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विवेक का स्नान है ध्यान 

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            प्रखर अरोड़ा 

ध्यान स्नान है बुद्धि का। जो ध्यान नहीं सम्हाल पा रहा है, उसकी बुद्धि कचरे से लद जाएगी, स्वाभाविक है। प्रतिपल संस्कार पड़ रहे हैं, हर घड़ी। पूरे दिन में, वैज्ञानिक कहते हैं, कोई दस लाख संस्कार बुद्धि पर पड़ते हैं। आप सोच भी नहीं सकते कि दस लाख कहां से पड़ते होंगे। हर चीज का संस्कार पड़ रहा है। 

      क़ुछ भी सुन, देख रहे हो संस्कार पड़ रहा है. पक्षी आवाज कर रहा है, वह संस्कार पड़ रहा है। एक कार का हार्न बजा, वह संस्कार पड़ा। वृक्ष में हवा दौड़ी, वह संस्कार पड़ा। पैर में एक चींटी ने काटा, वह संस्कार पड़ा। सिर में थोड़ी पीड़ा हुई, वह संस्कार पड़ा। पड़ रहे हैं दस लाख संस्कार दिनभर में, चौबीस घंटे में। ये सब इकट्ठे होते जा रहे हैं।

यह संस्कार धूल है। यह हम जन्मों से इकट्ठे कर रहे हैं। इसलिए बहुत पर्तें इकट्ठी हो गई हैं। जब आप सोए हैं, तब भी संस्कार पड़ रहे हैं। नींद लगी है आपकी, लेकिन इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। क्योंकि बुद्धि पूरे वक्त काम कर रही है। बाहर कोई आवाज होगी, नींद में भी संस्कार पड़ रहा है। गर्मी पड़ेगी, संस्कार पड़ रहा है। मच्छर आवाज कर रहे हैं, संस्कार पड़ रहा है। करवट बदली, संस्कार पड़ रहा है। गर्मी है, सर्दी है, पूरे समय बुद्धि इकट्ठा कर रही है, हर चोट। बुद्धि की क्षमता बहुत ज्यादा है।

      वैज्ञानिक कहते हैं कि अनंत संस्कार बुद्धि इकट्ठा कर सकती है। आपके इस छोटे- से सिर के भीतर कोई सात करोड़ सेल हैं। एक-एक सेल अरबों संस्कार इकट्ठा कर सकता है। इसलिए कोई अंत नहीं है। सारी दुनिया का जितना ज्ञान है, वह एक आदमी की बुद्धि में समाया जा सकता है।

    ये जो इकट्ठी होती पर्तें हैं, इनके कारण आप आच्छादित हैं। इस आच्छादन को तोडना पड़ेगा। इस तोड़ने का प्रारंभ—बुद्धिमान साधक को चाहिए, पहले वाक् आदि समस्त इंद्रियों को मन में निरुद्ध करे।

       इसलिए मौन का इतना मूल्य है। मौन का अर्थ है, आप बाहर और भीतर बोलना बंद कर रहे हैं। बोलना बुद्धि की बड़ी गहरी प्रक्रिया है। बोलने के द्वारा बुद्धि बहुत कुछ इकट्ठा करती रहती है। जो भी आप बोलते हैं, वह आप सिर्फ बोलते नहीं हैं, बोला हुआ आप सुनते भी हैं, उसके संस्कार और सघन हो जाते हैं।

     जब आप एक ही बात बार-बार बोलते रहते हैं, तो आपको पता नहीं कि आप बार-बार सुन भी रहे हैं। संस्कार गहरे होते जा रहे हैं। और आप कचरा बोलते रहते हैं। 

     सुबह अखबार पढ़ लिया, फिर दिनभर उसी को लोगों को बोले चले जा रहे हैं। कोई व्यर्थ की बात, जिसका कोई भी मूल्य नहीं, जिससे किसी को कोई लाभ नहीं होगा, उसको आप बोले चले जा रहे हैं। अगर आप अपने चौबीस घंटे का विश्लेषण करें, तो आप पाएंगे कि निन्यानबे प्रतिशत तो कचरा था, जो आप न बोलते तो किसी का कोई हर्ज न था।

   पहला काम है साधक के लिए कि वह वाणी को संयत कर ले। वही बोले जो बिलकुल अनिवार्य हो, अपरिहार्य हो, जिसके बिना चल ही न सकेगा।

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