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ध्यान : मृत्यु- जन्म के दौरान होश में रहने की प्रक्रिया

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  डॉ. विकास मानव

   मृत्यु और जन्म दो घटनाएं नहीं हैं, एक ही घटना के दो छोर हैं। इसलिए एक ही सिक्के के दो पहलू होते हैं। अगर सिक्के का एक पहलू हाथ मैं आ जाए, तो दूसरा पहलू अपने — आप हाथ में आ जाएगा।

      ऐसा नहीं होता कि सिक्के का एक पहलू मेरे हाथ में हो, तो दूसरे को कैसे हाथ में लूं। वह दूसरा अपने — आप हाथ में आ जाता है। मृत्यु और जन्म एक ही घटना के दो छोर हैं। मृत्यु अगर होशपूर्ण हो जाए, तो जन्म अनिवार्य रूप से होशपूर्ण हो जाता है।

    मृत्यु यदि बेहोश हो, तो जन्म भी बेहोश होता है। अगर कोई मरते क्षण में होश से भरा रहे, तो अपने नए जन्म के क्षण में भी पूरे होश से भरा रहता है। मरते क्षण में बेहोश हो, तो नये जन्म के क्षण में भी बेहोश होता है।

हम सब बेहोश ही मरते हैं और बेहोश ही जन्मते हैं, इसलिए हमें पिछले जन्मों का कोई स्मरण नहीं रह जाता है। लेकिन पिछले जन्मों की पूरी स्मृति हमारे मन के किसी कोने में सदा उपस्थित रहती है।  यदि हम चाहें, तो इस स्मृति को जगाया जा सकता है।

     दूसरी बात : जन्म के संबंध में सीधा कुछ भी नहीं किया जा सकता। जो कुछ भी किया जा सकता है, वह मृत्यु के संबंध में ही किया जा सकता है। क्योंकि मर जाने के बाद कुछ भी करना संभव नहीं है। मरने के पहले ही कुछ भी किया जा सकता है।

      अब एक व्यक्ति बेहोश मर गया, तो यह बेहोश व्यक्ति अब जन्मने के पहले तक तो कुछ भी नहीं कर सकता है। कोई उपाय नहीं है। यह बेहोश ही रहेगा।

     इसलिए जन्म तो अगर आप बेहोश मरे हैं, तो बेहोशी में ही लेना पड़ेगा। जो कुछ भी किया जा सकता है, वह मृत्यु के संबंध में किया जा सकता है। क्योंकि मृत्यु के पहले हमें बहुत मौका है, एक पूरे जीवन का अवसर है। और इस जीवन के पूरे अवसर में जागने का प्रयास हो सकता है।

      फिर अगर कोई मृत्यु की प्रतीक्षा करता रहे कि मरते वक्त जाग जाएंगे, तो वह बड़ी भूल में है। मरते वक्त नहीं जाग सकते हैं। जागने की साधना तो मरने के बहुत पहले शुरू कर देनी पड़ेगी। उसकी तो तैयारी करनी पड़ेगी। क्योंकि अगर तैयारी नहीं है, तो बेहोशी आ ही जाएगी। बेहोशी हितकर है, अगर तैयारी न हो तो।

काशी नरेश के पेट का एक आपरेशन हुआ 1915 के करीब। वह पहला आपरेशन था पूरी पृथ्वी पर, जो बिना बेहोशी की दवा दिए किया गया। पहले तो डाक्टरों ने इनकार कर दिया। तीन अंग्रेज डाक्टर थे। उन्होंने इनकार कर दिया कि यह संभव नहीं है। क्योंकि किसी आदमी के पेट का आपरेशन हो, और दो घंटे, डेढ़ घंटे तक उसका पेट खुला रहे, बड़ा आपरेशन हो और उसे बेहोश न किया जाए, तो पूरा खतरा है।

      खतरा यह है कि इतनी पीड़ा हो कि वह आदमी चिल्लाने लगे, उछलने लगे, कूदने लगे, गिर पड़े। कुछ भी हो सकता है। इसलिए डाक्टर राजी नहीं थे।

     लेकिन काशी नरेश का कहना यह था कि मैं जितनी देर ध्यान में रहूं, उतनी देर कोई चिंता नहीं है, और मैं डेढ़ घंटे, दो घंटे ध्यान में रह सकूंगा। काशी नरेश राजी नहीं थे बेहोशी की दवा लेने को। वे कहते थे कि मैं होश में ही आपरेशन कराना चाहता हूं। डाक्टर होश में करने को राजी नहीं थे। क्योंकि होश में उतनी पीड़ा से गुजरना खतरनाक हो सकता है।

      कोई रास्ता न देखकर फिर उन्होंने पहले तो प्रयोगात्मक रूप से नरेश को ध्यान में जाने को कहा और कुछ हाथ पर छुरी चलाई ताकि वे पता लग सकें कि हाथ में कंपन होता है या नहीं। लेकिन कंपन भी नहीं हुआ और दो घंटे के बाद ही नरेश कह सके कि मेरे हाथ में दर्द हो रहा है। दो घंटे तक तो कुछ पता नहीं चला। तब फिर आपरेशन किया गया।

