अनामिका, प्रयागराज
सूत्र : “जब भी डिप्रेशन या अवसाद-विषाद हो, उसका ध्यान करो : उस क्षण की प्रतीक्षा करो जब वह चला जायेगा।”
कुछ भी हमेशा नहीं रहता, डिप्रेशन भी नहीं। जब डिप्रेशन चला जाय तो प्रतीक्षा करो- अत्यंत जागरुकता के साथ. इसलिए कि डिप्रेशन के बाद, काली अंधियारी रात के बाद. सुबह होगी और जीवन का सूरज उगेगा।
यदि उस क्षण में जागे रह सको तो आनंदित होओगे कि डिप्रेशन से, विषाद से गुजरे। अनुग्रहीत होओगे कि विषादग्रस्त थे, क्योंकि विषाद के बिना आनंद की यह किरण संभव न थी।
मगर हम क्या करते हैं ?
हम एक अंतहीन दुष्चक्र में चले जाते हैं। पहले हम डिप्रेशन में जाते हैं फिर उसके कारण एक दूसरा डिप्रेशन खडा कर लेते हैं।
यदि डिप्रेशन है तो ठीक है, उसमें कुछ भी गलत नहीं। यह एक सुंदर घटना है क्योंकि इससे सीखोगे और प्रौढ होओगे।
लेकिन दुखी हो जाते हो कि-मुझे डिप्रेशन क्यों हुआ- मुझे डिप्रेशन नहीं होना चाहिए।’ फिर डिप्रेशन से लडने लगते हो।
डिप्रेशन तो ठीक है लेकिन दूसरा डिप्रेशन अवास्तविक है। और यह अवास्तविक डिप्रेशन मन पर बादल बन कर छा जायेगा।
वह क्षण चूक जाओगे जो वास्तविक डिप्रेशन के बाद आया होता। जब डिप्रेशन हो, तो पूरी तरह से डिप्रेशन में चले जाओ। बस विषादग्रस्त हो रहो। अपने डिप्रेशन के कारण डिप्रेशन में मत जाओ।
उससे लडो मत, उससे ध्यान हटाने की कोशिश मत करो। उसे धकेलने का प्रयास मत करो। उसे प्रकट होने दो।अपने आप वह चला भी जायेगा। जीवन एक प्रवाह है, यहाँ कुछ भी सदा एक सा नहीं रहता।
आपकी जरूरत नहीं है। नदी अपने आप बह रही है। उसे धक्का देने की कोई जरूरत नहीं। यदि नदी को धक्का देने की कोशिश करोगे तो मूर्ख के अतिरिक्त और कुछ नहीं हो। नदी अपने आप बहती है, उसे बहने दो।
जब डिप्रेशन हो, तो होने दो। उसके कारण डिप्रेशन में मत जाओ। यदि चाहोगे कि उससे जल्दी छुटकारा हो तो वह और घेर लेगा।
यदि डिप्रेशन से लडोगे तो एक नया डिप्रेशन पैदा कर लोगे जो कि खतरनाक है। पहला डिप्रेशन तो अस्तित्वगत था; दूसरा आपका सृजन है। वह अस्तित्वगत नहीं, मानसिक है।
फिर मन की खाई और कंदराओं में फंस जाओगे जो अंतहीन है। इसलिए यदि डिप्रेशन में हो तो प्रसन्न होओ कि डिप्रेशन में हो और उसे पूरी तरह प्रकट होने दो। अचानक डिप्रेशन विदा हो जायेगा व एक संक्रमण से गुजर जाओगे।
आकाश में कोई बादल नहीं होंगे, सब कुछ स्पष्ट होगा। एक क्षण के लिये स्वर्ग आपके लिये अपने द्वार खोल देगा। यदि डिप्रेशन को अपना डिप्रेशन नहीं बनाया है तो स्वर्ग के इस द्वार में प्रवेश कर सकोगे।
एक बार उस द्वार से परिचय हो जाए तो यह सीख गये कि जीवन विपरीत परिस्थितियों का उपयोग करता है एक शिक्षक की तरह, एक पृष्ठ भूमि की तरह।