मित्रों ! आज का रावण तो मैं,
वह नहीं हूं जो त्रेता में था ।
मैं तो प्रकांड पंडित था,
मैंने तो सिर्फ रामजी के
हाथों मोक्ष पाने हेतु ही
सीता मां का मात्र हरण
किया था और आखिर
मैंने सती सीता को
छुआ तक भी तो
बिल्कुल नहीं था ।
फिर भी मैं तो प्रभु
श्रीराम के हाथों से ही
मोक्ष भी पा चुका हूं ।
आजकल के आधुनिक
रावण तो आखिर वे हैं
जो बीच चौराहों पे
किसी कोमल कली-सी
तनुजा पर बुरी
नज़रें गड़ाते है ।
उन पर जोर-जोर से
ठहाके भी लगाते हैं ।
और फिर जब भी
मौका मिलता है कि
लडकी अकेली ही
कहीं जा रही है ,
वह भले नाबालिग
ही क्यों नहीं हो ?
उन्हें सिर्फ एक ही
चीज दिखती है ,
उस लड़की की
इज्जत लूट करके
क्षणिक कामवासना में
खुद की हवस को
शांत करना और
अपने कुकृत्यों को
छिपाने उस नाबालिग
लाश को भी गिद्ध की
भांति नोच-नोच करके
सबूत मिटाने की भी
नाकाम कोशिश करना ।
आज जरूरत नहीं है
मुझ त्रेता के रावण के
नकली पुतलों को
जलाकर खुश होने की,
यदि जला सको तो
आप सबके बीच
आपके ही चेहरों में
छिपे जिंदे और
अभिमान में अंधे,
विवेकहीन,अकर्मठ
कर्तव्य से विमुख
पथभ्रष्ट,अनीति और
अनाचार के कर्ता, पोषक,
संरक्षक और प्रोत्साहक
साथ ही मुंह में राम
बगल में छुरी वाले
रावणों को तुम सब
अवश्य जलाना जो
जानवरों से भी नीच
दरिंदे व घटिया
किस्म के नाना
कुकृत्य कर करके
आखिर मानवता को
सिर्फ शर्मसार नहीं
अपितु उसे बिल्कुल
तार-तार ही कर रहे हैं l
और सुन लो दो बातें
मेरी अमरता के अद्भुत
रहस्य व राज की ।
पहला तो मैं श्रीराम का
सिर्फ स्वांग करने वाले
आधुनिक रावणों के हाथों
कभी भी नहीं मरने वाला ।
मुझको मारने के लिए
तुम सबको पहले
मर्यादा पुरुषोत्तम
श्रीराम बनना होगा ।
दूसरा एक और राज मेरा
मैं कभी नहीं मरने वाला
क्योंकि मुझे मारने हेतु ही सही,
पर तुम ही मुझे हर साल
आखिर जिंदा भी तो करते हो ।
-भावना मंगलमुखी बोईसर,देवली पाबूजी पाली, राजस्थान,संपर्क-72493 77116
संकलन-निर्मल कुमार शर्मा, गाजियाबाद, उप्र , सं