीर नहीं है, वह बॉडीलेसनेस की हालत है। वह परम है। वहां शून्य ही शेष रह जाएगा। वहां ब्रह्म भी शेष नहीं है। वहां कुछ भी शेष नहीं है। वहां सब समाप्त हो गया है।.

      निर्वाण शब्द का मतलब होता है, दीये का बुझ जाना। इसलिए बुद्ध कहते हैं, निर्वाण हो जाता है। पांचवें शरीर तक मोक्ष की प्रतीति होगी, क्योंकि परम मुक्ति हो जाएगी; ये चार शरीरों के बंधन गिर जाएंगे और आत्मा परम मुक्त होगी।  तो मोक्ष जो है, वह पांचवें शरीर की अवस्था का अनुभव है। 

     अगर चौथे शरीर पर कोई रुक जाए, तो स्वर्ग का या नरक का अनुभव होगा; वे चौथे शरीर की संभावनाएं हैं। 

     अगर पहले, दूसरे और तीसरे शरीर पर कोई रुक जाए, तो यही जीवन सब कुछ है — जन्म और मृत्यु के बीच; इसके बाद कोई जीवन नहीं है। 

     अगर चौथे शरीर पर चला जाए, तो इस जीवन के बाद नरक और स्वर्ग का जीवन है; दुख और सुख की अनंत संभावनाएं हैं वहां। 

      अगर पांचवें शरीर पर पहुंच जाए, तो मोक्ष का द्वार है। अगर छठवें पर पहुंच जाए, तो मोक्ष के भी पार ब्रह्म की संभावना है; वहां न मुक्त है, न अमुक्त है; वहां जो भी है उसके साथ वह एक हो गया। अहं ब्रह्मास्मि की घोषणा इस छठवें शरीर की संभावना है। 

     लेकिन अभी एक कदम और, जो लास्ट जंप है–जहां न अहं है, न ब्रह्म है; जहां मैं और तू दोनों नहीं हैं; जहां कुछ है ही नहीं, जहां परम_शून्य है–टोटल, एब्सोल्यूट वॉयड–वह निर्वाण है। 🍃

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