परणी रे
साबरमती आश्रम कभी मोहनदास करमचंद गांधी का निवास स्थान था और नमक पर ब्रिटिश इजारेदारी का विरोध करने के लिए गांधी की प्रसिद्ध दांडी यात्रा का प्रस्थान बिंदु भी. जॉनसन ने गांधी की तस्वीर पर फूल चढ़ाए, चरखा काता और आगंतुक रजिस्टर में लिखा कि राष्ट्रपिता “एक असाधारण व्यक्ति” थे. इसके बाद उन्होंने स्वामीनारायण अक्षरधाम की ओर रुख किया जो देश के सबसे बड़े मंदिर परिसरों में से एक है और इसका अपना खुद का आईमैक्स थिएटर, प्रदर्शनी हॉल, ऑडियो-एनिमेट्रॉनिक्स शो, अनुसंधान केंद्र और एयर असेंबली ग्राउंड है. कारपोरेट हिंदुत्व के लिए यह एक मील का पत्थर है. जॉनसन तब अरबपति गौतम अडानी के साथ एक त्वरित बैठक के लिए आए. अंत में, वह हलोल में ब्रिटिश कंपनी जेसीबी के नवीनतम संयंत्र में पहुंचे, जहां उन्होंने एक बुलडोजर के ऊपर तस्वीरें खिंचवाईं. यात्रा कार्यक्रम भारत के पुनर्निर्माण की मोदी की महत्वाकांक्षाओं और सपनों की विकास परियोजनाओं के विभिन्न चरणों, जो उन्हें वहां पहुंचाएंगे, का एक आदर्श झांकी था.
जब से मोदी प्रधानमंत्री बने हैं, साबरमती आश्रम वैश्विक नेताओं का एक निरंतर पड़ाव रहा है. 2014 में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग यहां आए. 2017 में पूर्व जापानी प्रधानमंत्री शिंजो आबे, 2018 में इजरायल के पूर्व प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू और 2020 में पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प यहां आए. यही वह जगह भी है जहां से मोदी ने भारत के एक स्वतंत्र राष्ट्र बतौर 75 साल पूरे करने के मौके पर ढाई साल लंबे उत्सव को हरी झंडी दिखाई थी. वास्तव में, यह जगह मोदी की सार्वजनिक गतिविधियों में लगभग इतनी बार आती रही है जितनी खुद गांधी के जीवन में आती रही है. इसलिए, यह हैरतंगेज नहीं है कि 2021 में घोषित आश्रम के पुनर्विकास को मोदी का ड्रीम प्रोजेक्ट बताया गया है.
अक्टूबर 2021 में एमके गांधी के परपोते और महात्मा गांधी फाउंडेशन के अध्यक्ष तुषार गांधी ने प्रस्तावित परियोजना के खिलाफ एक जनहित याचिका दायर की. उनकी याचिका का एक प्रमुख कारण उनका डर था कि परियोजना आश्रम की भौतिक संरचना को बदल देगी और इसके प्राचीन “सादगी और मितव्ययिता” के स्वरूप को भ्रष्ट कर देगी.
“गांधी आश्रम स्मारक और क्षेत्र विकास” परियोजना राज्य और केंद्र सरकारों द्वारा संयुक्त रूप से शुरू की जा रही है और इसे 1200 करोड़ रुपए का बजट सौंपा गया है. अहमदाबाद नगर निगम के स्वामित्व वाले साबरमती रिवरफ्रंट डेवलपमेंट कॉरपोरेशन लिमिटेड पर इसे पूरा करने का जिम्मा है.
यह उपक्रम को सेंट्रल विस्टा और काशी विश्वनाथ धाम मंदिर कॉरिडोर पुनर्विकास परियोजनाओं के समान स्तर पर रखता है. इनमें से प्रत्येक की हाई-प्रोफाइल स्थिति, उनका बड़ा पैमाना (सेंट्रल विस्टा राजधानी के बीचोबीच तीन किलोमीटर की दूरी को कवर करता है, जबकि काशी विश्वनाथ कॉरिडोर पचास वर्ग किलोमीटर में फैला है) और उनका बकाया बजट (सेंट्रल विस्टा के लिए 13,450 करोड़ रुपए और काशी विश्वनाथ के लिए 900 करोड़ रुपए, सभी की सरकार द्वारा आपूर्ति की गई) का मतलब है कि, वर्तमान सरकार के एजेंडे के मामले में, “पुनर्विकास” ने “विकास” पर भारी पड़ना शुरू कर दिया है. जबकि ”विकास” वह सुनहरा टिकट था जिसने मोदी को सिंहासन अर्जित करवाया था.
