शशिकांत गुप्ते
Imegination मतलब कल्पना Emotion मतलब भावना कला के हर क्षेत्र के लिए उक्त दो शब्दों का ही महत्व है।
कला के क्षेत्र में रुचि रखने वाले और सृजन करने वाले व्यक्तियों के जहन में यदि कल्पना ना हो और कल्पना को कागज पर अंकित करने के लिए भावना प्रकट करने की क्षमता ना हो तो किसी भी तरह का सृजन हो ही सकता है।
व्यावहारिक जीवन में उल्टा होता है। यथार्थ को स्वीकार करने के लिए,कल्पना के माया जाल से बचना और भावनाओं पर संयम रखना अनिवार्य होता है।
अन्यथा इनदिनो हरएक क्षेत्र में पनप रहे व्यापरिकरण के कारण आमजन का मानसिक,आर्थिक और शारीरिक श्रम का भावनात्मक शोषण ही होगा?
व्यापारिकरण को लोग गलती से व्यवसायी करण कहते हैं। व्यवसाय तो हर व्यक्ति को अपना जीविकोपार्जन करने के लिए अनिवार है।
व्यवसाय मतलब कोई भी व्यक्ति अपने जीविकापार्जन के लिए नौकरी करें,या व्यापार करें।
इनदिनों हरक्षेत्र में व्यापारीकरण के साथ बाजारवाद हावी हो गया है।
बाजारवाद के हावी होने से विज्ञापनों का व्यापार बहुत फलफूल रहा है।
उत्पादों की बिक्री के लिए किए विज्ञापन करना व्यापार की स्वाभाविक प्रक्रिया है।
राजनीति में सिर्फ और सिर्फ कल्पनातीत उपलब्धियों और लोक लुभावन वादों को विज्ञापनों के द्वारा प्रस्तुत किया जाता है,यह प्रक्रिया भी अप्रत्यक्ष रूप से आमजन की भावनाओं को धूर्तता से भुनाने की ही तो होती है।
उक्त वादे प्रायः ताश के पत्तों का महल ही साबित होते है। यथार्थ की एक फूंक मात्र से सारे वादे भरभरा कर बिखर जातें हैं।
धार्मिक क्षेत्र में स्वयंभू अवतार अवतरित हो रहें हैं। धार्मिकता की आड़ में ये लोग आमजन की भावनाओं को भुनाने के लिए नित नए टोटके प्रस्तुत करते है।
अमुक फूल भगवान को चढ़ाने से लाभ होगा,किसी बीज को पानी डुबो कर पानी पीने से रोग दूर हो जाएगा। फलां बाबा सिर्फ मंत्रों से रोग दूर कर देता है।
आश्चर्य तो यह देखकर होता है कि,जो व्यक्ति वर्तमान में स्वयं सड़क पर बैठकर लोगों का ना सिर्फ भविष्य बताता है,बल्कि लोगों के कष्ट निवारण के लिए विभिन्न उपाय भी बताता है?
आमजन उक्त लोगों के बहकावे आ जाता है और स्वयं की सृजनात्मक शक्ति को क्षीण कर आमजन में अवलंबन की भावना जागृत हो जाती है।
सड़क पर पड़ी रस्सी को सांप समझकर भय ग्रस्त हो जाता है।
ऐसे लोगों के लिए वैचारिक चेतना जागृत करने के लिए तार्किक विचारों की आवश्यकता ही नहीं अनिवार्य है।
शशिकांत गुप्ते इंदौर