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मोदी का फंदा, योगी का गला… 

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मनीष सिंह
उत्तर प्रदेश में ऐतिहासिक सफाये के अंधड़ के सामने बेबस योगी, अपना राजनीतिक करियर इंच इंच करके दफन होते देख रहे हैं। ~~~साल भर पहले तक उनके समर्थक, योगी को अगले प्रधानमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट कर रही थी। खुद योगी अभूतपूर्व हड़बड़ी में थे, और मोदी के सक्सेसर की जगह, रिप्लेसर बनने के सपने संजो रहे थे। 
न विपक्ष दिखाई दे रहा था, न पार्टी में चुनौती थी। कि अचानक ही अखिलेश ने गियर बदले। महीन जातिगत गठबंधन,और एहतियात से चुने मुद्दों के साथ ताल ठोकने लगे।
अखिलेश की चुनौती को योगी थोड़े बहुत नुकसान के बावजूद झेल जाने का माद्दा रखते थे। 
लेकिन अपनी ही पार्टी के सर्वोच्च पुरुष औऱ उसकी स्वार्थी राजनीति को झेलना आसान नही। सच तो यह है कि भाजपा के भीतर से ही योगी को सबोटेज करने में कोई कसर नही है। ~~~मोदी अपने डूबते सितारे को देख रहे हैं। वक्त की नजाकत है, कि वो 24 के पहले एक बड़ा चुनाव हारकर अपने प्रति गुस्से पर ठंडा पानी डालना चाहते हैं। उनकी गद्दी के चैलेंजर योगी, और उत्तर प्रदेश जैसे राज्य से अधिक उपयुक्त कोई और अवसर नहीं मिलता। 
और सत्ता में अखिलेश हो, तनाव हिंसा फैलाकर  लोकसभा जीतना संभव होगा, क्योकि ब्लेम मुजफ्फरनगर की तरह सपा के मत्थे होगा।
तो किसान आंदोलन पर मोदी की उलटबांसी, टेनी मामले पर रुख, उनके लड़के की जमानत, चुनावी रैलियों के पहले मौसम खराब होना, सक्षम नेताओं की जगह दोयम दर्जे के लोगो को प्रभार, कुप्रबंधन का शिकार चुनाव संचालन। आप ध्यान से देखेंगे, तो मोदी और मोदी सरकार, योगी को हराते दिखेंगे, जिताते नही। 
टिकट वितरण में भी योगी से छल किया गया।अलोकप्रिय विधायको को जमकर टिकट दिए गए। ईवीएम कौशल की सेवाएं योगी को उपलब्ध होना मुश्किल है। 
इस दौर में मोदी पालित मीडिया ने योगी विरोधी नेताओं को मंच उपलब्ध कराया, और खूब कवरेज दिया है। औऱ टीवी मंच पर अखिलेश, योगी से बेहतर, तैयार और इक्कीस ही दिखते हैं। 
रही सही कसर योगी के घमंड, दम्भ और कुंठा से निकले डायलॉग्स पूरी कर रहे हैं। नतीजा, योगी को हराने के षड्यंत्र में खुद योगी भरपूर योगदान दे रहे हैं। ~~~इस वक्त योगी हताश औऱ चिंतित हैं। उत्तर प्रदेश की सत्ता उनके हाथ से जा चुकी है। किस पर भरोसा करें, किस पर नही। एक पैरानोइया की स्थिति है। 
लेकिन योगी को खारिज करना जल्दबाजी होगी। संघ अभी भी उनके लिए किला लड़ा रहा है। हार के बावजूद एक बड़े तबके में योगी का समर्थन बना रहेगा। जीत हार से परे, हिंदूवादियों के लिए वो बड़े आइकन बन चुके हैं।  ये पहचान उनके पुनरोत्थान की जमीन गर्म रखेगी। 
लेकिन शाह और मोदी के रहते उनका दोबारा उभरना असम्भव होगा। तो दस मॉर्च के बाद योगी के पास, जब बचाने को कुछ न होगा, वे अपने खतरनाक रूप में होंगे। ~~~तब संघ उनके पीछे होगा, और भाजपा के किनारे लगाए गए असन्तुष्ट नेता भी योगी को असलहे देने में कमी न रखेंगे। विपक्ष और एनडीए के बहुत से नेता भी योगी के साथ होंगे। 
अगर योगी वही हैं, जैसा वो खुद को समझते औऱ हमे बताते हैं, असल मे 22 से 24 का दौर मोदी शाह के लिए पेबैक टाइम होगा। 
पेबैक का बिल योगी पेश करेंगे, कतरे कतरे का हिसाब चुकता करेंगे।गोरखपुर के बाबा की गर्जना दिल्ली के गलियारों में गूंजेगी। तब योगी की चालें, सबसे खतरनाक फंदा होंगी। 
और वहां मोदी का गला होगा। 

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