इन प्रयासों के बीच समानताएं यहीं खत्म नहीं होती हैं. अहमदाबाद स्थित वास्तुकार बिमल पटेल, जिन्हें 2019 में पद्म श्री से सम्मानित किया गया था, तीनों परियोजनाओं के प्रभारी योजनाकार हैं. हर परियोजना के लिए “विश्व स्तरीय,” “आधुनिक” और “अत्याधुनिक” जैसी आधिकारिक घोषणाएं वैश्वीकरण के बाद की रियल-एस्टेट मार्केटिंग जुबान से मेल खाती है. हर परियोजना के लिए आकर्षक प्रचार सामग्री, आकर्षक दृश्य, वीडियो और वेबसाइटें हैं. अपने विशाल आकार और स्थिति के बावजूद, तीनों परियोजनाएं बहुत कम, लगभग असंभव रूप से छोटी, समय सीमा से बंधी हैं. बावजूद इसके कि परियोनाओं में तबदीलियों की जरूरत है और यहां तक कि कई सांस्कृतिक महत्व के प्रतीकों, जो अक्सर महान राष्ट्रीय मूल्य के हैं, हर मामले में आपाधापी, सोच समझकर फैसला लेने की जरूरत पर हावी रही है. सभी तीन परियोजनाओं ने लोकतांत्रिक पारदर्शिता की सामान्य प्रक्रियाओं को दरकिनार कर दिया, जैसे कि संसदीय चर्चा या सार्वजनिक परामर्श, इसमें वे भी शामिल हैं जिन्हें विध्वंस सीधे प्रभावित करेगा, जैसे कि क्षेत्र के निवासी. तीनों ने अपने-अपने क्षेत्रों के दायरे को अपनी प्रारंभिक क्षेत्र सीमा से आगे और अक्सर बहुत ज्यादा आगे, बढ़ाया और राज्य के अधीन काफी जमीन ले आए.
अक्टूबर 2021 में एमके गांधी के परपोते और महात्मा गांधी फाउंडेशन के अध्यक्ष तुषार गांधी ने प्रस्तावित परियोजना के खिलाफ एक जनहित याचिका दायर की. उनकी याचिका का एक प्रमुख कारण उनका डर था कि परियोजना आश्रम की भौतिक संरचना को बदल देगी और इसके प्राचीन “सादगी और मितव्ययिता” के स्वरूप को भ्रष्ट कर देगी जो उनके अनुसार, “गांधी की विचारधारा का प्रतीक है.” लेकिन यह प्रस्ताव में निहित सरकारी भागीदारी की सीमा से भी प्रेरित था.
आठ महीने पहले गुजरात सरकार द्वारा पारित एक प्रस्ताव में आश्रम के विकास के लिए एक शासी परिषद और एक कार्यकारी परिषद के गठन की घोषणा की गई थी. समितियों का नेतृत्व तत्कालीन मुख्यमंत्री विजय रूपाणी और उनके मुख्य प्रधान सचिव के कैलाशनाथन को करना था. गवर्निंग काउंसिल ने महात्मा गांधी साबरमती आश्रम मेमोरियल ट्रस्ट के गठन को मंजूरी दी, जिसे सितंबर 2021 में पंजीकृत किया गया था. दोनों परिषदों का गठन सरकारी पदाधिकारियों द्वारा किया गया था.
प्रस्ताव को चुनौती देते हुए तुषार गांधी द्वारा दायर जनहित याचिका में मांग की गई कि पुनर्विकास के काम का नेतृत्व उन ट्रस्टों को सौंपा जाए जो वर्तमान में आश्रम चलाते हैं : साबरमती आश्रम संरक्षण और स्मारक ट्रस्ट, साबरमती हरिजन आश्रम ट्रस्ट, खादी ग्रामोद्योग प्रयोग समिति, साबरमती आश्रम गौशाला ट्रस्ट, गुजरात हरिजन सेवक संघ और गुजरात खादी ग्रामोद्योग मंडल. उन्होंने मुझे बताया, “सरकार द्वारा गठित नए निकाय मौजूदा स्वायत्त ट्रस्टों के अधिकार पर प्रभावी रूप से हावी हैं. आश्रम के कामकाज में किसी भी पूर्व सरकार ने हस्तक्षेप नहीं किया है, प्रतिष्ठान को पूरी तरह से पुन: आकार देने के लिए कठोर कदम उठाने की तो बात ही छोड़ दें.”
आश्रम गांधी द्वारा 1916 में खरीदी गई जमीन पर स्थित है. यहां उन्होंने अपने जीवन के 13 महत्वपूर्ण वर्ष बिताए. 1926 में उन्होंने अपने भतीजे मगनलाल गांधी के साथ सत्याग्रह आश्रम ट्रस्ट की स्थापना की. चार साल बाद, दांडी मार्च के तुरंत बाद, उन्होंने हरिजन सेवक संघ को आश्रम देने का फैसला किया. इस अस्पृश्यता विरोधी संघ की स्थापना उन्होंने ने ही की थी. तुषार गांधी ने कहा कि इस निर्णय के बारे में एचएसएस अध्यक्ष उद्योगपति घनश्याम दास बिड़ला को सूचित करता उनके परदादा का पत्र, “आश्रम के संबंध में उनकी अंतिम इच्छा और वसीयतनामा है.”
अहमदाबाद के सत्याग्रह आश्रम में शाम की प्रार्थना सभा में महात्मा गांधी. विट्ठलभाई झावेरी / दिनोदिया फोटो
हालांकि, एचएसएस को आश्रम दान करने की गांधी की इच्छा पूरी नहीं हो सकी. इसके बजाए, लगभग एक दशक बाद, 1939 में आश्रम की भूमि हरिजन आश्रम ट्रस्ट को दे दी गई, जिसके बिड़ला ट्रस्टी थे. गांधी की हत्या के बाद, 1948 में, हरिजन आश्रम ट्रस्ट के तहत भूमि का विभाजन किया गया और छह अलग-अलग ट्रस्टों को सौंपा गया जो वर्तमान में आश्रम के संरक्षक हैं. इनमें से प्रत्येक ट्रस्ट का अपना अधिकार है. साबरमती आश्रम प्रिजर्वेशन एंड मेमोरियल ट्रस्ट अथवा साबरमती आश्रम संरक्षण एवं मेमोरियल ट्रस्ट पर गांधी के निजी दस्तावेज और पूरे आश्रम के प्रबंधन और संरक्षण की व्यापक जिम्मेदारी है. एसएपीएमटी के प्राधिकार का रणनीतिक अधिग्रहण, जिससे तुषार गांधी और कई अन्य लोग डरते हैं, इस अभिलेखागार को जो भारत की स्वतंत्रता के साथ अटूट रूप से जुड़ा है, भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के हाथों में सौंप देगा जो दशकों से अपने संशोधनवादी इतिहास को बढ़ावा देने की कोशिश करते रहे हैं.
