एस पी मित्तल, अजमेर
सचिवालय कर्मचारियों के समान पे स्केल और अन्य सुविधाएं देने की मांग को लेकर राजस्थान भर के मंत्रालयिक कर्मचारी गत 15 दिनों से बेमियादी हड़ताल पर हैं, लेकिन इस हड़ताल का अशोक गहलोत के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार पर कोई असर नहीं हुआ है। मंत्रालयिक कर्मचारी जयपुर में महापड़ाव भी कर रहे हैं, लेकिन इसके बावजूद भी सरकार की ओर से समझौता वार्ता का कोई प्रयास नहीं किया गया है। मंत्रालयिक कर्मचारियों को उम्मीद थी कि सीएम गहलोत के महत्वकांक्षी प्रोजेक्ट महंगाई राहत शिविर पर हड़ताल का असर पड़ेगा। लेकिन सरकार के अन्य कार्मिकों के सहयोग से राहत शिविर ग्राम पंचायत और वार्ड स्तर पर लग रहे हैं। किसी भी शिविर में कोई परेशानी नहीं हुई है। ऐसे में हड़ताल का असर और कम हो गया है। सरकार की ओर से भरतपुर में चल रहे सैनी कुशवाहा समाज के आरक्षण आंदोलन में शामिल लोगों से वार्ता तो की जा रही है, लेकिन मंत्रालयिक कर्मचारियों से वार्ता का कोई प्रस्ताव नहीं है। इससे मंत्रालयिक कर्मियों में निराशा का भाव है। यह बात अलग है कि जिला मुख्यालयों पर कामकाज ठप होने से आम लोगों को परेशानी हो रही है, लेकिन राज्य सरकार ने मंत्रालयिक कर्मचारियों की हड़ताल को गंभीरता से नहीं लिया है। जानकार सूत्रों का मानना है कि मुख्यमंत्री गहलोत मंत्रालयिक कर्मचारियों की हड़ताल से नाराज हैं। गहलोत का कहना है कि ओल्ड पेंशन स्कीम (ओपीएस) लागू कर उन्होंने राज्य कर्मचारियों को बहुत बड़ा तोहफा दिया है और अब छोटी छोटी मांगों को लेकर राज्य कर्मचारी प्रदेशव्यापी हड़ताल कर रहे हैं। सरकार का मानना है कि जयपुर स्थित सचिवालय के कर्मचारियों को अलग से एक वेतन वृद्धि देने की परंपरा वर्षों से चली आ रही है। वैसे भी सचिवालय में तैनात कर्मचारियों और जिला मुख्यालयों पर कार्यरत कार्मिकों के कामकाज में अंतर है। कई बार सचिवालय के कर्मचारियों को देर रात तक काम करना होता है, वहीं मंत्रालयिक कर्मचारियों का कहना है कि लोक सेवा आयोग के माध्यम से चयन प्रक्रिया समान है, ऐसे में सचिवालय और जिला मुख्यालय पर कार्यरत कर्मचारियों में भेद नहीं किया जा सकता है।