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मिर्जा के भोपाली अंदाज का रवीश के प्राइम टाइम में उल्लेख

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भोपाल।
भोपाल के आरिफ मिर्जा के अंदाज का रवीश कुमार के प्राइम टाइम में उल्लेख किया गया है। दरअसल मिर्जा ने वरिष्ठ पत्रकार राजकुमार केसवानी के निधन की खबर को अपने भोपाली अंदाज में बयां किया है। उन्होंने लिखा कि राजकुमार केसवानी के इंतकाल की खबर भोपाल और भोपालियों के बीच  भोत अफसोस के साथ सुनी गई। अगर में ये कऊं के वो बर्रुकट भोपाली थे तो कुछ गलत न होगा। उनके वालिद मरहूम लक्ष्मणदास केसवानी आजादी के बाद हुए बंटवारे में सिंध से हिंदुस्तान आये थे। आजादी की लड़ाई में भी उनका लपक योगदान रहा।  राजकुमार केसवानी की पैदाइश सुल्तानिया जनाना अस्पताल भोपाल की है। सुल्तानिया बोले तो लेडी अस्पताल। इतवारे में बिरजिसिया मस्जिद के कने इनका आबाई (पुश्तैनी ) मकान आज भी हेगा। असिल में पूरा केसवानी खानदान भोपाल की गंगा जमुनी तहजीब का नुमाइंदा है। राजकुमार भाई जित्ते  ऊंचे पाए के सहाफी थे उनके कदम उत्ते ही जमींन पे रेते। बाकी भाई मियां थे तो भोत मुहब्बती, फिर भी थोड़े मिराकी (सनकी) बी हुआ करते थे। मसला ये के राजकुमार साब के कने कोई लाग लपेट नईं थी क्या…कब किसकी हिंदी कर दें कुछ पता नईं होता था। आज के सहाफियों की तरा अपने भाई ने किसी नेता या अफसर को सिर नई चढ़ाया। भोपाली तालिब-ए-इल्म के मरकज रहे सेफिया कालिज से उन्ने एमए करा। मियां खां इस कदर के पढ़ाकू रहे के घण्टों लाइब्रेरी में बिता देते। इब्राहिमपुरे की पटेल और मदीना होटल बी इनके ठिये हुआ करते। छोटे भाई शशि केसवानी के मुताबिक भाई मियां मछली के इंतहाई शौकीन थे। लिहाजा अफगान होटल में अक्सर पाए जाते। सत्तर की दहाई में इनकी सहाफत की इब्तिदा में ये रपट वीकली और शहरनामा अखबार निकालते। तब डिलाइट होटल में एक कमरे में इनका दफ्तर होता। यहां मनोहर आशी, देवकांत शुक्ला, प्रलेस के राजेंद्र शर्मा, रामप्रकाश त्रिपाठी, राजेश जोशी,मंजूर एहतेशाम, जगत पाठक वगैरह के साथ राजकुमार साब की बैठकें होतीं। सत्तर की दहाई के उस दौर में इमामी गेट पे आंध्रा होटल के कने अपनी भूमिका प्रेस की तिरेडिल मशीन वे ये अखबार छापते थे। केसवानी की जुबान पे भोपाली गालियां भी खुल के निकलतीं। कई दफे इनकी टोली इमामी गेट पे तो कभी बुधवारे में नमक वाली सुलेमानी चाय के मजे लेती। को खां… कां हो खां जैसे जुमले इनकीं जुबां पे रहते। भोपाल की पतली गलियों का राजकुमार चला गया। हिंदी पत्रकारिता को भाई इत्ता दे गए हैं के उनका वो जखीरा बरसा बरस हमारी सहाफत को चमकाता रहेगा। उर्दू, हिंदी और अंग्रेजी जुबानों का बेहतरीन संगम पेश करने वाले इस मायानाज सहाफी को खिराजे अकीदत।

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