राष्ट्र के लिए आश्रम के गहन प्रतीकात्मक महत्व को देखते हुए, जानकारी का यह अभाव खलता है. चंदावरकर ने कहा, “इस तरह की एक परियोजना, जो भारत के स्वदेशी स्वतंत्रता संग्राम के प्रतीक संस्थान से संबंधित है, को जन सुनवाई के साथ शुरू करना चाहिए था.”
परियोजना की योजनाओं के साथ-साथ इसकी प्रगति से पता चलता है कि आश्रम की भूमि का एक बड़ा हिस्सा, जो निजी स्वामित्व में है, राज्य द्वारा शासित और समाहित किया जाएगा. मुख्यमंत्री कार्यालय द्वारा जारी एक वीडियो में इस परियोजना को एक “बहाली” के रूप में वर्णित किया गया है, जिसका उद्देश्य आश्रम को उस तरह विकसित करना है जैसे गांधी के समय में था, जब यह आधा वर्ग किलोमीटर में फैला था. ऐसा करने के लिए, आश्रम के आकार को दस गुना बढ़ाया जाएगा, 48 विरासत भवनों का जीर्णोद्धार किया जाएगा और गांधी के दर्शन का “आकर्षक अनुभव” प्रदान करने के लिए नई सुविधाएं स्थापित की जाएंगी.
बेंगलुरु के एक वास्तुकार प्रेम चंदावरकर ने मुझे बताया कि ऐतिहासिक निर्मित वातावरण में स्थापत्य हस्तक्षेप एक लंबी प्रक्रिया है. आमतौर पर, वे साइट के हेरिटेज ऑडिट से पहले होते हैं. ऐसा सर्वेक्षण साबरमती आश्रम परियोजना के लिए विशेष रूप से प्रासंगिक लगता है क्योंकि यह आधिकारिक तौर पर बहाली के लिए है. बिमल पटेल ने 2021 हिंदुस्तान टाइम्स लीडरशिप समिट में एक साक्षात्कार में इस बात पर जोर दिया था कि केवल पुरानी इमारतों को ही बहाल किया जाएगा. पटेल ने कहा था, “पुनर्स्थापन परियोजना,” भविष्य की पीढ़ियों के लिए इन “ढहती और सड़ती” इमारतों को उपलब्ध कराएगी. पटेल आश्रम में गांधी के समय में बनाए गए 63 भवनों में से 48 का जिक्र कर रहे थे जिनका जीर्णोद्धार किया जाएगा. स्मारक के मैदान के लिए “असंगत” समझी जानी वाली बड़े आश्रम परिसर में लगभग 200 अन्य इमारतों को ध्वस्त किया जाना है.
चंदावरकर ने कहा, “विध्वंस” शब्द का वर्तमान भारत में नकारात्मक अर्थ है लेकिन अधिकांश निर्माण स्थलों पर यह एक असावधान क्रिया है. बहाली साइटों को पुराने, क्षयकारी संरचनाओं के विध्वंस की आवश्यकता हो सकती है या निर्मित स्थान के कुछ हिस्सों में खराब निर्माण संरचनात्मक संशोधनों के माध्यम से भी यह हो सकता है जिन्हें साइट की ऐतिहासिक अखंडता को बहाल करने के लिए हटाने की आवश्यकता हो सकती है. एसएपीएमटी के सदस्यों और ट्रस्ट से जुड़े अन्य लोगों के अनुसार, आश्रम में जो विध्वंस की योजना बनाई गई थी और वर्तमान में किया जा रहा है- जिसमें गुजरात सरकार के तोरण होटल और राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड के कार्यालय सहित कई समकालीन संरचनाएं शामिल हैं- मुख्य रूप से इस प्रकृति की हैं.
फिर भी साबरमती आश्रम जैसी साइट पर क्या संरक्षित किया जाना चाहिए और क्या त्यागना है, इसके चयन के लिए विशेषज्ञ मूल्यांकन की आवश्यकता होती है. हालांकि गांधी से सीधे संबंधित संरचनाओं को खत्म करने की किसी योजना का कोई संकेत नहीं है, फिर भी यह स्पष्ट नहीं है कि क्षेत्र का व्यापक विरासत ऑडिट किया गया है या नहीं. कम से कम अहमदाबाद स्थित वास्तुकार रियाजी तैयबजी ने मुझे बताया कि जिन इमारतों का जीर्णोद्धार किया जा रहा है उन्हें विरासत के रूप में घोषित करने की आवश्यकता होगी और जिन्हें ध्वस्त किया जाना है उन्हें मरम्मत से परे घोषित करना होगा. “इस पैमाने और महत्व की एक परियोजना में आमतौर पर इसके लिए एक प्रक्रिया होती है और इस तरह के कार्य को करने के लिए विशेषज्ञों को नियुक्त करती है.”
