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*किसानों के हित में आवाज उठाने खड़े हुए विधायक चिंतामणि मालवीय*

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*लोकतांत्रिक शक्तियों के उलट जाकर विधायक को जारी किया शो कॉज नोटिस*

*विधायक चिंतामणि मालवीय को मिला नोटिस, आखिर किसके दबाव में प्रदेश भाजपा अध्यक्ष ने नोटिस दिया*

*विजया पाठक,

मध्यप्रदेश भाजपा में सब कुछ ठीक चल रहा है यह कहना जरूर सरल है लेकिन हकीकत इससे कोसों दूर दिखाई पड़ रही है। यही कारण है कि कभी अपने उसूलों और एकजुटता को लेकर पूरे देश में प्रमुख स्थान रखने वाली भारतीय जनता पार्टी और उसके नेता अब एक दूसरे से खिंचे रहने लगे हैं। दरअसल मध्य प्रदेश भारतीय जनता पार्टी प्रमुख ने उज्जैन के आलोट निर्वाचन क्षेत्र से विधायक चिंतामणि मालवीय को जनता के हित में आवाज उठाने के लिए कारण बताओ नोटिस जारी किया है। भाजपा द्वारा उठाया गया यह कदम पूरी तरह अनैतिक है। क्योंकि यदि अपने क्षेत्र के किसानों के हितों के लिए स्थानीय विधायक आवाज नहीं उठाएगा तो भला कौन उठाएगा। लेकिन यह बात भाजपा के आला दर्जे के नेताओं को शायद नहीं पता। यही कारण है कि उन्होंने विधायक चिंतामणि मालवीय पर अवैधानिक ढंग से कार्यवाही करने का मन बनाते हुए उन्हें नोटिस जारी कर दिया है।

*किसानों के लिए उठाई आवाज पर मिली सजा*

विधायक चिंतामणि मालवीय ने वर्ष 2028 में होने वाले सिंहस्थ धार्मिक मेले के लिए किसानों की भूमि को स्थायी रूप से अधिग्रहित करने के अपनी ही सरकार के फैसले पर सवाल उठाया था। मालवीय का यह कदम पार्टी को इतना विरोधी लगा कि भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा द्वारा 23 मार्च को भेजे गए नोटिस में कहा गया कि मालवीय के बयानों से पार्टी की छवि प्रभावित हुई है। नोटिस में कहा गया है, “पिछले कुछ समय से आप सार्वजनिक स्थानों पर पार्टी की आलोचना कर रहे हैं। आपके बयान और कार्य पार्टी की प्रतिष्ठा को प्रभावित कर रहे हैं और आपके व्यवहार के लिए अनुशासनात्मक कार्रवाई की आवश्यकता है।

*नोटिस दिलवाने के पीछे आखिर कौन है?*

सबसे बड़ा सवाल यह है कि जब लोकतंत्र में संवैधानिक प्रक्रिया के तहत जब कोई व्यक्ति विधायक बनकर विधानसभा में आता है तो वह पूरे तरह से अपने क्षेत्र की जनता के लिए समर्पित होकर कार्य करने के लिए प्रतिबद्ध होता है। यही कारण है कि जनता भी विधायक पर भरोसा जताते हुए उन्हें अपनी परेशानियों से अवगत कराने जाती है और विधायक उनकी समस्या से जुड़े सवाल विधानसभा के पटल पर रखता है। लेकिन भाजपा ने जो यह कदम उठाया है उससे साफ पता चलता है कि सरकार जरूर जनता के हितों को निशाना बनाकर सिंहस्थ की योजना बना रही है इसलिए विधायक ने यह सवाल उठाया। ऐसे में चिंतामणि मालवीय को नोटिस मिला है या नोटिस दिलाया गया, यह बड़ा सवाल है और इसकी खोजबीन होना चाहिए।

