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मोदी की वो छवि भी चली गई कि ‘वो अजेय’ हैं.

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मोदी की हार को इसतरह दर्शाया विदेशी अखबारों ने 

अमेरिका से निकलने वाला अख़बार न्यूयॉर्क टाइम्स लिखता है, “नरेंद्र मोदी के सत्ता के बीते 10 सालों में कई ऐसे पल सरप्राइज़ से भरे थे लेकिन जो सरप्राइज मंगलवार की सुबह मिला वो बीते 10 सालों से बिल्कुल था क्योंकि नरेंद्र मोदी को तीसरा टर्म तो मिल गया, लेकिन उनकी पार्टी बहुमत नहीं ला पाई.”

इस हार के साथ ही 2014 के बाद पहली बार नरेंद्र मोदी की वो छवि भी चली गई कि ‘वो अजेय’ हैं.

बीजेपी ने अपने दम पर 240 सीटें जीती हैं जो 272 के बहुमत के आँकड़े से काफ़ी कम है. इंडिया ब्लॉक 234 सीटें जीती हैं. अपने सहयोगियों के साथ मोदी सत्ता के शीर्ष पर तो रहेंगे लेकिन उनकी करिश्माई छवि पहले जैसी नहीं रही.

बतौर नेता नरेंद्र मोदी सत्ता के बँटवारे में ज़्यादा रुचि नहीं रखते हैं. जब साल 2016 में उन्होंने नोटबंदी की तो उनकी सरकार के वित्त मंत्री को भी इसकी जानकारी नहीं थी. जब जम्मू-कश्मीर से संविधान से अनुच्छेद 370 को हटाया गया तो भी अमित शाह ने सीधे संसद में इसका एलान किया और ये बिना किसी चर्चा के प्रस्ताव ऐसे आया जैसे ये डन डील हो. लेकिन अब वो दिन चले गए हैं.

वॉशिंगटन पोस्ट ने क्या लिखा है?

अमेरिका से ही निकलने वाले अख़बार वॉशिंगटन पोस्ट ने लिखा है- भारत के मतदाताओं ने नरेंद्र मोदी की लीडरशिप पर एक अप्रत्याशित अस्वीकृति दिखाई है. दशकों के सबसे मज़बूत नेता के रूप में पेश किए जा रहे मोदी की छवि को इस जनादेश ने भेदा है और उनकी अजेय छवि भी ख़त्म की है.

बीजेपी सहयोगियों के साथ भले सरकार बना ले लेकिन साल 2014 के बाद से ये बीजेपी का सबसे कमज़ोर प्रदर्शन है. साल 2014 में मोदी विकास और भ्रष्टाचार को लेकर लोगों के बीच ग़ुस्से की लहर पर सवार हो कर सत्ता में आए और साल 2019 में राष्ट्रवाद और पाकिस्तान के साथ तनाव बड़ी वजह रही.

लेकिन इस बार बीजेपी बहुमत से दूर है और नरेंद्र मोदी जो अपने 23 साल के राजनीतिक करियर में कभी भी बहुमत लाने में फेल नहीं हुए, वो पहली बार ऐसी स्थिति में हैं.

मोदी की मज़बूत नेता की छवि है और चुनाव के बाद भी कई राजनीतिक पंडितों ने ये अनुमान लगाया था कि एक बार फिर उनकी लहर में देश का विपक्ष बह जाएगा.

इस चुनाव में नरेंद्र मोदी सरकार ने विपक्ष का बैंक खाता फ्रीज़ किया, कुछ विपक्ष के नेताओं को टैक्स और घोटाले के आरोप में जेल में डाला गया.

उन्हें मुख्यधारा मीडिया से कवरेज में एकतरफ़ा सपोर्ट मिलता रहा, वो मीडिया जिनके मालिक मोदी के क़रीबी हैं. देश और विदेश से इस तरह की चेतावनियां आने लगी थीं कि देश में प्रतिस्पर्धी चुनाव लगभग ख़त्म होने की कागार पर है.

जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ एडवांस्ड इंटरनेशनल स्टडीज में राजनीतिक वैज्ञानिक देवेश कपूर ने अख़बार से कहा कि “इन सबके अलग मंगलवार को जनता ने वो किया, जिससे लगा कि लोकतंत्र उतना कमज़ोर नहीं है, जितना इसे समझा जा रहा था. इस नतीजे ने बताया कि वोटर्स स्वतंत्र दिमाग़ से वोट करते हैं..वरना ये रथ नहीं रुकता.”

अलजज़ीरा ने क्या लिखा है?

क़तर के प्रसारक अलजज़ीरा ने भी मोदी की छवि को डेन्ट लगने की बात लिखी है.

अलजज़ीरा की रिपोर्ट लिखती है- मोदी सरकार तो बना लेंगे लेंकिन उनकी सरकार अपने सहयोगियों के हाथ में होगी.

साथ ही ये जनादेश बीजेपी की चुनावी नीति पर भी सवाल खड़े करता है. बीजेपी और नरेंद्र मोदी का कैंपेन सांप्रदायिक बँटवारे पर अधिक फोकस था. ऐसे दावे किए गए कि विपक्ष सत्ता में आने पर संसाधन मुसलमानों को दे देगा. लेकिन विपक्ष का कांपेन मोदी सरकार की स्कीम और उनकी आर्थिक विफलता पर आधारित रहा.

बीजेपी का नारा था- अबकी बार 400 पार लेकिन मोदी की बायोग्रफ़ी लिखने वाले निलांजन मुखोपाध्याय कहते हैं कि “ ये ओवरकॉन्फिडेंट वाली ज़ुबान थी.”

टाइम पत्रिका का क्या कहना है?

अमेरिकी की चर्चित पत्रिका टाइम ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि एग्ज़िट पोल और राजनीतिक पंडितों ने मोदी की जीत का अनुमान लगाने में थोड़ी जल्दबाज़ी कर दी. सवाल था कि मोदी तीसरी बार सरकार बना लेंगे लेकिन बीजेपी की अपने दम पर कितनी सीटें आएंगीं.

इसका जवाब मंगलवार को मिला. जो नतीजे आए हैं, उसमें मोदी की पार्टी बहुमत पाने वाली पार्टी तो नहीं रही है. उन्हें 240 सीटों पर जीत मिली है. जो 2019 के आंकड़ों से बहुत कम है, जब बीजेपी को अकेले 303 सीटें मिली थीं.

20 पार्टियों के गठबंधन इंडिया ब्लॉक को 234 सीटें मिली है. उन्होंने उम्मीद से काफ़ी बेहतर किया है.

73 साल के मोदी जिनकी करिश्माई और ध्रुवीकरण की राजनीति करने वाली छवि है, वो देश के दूसरे ऐसे नेता हैं जो लागातार तीसरी बार प्रधानमंत्री बनेंगे. इससे पहले जवाहरलाल नेहरू ही ऐसे एकमात्र नेता थे.

लेकिन इस बार अपने वादे के अनुसार, जब मोदी अपने हिंदू-राष्ट्रवादी एजेंडे और आर्थिक सुधारों पर आगे बढ़ेंगे तो बीजेपी की उम्मीद से कम सीटें और पावरफुल विपक्ष उन्हें ऐसा करने से रोकने की स्थिति में होंगे.

बीते 10 साल में उन्होंने मज़बूत विपक्ष नहीं देखा है. बीजेपी को इस बार छोटे गठबंधन दलों से भी बात करना होगा इसके बिना सरकार चलाना मुश्किल होगा.

बड़ा बहुमत लाने के लिए ज़रूरी था कि बीजेपी दक्षिण में बेहतर करे और यूपी जैसे अपने गढ़ में भी बेहतर करे.

बीजेपी ने दक्षिण में तो अच्छा किया. केरल जैसे राज्य में खाता खुला और आंध्र और तेलंगाना में भी उनके सहयोगी ने अच्छा किया है लेकिन यूपी में बीजेपी के प्रदर्शन ने सबको चौंकाया है.

बीजेपी ने तीस साल पुराना अपना राम मंदिर का वादा पूरा किया लेकिन इससे कोई असर नहीं दिखा. साल 2014 में बीजेपी ने यहां 80 में से 71 और 2019 में 62 सीटें जीती थीं लेकिन इस बार उसे 33 सीटें मिली हैं.

      ( बीबीसी हिंदी के सौजन्य से )

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