तुषार गांधी ने कहा कि यह विशेष रूप से आवश्यक है उन लोगों के कारण जो ऐसी स्थिति को नियंत्रित कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि उनकी जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने तर्क दिया कि आश्रम की परिधि पर केवल “आंखों को सताती झुग्गी जैसी संरचनाओं” को ध्वस्त किया जाएगा. “जिसे वह झुग्गी बस्तियों के रूप में संदर्भित कर रहे थे, वे आबाद संरचनाएं हैं, जिनमें आश्रमवासी रहते थे. उनके घर ऐतिहासिक स्थल हैं. उन्हें मलिन बस्तियों के रूप में वर्णित करना न केवल बकवास है बल्कि खतरनाक भी है क्योंकि हृदय कुंज, आश्रम में बापू का पूर्व घर, वास्तुकला की दृष्टि से इनमें से कई के समान है.” उन्होंने कहा कि वह इसे अधिकारियों के सामने नहीं रखेंगे, “जो स्थान की ऐतिहासिकता की कोई समझ नहीं रखते हैं, इसी तरह इसे एक तुच्छ आंख की किरकिरी के रूप में वर्गीकृत करते हैं.”
तैयबजी गांधी विरासत स्थल मिशन का हिस्सा थे, जिसने अन्य बातों के अलावा देश भर में गांधी से जुड़ी विरासत का दस्तावेजीकरण किया. आश्रम में, इस तरह के दस्तावेज़ीकरण केवल एसएपीएमटी द्वारा प्रबंधित किए जा रहे कुछ भवनों को कवर करता है. अन्य ट्रस्टों के तहत कई अन्य को अंतर-ट्रस्ट संघर्षों के कारण छोड़ना पड़ा. तैयबजी ने कहा, “चूंकि पुनर्विकास परियोजना इस समझ पर आधारित है कि आश्रम को, एक विरासत स्थल होने के नाते, संरक्षण की आवश्यकता है,” मास्टर प्लान तैयार होने से पहले ही इन सभी अन्य इमारतों का गहन ऑडिट किया जाना चाहिए था.
मुख्यमंत्री कार्यालय ने परियोजना की घोषणा करते हुए एक एनिमेटेड वीडियो के साथ मास्टर प्लान जारी किया. तैयबजी ने कहा कि इस योजना के कार्यान्वयन के लिए अहमदाबाद की शहर योजना में महत्वपूर्ण बदलाव की आवश्यकता होगी, लेकिन इसकी स्थिति इसके जारी होने के समय स्पष्ट नहीं थी. “जो मास्टर प्लान जारी किया गया था, उसका स्टेटस क्या है ?” उन्होंने पूछा. “क्या यह एक प्रस्ताव है? क्या यह अंतिम मसौदा है? क्या इसे नगर पालिका द्वारा औपचारिक रूप से स्वीकार कर लिया गया है? हम अभी नहीं जानते क्योंकि जनता को इस बारे में कोई जानकारी जारी नहीं की गई है कि किस प्रक्रिया का पालन किया जा रहा है.”
राष्ट्र के लिए आश्रम के गहन प्रतीकात्मक महत्व को देखते हुए, जानकारी का यह अभाव खलता है. चंदावरकर ने कहा, “इस तरह की एक परियोजना, जो भारत के स्वदेशी स्वतंत्रता संग्राम के प्रतीक संस्थान से संबंधित है, को जन सुनवाई के साथ शुरू करना चाहिए था.” उन्होंने मुझे बताया कि आर्किटेक्ट के चयन के लिए पैरामीटर, डिजाइन ब्रीफ, हेरिटेज ऑडिट, डेडलाइन और प्रक्रियाएं-जिनमें से ज्यादातर अस्पष्ट हैं- को जल्दी ही सार्वजनिक कर दिया जाना चाहिए था. “जब देश की सार्वजनिक स्मृति में अंतर्निहित मामले से निपटना हो तो यह मूल सिद्धांत है : न केवल आपको पारदर्शी होने की आवश्यकता है, आपको न्यायोचित ठहराने और जवाबदेही ग्रहण करने की आवश्यकता है.” लेकिन देश में ऐसी सार्वजनिक प्रक्रिया के लिए कोई ललक नहीं है. “संयुक्त संसदीय समितियों को संदर्भित किए बिना विधेयकों को पारित किया जा रहा है. यहां तक कि संसद को प्रभावित करने वाली सेंट्रल विस्टा परियोजना भी बिना किसी संसदीय निरीक्षण के शुरू की जा रही है. साबरमती आश्रम परियोजना पर शुरू से ही गोपनीयता का आवरण सार्वजनिक प्रक्रिया से दूर रहा है.
पारदर्शिता की इसी तरह की कमी ने काशी विश्वनाथ गलियारा की योजनाओं की विशेषता है. पत्रकार सुरेश प्रताप ने 2018 में फ्रंटलाइन में लिखा था, “कोई नहीं जानता कि क्या किया जा रहा है. लेकिन बिना सोचे-समझे अधिग्रहण और विध्वंस पर करोड़ों खर्च किए जा रहे हैं.” उनके लेख में कहा गया है कि इस तरह के विशाल आयामों की एक संवेदनशील परियोजना में क्या योजना बनाई जा रही है और निष्पादन कैसे आगे बढ़ना है, यह कहने के लिए कागज पर अभी तक कुछ भी नहीं है.”
जब मैंने पटेल की फर्म, एचसीपी डिजाइन, प्लानिंग एंड मैनेजमेंट, से आश्रम परियोजना के विस्तृत चित्रों के लिए संपर्क किया तो एक प्रवक्ता ने मुझे बताया कि वे अनुपलब्ध थे क्योंकि डिजाइन अभी भी “अवधारणा चरण” पर है. उन्होंने दोहराया कि मुख्यमंत्री कार्यालय द्वारा जारी मास्टर प्लान पर “अभी भी काम किया जा रहा है” और “परियोजना की प्रगति पर इसमें बदलाव हो सकते हैं.”