*क्‍या मुख्यमंत्री और मालवीय के बीच तालमेल नहीं?*

मालवीय और मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव दोनों ही उज्जैन के वरिष्ठ नेता हैं। दोनों ही संघ में अच्छा दखल रखते हैं। ऐसे में राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार दोनों राजनेताओं में हमेशा से वर्चस्व की लड़ाई रही है। यही कारण है कि मोहन यादव ने मुख्यमंत्री बनने के बाद अपने ढंग से उज्जैन में सिंहस्थ की तैयारियों को अमली जामा पहनाना आरंभ किया जिसमें उज्जैन की जनता को बड़ा नुकसान हो रहा था और मालवीय ने इसी का विरोध किया। नोटिस प्रकरण के दौरान मालवीय ने कहा, “मोहन यादव उज्जैन के नेता हैं। लेकिन मैं यह भी कहना चाहता हूं कि आज उज्जैन के किसान डरे हुए हैं। उनकी जमीन जो पहले तीन से छह महीने के लिए अस्थायी तौर पर अधिग्रहित की जाती थी, अब स्थायी तौर पर अधिग्रहित की जा रही है।

*यह है मध्‍यप्रदेश सरकार की योजना*

उल्लेखनीय है कि भाजपा सरकार ने 2028 के सिंहस्थ से पहले उज्जैन में 3,300 हेक्टेयर में फैले एक आध्यात्मिक शहर की स्थापना की योजना की घोषणा की है। इसके अनुसार संतों और अन्य धार्मिक नेताओं को निर्दिष्ट क्षेत्रों में अपने ‘आश्रम’ स्थापित करने के लिए जगह दी जाएगी। प्रस्तावित आध्यात्मिक शहर में स्कूल, कॉलेज और आवास भी होंगे जिन्हें …..के साथ विकसित किया जाएगा। आलोट विधायक ने कहा, “मैं जानना चाहता हूं कि आध्यात्मिक नगर बनाने का सुझाव किस अधिकारी ने दिया है। मैं कहना चाहता हूं कि आध्यात्मिकता किसी शहर में नहीं बसती। यह त्याग करने वाले इंसानों में होती है। यह कंक्रीट की इमारतों में नहीं मिल सकती। हम सभी को मिलकर मुख्यमंत्री से अनुरोध करना चाहिए कि वे उज्जैन के किसानों को बचाएं।

*’जब तक हिंदू हैं सिंहस्थ चलेगा’*

विधायक चिंतामणि मालवीय ने सदन में कहा कि किसानों के मुताबिक कॉलोनाइजर्स और भू-माफिया ने मिलकर यह षड्यंत्र रचा है। जब तक हिन्दू हैं, सिंहस्थ चलेगा, सिंहस्थ की जमीन का ऐसे इस्तेमाल नहीं करें कि इससे बड़ा नुकसान हो जाए। कहीं ऐसा न हो कि सिंहस्थ की जमीन हमेशा के लिए खो दें।

*जनप्रतिनिधि का अधिकार है अपनी बात कहना*

भारतीय संविधान में अभिव्यक्ति की आज़ादी मौलिक अधिकार है। यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) में शामिल है। इसे लोकतांत्रिक राजनीति का एक अहम अधिकार माना जाता है। ऐसे में अगर भाजपा ने विधायक चिंतामणि मालवीय पर इस तरह से कार्यवाही का कदम उठाया है तो यह पूरी तरह संविधान और मौलिक अधिकारों का हनन है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत, नागरिकों को अपने विचारों और रायों को व्यक्त करने की आज़ादी मिलती है। इसे भाषण और अभिव्यक्ति की आज़ादी का अधिकार कहते हैं। यह अधिकार मौखिक, लिखित, इलेक्ट्रॉनिक, या किसी अन्य माध्यम से किसी भी मुद्दे पर व्यक्त करने का है। भारत का संविधान मौलिक अधिकारों की गारंटी देता है, जबकि सर्वोच्च न्यायालय उनका संरक्षक है। भारतीय संविधान में कई विशेषताएं शामिल हैं, जो नागरिकों को अपने समाज में स्वतंत्रता के साथ रहने की अनुमति देती हैं। ऐसे अधिकारों में से एक, भारतीय संविधान का अनुच्छेद 19(1) नागरिकों को कुछ क्षेत्रों में स्वतंत्रता के अधिकार की गारंटी देता है। यह भारत के सभी नागरिकों को बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की गारंटी देता है।

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