वह पहला आपरेशन था पृथ्वी पर, जिसमें पेट पर डेढ़ घंटे तक डाक्टर काम ‘करते रहे पेट खोलकर और किसी तरह की बेहोशी की दवा नहीं दी गई थी। नरेश पूरे होश में था।

      लेकिन इतने होश में होने के लिए गहरे ध्यान की जरूरत है। इतने ध्यान की जरूरत है, जहां कि यह पूरा पता हो कि शरीर अलग है और मैं अलग हूं। इसमें रत्ती भर भी संदेह न हो। इसमें रत्ती भर भी संदेह रहा कि मैं शरीर हूं, ऐसा जरा भी खयाल रहा, तो खतरा हो सकता है।

        मृत्यु तो बहुत बड़ा आपरेशन है, बहुत बड़ा सर्जिकल आपरेशन है। इतना बड़ा आपरेशन किसी डाक्टर ने कभी नहीं किया है जितना बड़ा मृत्यु है। क्योंकि मृत्यु में प्राणों को एक शरीर से पूरा का पूरा निकालकर दूसरे शरीर में प्रवेश करवाने का उपाय है।

     इतना बड़ा कोई आपरेशन नहीं हुआ है और न हो सकता है अभी। एकाध अंग हम काटते हैं, एकाध हिस्से को हम बदलते हैं। यहां तो पूरे प्राण की शक्ति को, पूरी ऊर्जा को, एक शरीर से हटाकर दूसरे शरीर में प्रवेश कराना है।

प्रकृति ने पहले से इंतजाम कर रखा है कि आप बेहोश हो जाएं। यह हितकर है। क्योंकि उतनी पीड़ा को शायद झेला ही न जा सके। और यह भी हो सकता है कि चूंकि उतनी पीड़ा नहीं झेली जा सकती, इसलिए ही हम बेहोश हो जाते हैं।

      लेकिन हितकर तो है, एक गहरे अर्थों में अहितकर भी है। क्योंकि फिर हमें स्मरण नहीं रह जाता कि पीछे क्या हुआ। और करीब—करीब हर जन्म में हम वही नासमझी दोहराए चले जाते हैं जो हमने पिछले जन्म में दोहराई होगी।

     यदि याद आ जाए कि पिछले जन्म में हमने क्या किया, तो शायद हम उन्हीं गड्डों में दुबारा नहीं उतरेंगे जिनमें हम पिछले जन्म में उतरे थे। और अगर याद आ जाए कि हमने पिछले सारे जन्मों में क्या किया है, तो हम यही आदमी नहीं हो सकेंगे, जो हम हैं।

      यह असंभव है कि हम यही आदमी हो सकें। क्योंकि हमने बहुत बार धन इकट्ठा किया है और हर बार मृत्यु ने सारे इकट्ठे धन को व्यर्थ कर दिया है, तो शायद आज धन इकट्ठे करने की उतनी पागल दौड़ हमारे भीतर न रह जाए।

 हमने हजार बार प्रेम किया है और सब प्रेम व्यर्थ हो गया है, तो शायद प्रेम करने और प्रेम पाने की पागल दौड़ विलीन हो जाए। हमने हजार—हजार बार महत्वाकाक्षा की है, अहंकार किया है, यश पाया है, पद पाए हैं और सब व्यर्थ हो गए हैं, सब धूल में मिल गए हैं।

    अगर यह स्मरण आ जाए, तो शायद आज हमारी महत्वाकांक्षा एकदम क्षीण हो जाए। हम वही आदमी नहीं हो सकते हैं, जो हम हैं।

     अहित यह हो जाता है कि हमें पिछले जन्म का कोई स्मरण नहीं रह जाता है। इसलिए करीब—करीब एक चक्कर में आदमी घूमता रहता है। उसे पता ही नहीं कि इस चक्कर से मैं बहुत बार गुजर चुका हूं। और इस बार भी वह उसी आशा से गुजरता है, जिस आशा से पहले भी बहुत बार गुजरा है।

       फिर मौत आकर सब आशाएं व्यर्थ कर देती है। फिर चक्कर शुरू हो जाएगा। कोल्ह के बैल की तरह आदमी घूमता रहता है।

       अहित यह है। इस अहित से बचा जा सकता है, लेकिन उसके लिए काफी जागरूक प्रयोग चाहिए। और एकदम से मृत्यु की प्रतीक्षा नहीं की जा सकती है, क्योंकि इतने बड़े आघात में, इतने बड़े आपरेशन में, एकदम से नहीं जागा जा सकता है।

 हमें धीरे — धीरे प्रयोग करने पड़ेंगे, धीरे — धीरे छोटे दुखों पर प्रयोग करने पड़ेंगे कि हम छोटे दुखों में जाग सकें। सिर में दर्द है, तभी जागरण मिट जाता है और ऐसा लगता है कि मुझे दर्द हो रहा है।

     ऐसा नहीं लगता कि सिर को दर्द हो रहा है। तो सिर के छोटे दर्द में प्रयोग करके सीखना पड़ेगा कि दर्द हो रहा है सिर को, मैं जान रहा हूं।

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