प्रवक्ता ने परियोजना के लिए घोषणा वीडियो संलग्न किया. यह “मास्टर प्लान” को बताता है, लेआउट की व्याख्या करता है, यह चिन्हित करता है कि आश्रमवासियों के लिए नए क्वार्टर कहां होंगे- आधिकारिक परिसर के बाहर- और नए पार्किंग स्थलों, पैदल चलने वालों, संग्रहालय की दुकानों और आगंतुक केंद्रों का संकेत देता है. लेकिन यह प्रस्तावित संरचनाओं के वास्तविक डिजाइन या उनके निर्मित क्षेत्र या मौजूदा भवनों से उनके संबंध के विवरण के बारे में कोई संकेत नहीं देता है. इस वीडियो को, जिसमें पुनर्विकसित आश्रम के 3डी विजुअलाइजेशन के माध्यम से एक आभासी रचना शामिल है, निराशाजनक रूप से अस्पष्ट हैं भले ही यह देखने अच्छा लगता है. बनावट और टोन में यह एक महंगी रियल-एस्टेट परियोजना के विज्ञापन की नकल करता है. गांधी और उनकी कर्मभूमि के बारे में वर्णित पाठ एक अतिरंजित बिक्री बोली की तरह लगता है. सेंट्रल विस्टा के लिए इसी तरह की प्रचार तकनीकों को नियोजित किया गया था.
अधिकांश वास्तुकार आपको बताएंगे कि योजना बनाने में एक खास हद तक लचीलेपन की गुंजाइश होती है. चंदावरकर ने कहा, “यह विशेष रूप से विरासत स्थलों के लिए सच है जहां खुदाई या विध्वंस शुरू होने के बाद ही साइट की स्थिति अक्सर खोजी जाती है.” हालांकि, उन्होंने कहा, “कार्य प्रगति पर है” का टैग एक रणनीतिक रुख है जिसे पटेल द्वारा सभी उपक्रमों में बनाए रखा गया है. “इस टैग को सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के लिए भी बार-बार इस्तेमाल किया गया है, जहां मास्टर प्लान ‘विकसित’ होता रहता है. अब तक यह स्पष्ट हो गया है कि यह एक सोची-समझी रणनीति है जिसे पटेल ने यह कहने के लिए अपनाया है, ‘मैं भविष्य की जवाबदेही से बचने के लिए कोई वायदा करने से बच रहा हूं.'”
इसके बावजूद आश्रम पुनर्विकास परियोजना को सेंट्रल विस्टा और काशी विश्वनाथ कॉरिडोर परियोजना की तरह तेजी से आगे बढ़ाया जा रहा है. इसे तीन साल में पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है. तीनों उदाहरणों में साइटों का राष्ट्रीय महत्व गति पर इस आग्रह को अकल्पनीय बनाता है.
चंदावरकर ने कहा, “सेंट्रल विस्टा परियोजना के लिए उन्होंने जो किया वह संभवत: अब आश्रम के लिए कर रहे हैं. सार्वजनिक डोमेन में जो कुछ भी है वह बहुत चमक-दमक भरा है. जल्द ही वास्तविक कार्य के लिए निविदाएं मंगाई जाएंगी. अगर परियोजना की जमीनी हकीकत के बारे में जनता को कोई ब्योरा जारी किया जाता है, तो वह इसके बाद ही होगा. तब तक तो यही है, क्योंकि ठेके पहले ही दिए जा चुके होंगे और खुदाई और विध्वंस पहले से ही चल रहे होंगे.
आश्रम परियोजना के लिए पहली निविदा अहमदावाद नगर निगम द्वारा सितंबर 2021 में मुख्यमंत्री कार्यालय द्वारा परियोजना की घोषणा से एक महीने पहले मंगाई गई थी. निविदा दस्तावेज में कहा गया है कि परियोजना को पर्यावरण मंजूरी की आवश्यकता नहीं होगी क्योंकि इसे गुजरात की “नगर नियोजन योजना” के तहत “बुनियादी ढांचे के विकास” के रूप में वर्गीकृत किया गया था. प्री-बिड डिस्कशन डॉक्यूमेंट के अनुसार, प्रोजेक्ट के लिए वर्किंग ड्रॉइंग भी “चरणबद्ध तरीके से” “निर्माण के अनुक्रम” के अनुसार प्रदान किया जाएगा. एएमसी को सौंपने से पहले पैसा संघ से राज्य सरकार को हस्तांतरित किया जाना था. दिसंबर में, 235.17 करोड़ रुपए की राशि का ठेका एक संयुक्त आयोग को दिया गया था. कुछ ही दिनों में तोड़फोड़ शुरू हो गई.
वाराणसी में काशी विश्वनाथ परियोजना भी विध्वंस के साथ शुरू हुई. अगर इसका कोई मास्टरप्लान था भी तो उसे जनता के साथ साझा नहीं किया गया. वाराणसी दुनिया के सबसे पुराने शहरों में से एक है जिसमें गलियां और घर सदियों पुराने हैं. कई लोग शहर की संरचना, इसके घाटों और सर्पीली गलियों को अपनी धार्मिक मान्यताओं के साथ जोड़ कर देखते हैं. लेकिन सरकार द्वारा क्षेत्र को उजाड़ने के लिए जेसीबी बुलडोजर लगाने से पहले न तो उनसे और न ही इन जगहों पर रहने वाले स्थानीय लोगों से सलाह ली गई.
