मॉडल और अभिनेत्री पूनम पांडे जिंदा निकलीं। शुक्रवार को अपने मैनेजर के हवाले से उन्होंने खुद की मौत का फर्जी पोस्ट सोशल मीडिया पर डाला था। पूरे दिन उनके मौत पर रहस्य बना रहा। न तो उनके परिवार की ओर से इसे लेकर कोई बयान दिया गया। न ही उनका शव कहीं दिखा। आखिरकार शनिवार को उन्होंने एक वीडियो जारी करके कहा कि उनका निधन नहीं हुआ है। उन्होंने दावा किया कि यह सब उन्होंने कैंसर से जागरुकता पैदा करने के लिए किया था।अभिनेत्री पूनम पांडे के मैनेजर ने उनकी मौत होने का फर्जी दावा किया था। शनिवार को अभिनेत्री ने इंस्टाग्राम पर एक वीडियो साझा करते हुए अपने जीवित होने की जानकारी दी। अब लोग पूनम के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की मांग कर रहे हैं।
पूनम पांडे के इस पोस्ट के बाद सोशल मीडिया पर उनकी जमकर आलोचना हो रही है। लोग इसे सुर्खियों में आने के लिए पूनम पांडे का हथकंडा बता रहे हैं। यह पहला मौका नहीं है जब पूनम ने सुर्खियां बंटोरने के लिए कोई अजीबोगरीब हरकत की हो। इससे पहले भी उनके ऊपर नग्नता फैलाने से लेकर कई तरह के आरोप लग चुके हैं।
ताजा घटनाक्रम पर लोग अभिनेत्री पर कानूनी कार्रवाई की मांग कर रहे हैं। आखिर इस तरह के पोस्ट पर पूनम पर क्या कार्रवाई हो सकती है? मौत के बारे में फर्जी खबर फैलाने को लेकर देश में कानून क्या हैं? क्या सोशल मीडिया के ऐसे दुरुपयोग पर पूनम को सजा हो सकती है? आइये समझते हैं…
क्या पहले भी किसी ने किया है अपनी मौत का दावा?
देश में ऐसी कई घटनाएं सामने आई हैं जब लोग अपनी मौत का फर्जी दावा करते पाए गए हैं। हालांकि, ऐसे मामलों में अलग-अलग लोगों का अलग-अलग मकसद होता है। पिछले साल अक्तूबर में ही नौसेना के पूर्व अधिकारी बलेश कुमार को दिल्ली पुलिस ने गिरफ्तार किया था जिसने हत्या के लिए सजा से बचने के लिए अपनी मौत का फर्जी दावा किया था। अपना दावा साबित करने के लिए आरोपी ने फर्जी आईडी तक बनवाई थी।
गिरफ्तारी के वक्त दिल्ली पुलिस ने अपराध शाखा पुलिस स्टेशन में भारतीय दंड संहिता की धोखाधड़ी, गलत पहचान, आपराधिक साजिश और जालसाजी सहित अन्य धाराओं के तहत मामला दर्ज किया था।
पूनम पांडे का मामला कितना अलग?
अगर पूनम पांडे के मामले को देखें तो यह अन्य मामलों से अलग हैं। क्या पूनम के खिलाफ कोई केस बनता है या नहीं इस पर हमनें सर्वोच्च न्यायालय के अधिवक्ता और साइबर कानून विशेषज्ञ विराग गुप्ता से बात की। विराग कहते हैं, ‘कोई शख्स अगर दो समूह, धर्म, नस्ल, क्षेत्र या भाषा के नाम पर नफरत बढ़ाने की कोशिश करे तो उसके खिलाफ आईपीसी की धारा-153ए के तहत मामला दर्ज किया जा सकता है। गैरजमानती अपराध होने के कारण ऐसे मामलों में पुलिस आरोपी को गिरफ्तार कर सकती है। अफवाह फैलाने वालों के खिलाफ आईपीसी की धारा-505 के तहत भी केस दर्ज हो सकता है, जिसमे दोषी पाए जाने पर तीन साल तक की सजा का प्रावधान है। हिंसा भड़काने वाले पोस्ट डालने और दंगा भड़कने पर किसी की मौत होने के मामले में आईपीसी के तहत आजीवन कारावास तक की सजा हो सकती है। अफवाह फैलाने पर तोड़फोड़ होने या सार्वजनिक संपत्ति के नुकसान होने पर अफवाह फैलाने वाले से सरकार वसूली भी कर सकती है।’
सोशल मीडिया के ऐसे दुरुपयोग पर पूनम को सजा हो सकती है?
विराग बताते हैं, ‘कंप्यूटर, मोबाइल या अन्य इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से अपराध के खिलाफ कारवाई के लिए आईटी एक्ट 2000 में प्रावधान हैं। धारा-67 के तहत सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक, भड़काऊ या समुदायों के बीच नफरत पैदा करने वाले पोस्ट, वीडियो या तस्वीर शेयर करने पर जेल के साथ जुर्माना भी देना पड़ सकता है। पहली बार दोषी पाए जाने पर तीन साल की जेल के साथ पांच लाख रुपये तक का जुर्माना देना पड़ सकता है। अगर यही अपराध दोहराया तो दोषी को पांच साल की जेल और 10 लाख रुपये तक का जुर्माना देना पड़ सकता है। झूठ फैलाना, झूठी जानकारी वाले ईमेल या मैसेज भी अपराध के दायरे में आते हैं।’
क्या पूनम पांडे को सजा हो सकती है?
विराग गुप्ता कहते हैं, ‘पूनम पांडे पहले भी चर्चा में आने के लिए अनेक तरह के आपराधिक कार्यों में लिप्त रह चुकी हैं। मौत की झूठी खबर उड़ाने के मामले में अगर उनके खिलाफ मामला दर्ज हुआ या गिरफ्तारी हुई तो चर्चित रहने का उनका फार्मूला और कामयाब हो जाएगा। अफवाह फैलाने में उनकी भूमिका और अफवाह से नुकसान होने की बात को अदालत में साबित करने में अनेक मुश्किलों की वजह से पूनम पांडे को अंत में सजा दिलवाना मुश्किल होगा।’
इसी विषय पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अधिवक्ता सिद्दार्थ शंकर दुबे कहते हैं, ‘अगर कोई दो-तीन दिन के लिए अपनी मौत का दावा करता है और फिर खुद ही आकर कहता है कि मुझे कुछ नहीं हुआ है। तो यह प्रोमोशनल है और यह अपराध की श्रेणी में नहीं आता। दूसरे मामले में यदि पूनम इसे सच बनाने की कोशिश करें तो यह फ्रॉड हो जाएगा।’
वहीं अधिवक्ता सौभाग्य मिश्रा कहते हैं, ‘इस मामले में कोई आपराधिक केस नहीं बनता है। हालांकि, कोई व्यक्ति कहे कि इस खबर से उसे मानसिक पीड़ा हुई है तो वह सिविल कोर्ट का रुख कर सकता है।’