डा राजा राम
डॉक्टर अंबेडकर का लक्ष्य सामाजिक और राजनीतिक समानता के लिए विषमताओं के विरोध में संघर्ष जिसकी शुरुआत उनके संदेश जाति विहीन वर्ग विहीन समाज की स्थापना अर्थात सामाजिक आर्थिक समानता और स्वतंत्रता। उनके इस संदेश में किसी जाति विशेष का कोई उल्लेख नहीं था।25 दिसंबर 1927 को महाड मैं बाबा साहब ने कहा था की भारत को एक बहुत बड़ी सामाजिक क्रांति की आवश्यकता है जो फ्रांस की 1789 की तरह मेरा भी रास्ता होगा। इसमें कहीं भी बाबा साहब ने सामाजिक क्रांति को धर्म परिवर्तन से नहीं जोड़ा था क्योंकि यह समता स्वतंत्रता और बंधुता पर आधारित रास्ता था।
आगे बाबा साहब का जो भी सफर था जो भी संघर्ष था जो भी मिशन था उसका आधार यही ऊपर के दो बिंदु मुख्य थे जिसकी गूंज बाबा साहब के संविधान सभा के 17 दिसंबर 1946 और 25 नवंबर 1949 के भाषण़ में भी देखी जा सकती है।
बहुजन नाम का मिशन लगभग 78 से बामसेफ के नाम से प्रारंभ हुआ जो एसटी एससी ओबीसी एवं अल्पसंख्यक समाज के नौकरी पेशा लोगों के साथ मिलकर बनाया गया था और प्रचार किया गया थाबाबा का मिशन पूरा करना परंतु बामसेफ के आज तक के सफर में ना तो बाबा साहब के येसंदेश देखे जा सकते हैं और ना ही सामाजिक आर्थिक और राजनीतिक समता के लिए कोई अभियान चलाया गया। परंतु इसी तरह के अनगिनत संगठन खड़े हो गए ।उन्होंने भी बाबा साहब के संदेश को अपना मार्गदर्शन नहीं बनाया।
बहुजन के नाम से राजनीतिक पार्टियां खड़ी हो गई परंतु इन सभी की दिशा जातिवादी ही रही। इससे जातिवादी चेतना को खूब बल मिला और जाति के नेताओं ने अपना व्यक्तिगत हित भी पूरा किया परंतु सबसे भयंकर जो नुकसान हुआ वह यह की जिस व्यवस्था के खिलाफ बाबा साहब ने अपना संघर्ष शुरू किया था उसी को इन संगठनों और पार्टियों ने मजबूत किया और उसमें शामिल भी हो गए। इस समाज के बुद्धिजीवियों ने भी कभी इसका विश्लेषण नहीं किया, क्यों कोई तो कमी होगी??
उदाहरण के रूप में दलित लेखक दलित लेखक संघ और दलित साहित्य अकादमी ने भी बाबा साहब की विचारों की कोई लेख माला नहीचलाई और ना ही इन संगठनों का विश्लेषण किया।सुना है यह भी गया था की अंबेडकर लेखक संघ भी बना परंतु उसका कोई भी प्रभाव नहीं देखा गया। उसने कभी भी डॉक्टर अंबेडकर के विचारों पर कोई डिबेट भी देश में शुरू नहीं की।
15 मार्च 1947 का बाबा साहब का संविधान सभा को दिया गया मेमोरेंडम भी अगर लक्ष्य बनाया होता तो भारत का नक्शा ही बदल गया होता और सामाजिक आर्थिक और राजनीतिक न्याय लोगों को अवश्य मिलता परंतु इन्होंने देश की जनता के साथ में धोखा किया जिसका नतीजा है आज पचासी परसेंट ही नहीं 95 पर्सेंट दलित बदहाली दुर्दशा का शिकार है और उसका राजनीतिक शोषण हो रहा है सामाजिक और आर्थिक उत्पीड़न हो रहा है शोषण हो रहा है।
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डा राजा राम*
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