साबरमती आश्रम में किए जा रहे उपाय, यहां तक कि तुषार गांधी अदालत में सरकार के जिन फैसलों के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे हैं, बहुत ही समान हैं.
साबरमती आश्रम में गांधी के निवास के बाद से बहुत कुछ बदल गया है. भूमि का एक बड़ा भाग किसी न किसी रूप में नष्ट हो गया है. जो कुछ बचा है उसकी निगरानी विभिन्न ट्रस्टों द्वारा की जाती है और गंभीर रूप से खंडित होती है. एसएपीएमटी लगभग बीस हजार वर्ग मीटर का को देखता है, जिसमें गांधी का पूर्व घर, वास्तुकार चार्ल्स कोरिया द्वारा डिजाइन किया गया एक संग्रहालय, एक खुला प्रार्थना स्थल और कुछ अन्य छोटी इमारतें शामिल हैं. हालांकि अधिकांश लोग इस क्षेत्र को गांधी का आश्रम समझते हैं, यह केवल एक अंश है, ट्रस्टियों में से एक, कार्तिकेय साराभाई ने मुझे बताया. “क्षेत्र में अभी भी और भी आश्रम मौजूद हैं, और इन टुकड़ों को एकजुट करने की योजना पर कुछ दशकों से अधिक समय से बातचीत चल रही है.”
इन योजनाओं को अतीत में कई बार कागज पर उतारा गया है, जिनमें सबसे प्रसिद्ध कोरिया और बीवी दोशी हैं. ये सभी डिजाइन एक प्रमुख लक्ष्य पर केंद्रित थे: व्यस्त सड़क को बंद करके आश्रम को स्थानिक रूप से मजबूत करना जो वर्तमान में परिसर को विभाजित करता है और आगंतुकों को गांधी द्वारा बनाई गई चीजों का अधिक समग्र अनुभव प्रदान करता है. चूंकि विचाराधीन सड़क अहमदाबाद के विन्यास के लिए महत्वपूर्ण है, हालांकि, इसे स्थायी रूप से बंद करने की किसी भी योजना के लिए सरकारी सहायता की आवश्यकता होती है. 2000 के दशक की शुरुआत में, कई विकास परियोजनाओं के हिस्से के रूप में जो उनके “गुजरात मॉडल” को परिभाषित करने के लिए आए, मोदी ने स्वेच्छा से यह सहायता दी.
साराभाई ने मुझे बताया, “मुझे याद है कि जब नरेन्द्र भाई गुजरात के मुख्यमंत्री थे, तब हमारी उनसे मुलाकात हुई थी. उस समय भी, दृष्टि मूल आश्रम की तरह एक संयुक्त आश्रम क्षेत्र बनाने की थी.” आश्रम के ट्रस्टों के करीबी लोगों ने मुझे बताया कि मोदी के समर्थन की काफी सराहना की गई थी. इसने उन जटिलताओं को सुलझाने में मदद करने के लिए राज्य की कार्रवाई का वादा किया, जिन्हें हल करने के लिए ट्रस्टों के पास संसाधन नहीं थे. 2007 में, गुजरात सरकार ने सेंटर फॉर एनवायर्नमेंटल प्लानिंग एंड टेक्नोलॉजी यूनिवर्सिटी, अहमदाबाद को एक प्रस्ताव तैयार करने के लिए कहा, जो पूरे क्षेत्र को एक साथ लाता.
हालांकि योजना ने उड़ान नहीं भरी, लेकिन इसे भुलाया नहीं गया. ऐसा लगता है कि 2019 में, मोदी की आश्रम की यात्रा के दौरान, गांधी की 150वीं जयंती के समारोह के हिस्से के रूप में फिर से उभरा. इस स्तर पर बातचीत की अनौपचारिक प्रकृति के बावजूद, अफवाहें तेजी से उड़ीं. जनवरी 2020 में, एसएपीएमटी को परिसर के संभावित उथल-पुथल के बारे में आश्रम के निवासियों के बीच हंगामे के बाद एक प्रेस विज्ञप्ति प्रकाशित करने के लिए मजबूर होना पड़ा. विज्ञप्ति में कहा गया है कि ट्रस्ट के पास किसी पुनर्विकास योजना की कोई आधिकारिक सूचना नहीं थी और बताया कि सरकार के निवासियों के साथ औपचारिक संचार की कमी ने “चिंता, असहजता और गलतफहमी” पैदा की थी.
जल्द ही आश्रम में अशांति फैल गई. कई लोगों ने इस परियोजना की घोषणा से महीनों पहले 2021 के मध्य में बात की थी. फिल्म निर्माता आनंद पटवर्धन, उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश एपी शाह, स्वतंत्रता सेनानी जीजी पारिख, लेखक नयनतारा सहगल, इतिहासकार रामचंद्र गुहा और कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ सहित सौ से अधिक दिग्गजों के खुले पत्र ने परियोजना की भव्यता, आश्रम के लिए अपरिवर्तनीय परिवर्तन और परिसर से खाली होने वाले आश्रमवासियों के भाग्य के बारे में सवाल उठाए. पत्र में कहा गया है, ” लाखों भारतीय, विशेष रूप से स्कूली बच्चे, साथ ही [साथ] विदेशी आगंतुक साबरमती आश्रम में हर साल आते हैं. इस जगह को पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए कभी भी ‘विश्व स्तरीय’ बदलाव की आवश्यकता नहीं पड़ी है.” अगर परियोजना पूरी हो जाती है, तो इसमें कहा गया है, “गांधी का सबसे प्रामाणिक स्मारक और हमारा स्वतंत्रता संग्राम हमेशा के लिए घमंड और व्यावसायीकरण में खो जाएगा .”
एसएपीएमटी ने अगले दिन एक बयान प्रकाशित किया जिसमें आश्वासन दिया गया कि ट्रस्टियों ने पत्र में “कई चिंताओं को व्यक्त किया” साझा किया और “प्रस्तावित योजना पर अधिकारियों के संपर्क में थे.” इससे माहौल नरम नहीं हुआ. गुजराती साहित्य परिषद के अध्यक्ष और परियोजना के खिलाफ अभियान में सबसे प्रमुख आवाजों में से एक प्रकाश एन शाह ने द टेलीग्राफ को बताया, “यह ऐसा मामला नहीं है जिसे सरकार और ट्रस्टियों के बीच बंद दरवाजों के पीछे सुलझाया जा सकता है. साबरमती आश्रम एक राष्ट्रीय विरासत है और भारत के लोगों को अपनी बात रखनी चाहिए. सरकार सामने आए और जनता के सामने अपना स्थिति स्पष्ट करे; ट्रस्टी सरकार की ओर से क्यों बोल रहे हैं?” एसएपीएमटी के विभिन्न करीबी सहयोगियों के साथ-साथ अन्य गांधीवादी संस्थानों और विद्वानों ने इस भावना को प्रतिध्वनित किया कि ट्रस्ट गांधी की विरासत को संरक्षित करने के अपने जनादेश का सम्मान नहीं कर रहा था.
जुलाई 2021 में, राज्य सरकार ने आश्रम से जुड़े सभी पांच ट्रस्टों को परियोजना को सैद्धांतिक रूप से मंजूरी देने का प्रस्ताव पारित करने का आदेश दिया. के कैलाशनाथन द्वारा जारी, आदेश ने परियोजना के लिए “सकारात्मक प्रतिक्रिया” के लिए ट्रस्टियों को धन्यवाद दिया और उन्हें “सभी भूमि, घरों और गतिविधियों के दस्तावेज” जिला कलेक्टर को सौंपने के लिए कहा. इनमें “ट्रस्टों के स्वामित्व वाली सभी भूमि के दस्तावेज, मानचित्र, क्षेत्र तालिका, कर रिकॉर्ड, घरों में गतिविधियों की सूची, रहने वालों और किसी भी अदालत के रिकॉर्ड या किसी भी कानूनी मामलों की जानकारी शामिल है.”
इसके तुरंत बाद एसएपीएमटी द्वारा आयोजित एक आपात बैठक में, न्यासियों ने अपनी सर्वश्रेष्ठ प्रतिक्रिया पर विचार किया. एक ट्रस्टी ने नाम न छापने की शर्त पर डेक्कन हेराल्ड को बताया, “हमने बैठक में सरकार से संपर्क करने और आश्रम के लिए एक आधिकारिक योजना की तलाश करने पर चर्चा की. हमने पुनर्विकास पर प्रस्तुतियां देखी हैं लेकिन कोई आधिकारिक दस्तावेज नहीं है.”
नवंबर 2021 में गुजरात हाईकोर्ट ने तुषार गांधी की अपील को खारिज कर दिया. सरकार की ओर से वकील ने कोर्ट को आश्वासन दिया था कि इस परियोजना में आश्रम का मुख्य हिस्सा अछूता रहेगा. सरकारी वकील का यह आश्वासन गांधी की जनहित याचिका को खारिज करने के लिए पर्याप्त माना गया. गांधी ने हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की जिसने इस साल अप्रैल में फैसला सुनाया कि कोर्ट को अपने उपरोक्त फैसले पर पुनर्विचार करना चाहिए और गुजरात सरकार और अन्य वादियों द्वारा विस्तृत हलफनामा जमा करने के बाद ही पीआईएल पर कोई फैसला लेना चाहिए.
उस महीने राज्य सरकार द्वारा दर्ज हलफनामे में तुषार गांधी की आलोचना की गई है और उनकी याचिका को बदनियति से प्रेरित प्रयास बताया गया है. उसमें कहा गया है कि इस परियोजना का विरोध करते हुए तुषार गांधी एहसान फरोमोश हो रहे हैं क्योंकि मोहनदास करमचंद गांधी के वंशज होने के नाते उन्हें गांधी जी की लेगेसी को बचाने के लिए किए जा रहे ईमानदार और व्यापक प्रयासों पर गर्व करना चाहिए परंतु उन्होंने बिना किसी अच्छे कारण के अपना विरोध व्यक्त किया है.
उस एफिडेविट कहा गया है कि परियोजना में जो कमियां हैं, सरकार उन्हें मिटाने की कोशिश कर रही है. हलफनामा कहता है कि फिलहाल गांधी आश्रम जिस हालत में है उसमें यहां आने वालों के लिए आवश्यक सुविधाओं की काफी कमी है और गांधी जी के काम, संदेश, उनके मूल दस्तावेज और किताबों आदि को रखने के लिए आश्रम अपर्याप्त है और उसमें कमियां हैं, और आने वाली पीढ़ियों के लिए गांधी जी का दर्शन, संदेश और लेगेसी को बचाए रखने की फौरी आवश्यकता है. फिलहाल साबरमती आश्रम में अकादमिक स्रोतों की कमी है और इसलिए यह जानकारों को पर्याप्त जानकारी उपलब्ध नहीं करा पाता है. इस परियोजना का मकसद आश्रम को ज्ञान का स्थल बनाना है ताकि गांधी जी का दर्शन को फैलाया जा सके. और यह सिर्फ बेकार घूमने की जगह न बनी रहे.
साबरमती आश्रम संरक्षण और स्मारक ट्रस्ट से नजदीक से जुड़े अहमदाबाद निवासी एक इतिहासकार ने मुझे नाम न छापने की शर्त पर बताया कि सरकारी हलफनामे में किए गए उपरोक्त दावे, जो आश्रम के काम को कमतर करते हैं, गलत और चिंताजनक है. इतिहासकार कहते हैं कि हलफनामा दर्ज करने वालों को यह नहीं पता कि आश्रम में आने वालों को क्या पसंद है. उन्होंने कहा कि आश्रम में कोई भी बेकार नहीं घूमता है और अगर घूमता भी है तो इसमें बुरा क्या है?
एफिडेविट में कारोबारी शब्द जैसे “वर्ल्ड क्लास” और “टूरिस्ट डेस्टिनेशन” का बार-बार इस्तेमाल किया गया है जबकि ट्रस्ट ने इस तरह के वाणिज्यिक शब्दों की अभिव्यक्तियों का इस्तेमाल न करने का अनुरोध किया था. वह इतिहासकार कहते हैं कि यह दावा करते हुए सरकार वर्तमान ट्रस्ट भूमिका को खत्म करने का आधार तैयार कर रही है जैसे कि उसमें नेहरू मेमोरियल म्यूजियम और लाइब्रेरी के साथ किया था.
पुनर्विकास परियोजना अन्य चीजों से इसलिए अलग है कि इसमें बहुत हिंसक विनाश होता है. इससे पर्यावरण को जो क्षति पहुंचती है उसे आवश्यक बताया जाता है, कहा जाता है कि यह विनाश बेहतरी के लिए जरूरी है.
जब से सरकार ने सितंबर 2021 में महात्मा गांधी साबरमती आश्रम स्मारक ट्रस्ट बनाया था तभी से सरकार द्वारा इसके अधिग्रहण का खतरा मंडरा रहा था. सरकार के साथ पुराने पत्राचार में नए ट्रस्ट के बनने के बाद की स्थिति का जिक्र नहीं था. सच तो यह है कि मोदी ने वादा किया था कि वह स्वायत्त संस्थाओं के सरकारीकरण का इरादा नहीं रखते हैं. लेकिन बावजूद इसके मार्च 2022 तक, तुषार गांधी के सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने के थोड़ा पहले तक, महात्मा गांधी स्मारक एवं मेमोरियल ट्रस्ट और इसकी गवर्निंग और कार्यकारी परिषद में सरकारी कर्मचारियों होते थे. महात्मा गांधी स्मारक एवं मेमोरियल ट्रस्ट और स्मारक की इस गवर्निंग परिषद में आश्रम ट्रस्टों के चार प्रतिनिधि के अलावा मुख्यमंत्री, वरिष्ठ नौकरशाह, जिला कलेक्टर, म्युनिसिपल कमिश्नर और दो बीजेपी सांसद शामिल हैं. प्रॉमिनेंट नेशनल लेवल गांधियन का पद हलफनामा दर्ज किए जाने तक नहीं भरा गया था, जिसे मुख्यमंत्री के सुझाव के तहत भरना था. गवर्निंग परिषद में सदस्यों की कुल संख्या 20 है और अभी छह रिक्त हैं.
नए ट्रस्ट का जनादेश पुराने ट्रस्ट के जनादेश जैसा ही है और इसलिए बहुत लोगों ने आश्चर्य व्यक्त किया है कि नए ट्रस्ट की आवश्यकता क्यों है? साराभाई ने स्वीकार किया कि “एमजीएसएएमटी क्या करेगा और क्या नहीं इसके बारे में कुछ भ्रम था और यह भी सोचा जा रहा था कि क्या यह पुराने ट्रस्ट के ऊपर होगा. पुराने ट्रस्ट के अलग-अलग सदस्यों के अलग-अलग विचार थे. मुझे लगता है कि यह एक तरह से कार्य प्रगति पर होने वाली बात है.” साबरमती आश्रम संरक्षण एवं मेमोरियल ट्रस्ट के एक अन्य सदस्य की भाषा कम कूटनयिक थी और उन्होंने बताया कि सरकार जाहिर तौर पर ट्रस्ट के साथ खिलवाड़ कर रही है. वहां ट्रस्ट के बुजुर्ग ट्रस्टियों को आश्रम के पुनर्विकास के लिए कॉंन्सेप्ट नोट तैयार करने को कह कर उन्हें व्यस्त रख रही है. अंततः सवाल बुनियादी चीजों में ही लौट आएगा, जैसे कि साबरमती आश्रम संरक्षण एवं मेमोरियल ट्रस्ट गांधी के जन्म दिवस और पुण्यतिथि कार्यक्रमों में प्रमुख वक्ता का चयन करता है, तो क्या पुनर्विकास परियोजना पूरी होने के बाद यह शक्ति उसके पास रहेगी या फिर उसके ऊपर के न्याय के पास यह अधिकार होगा.
साबरमती आश्रम संरक्षण एवं मेमोरियल ट्रस्ट के सार्वजनिक स्टैंड में इस तरह की चिंताएं दिखाई नहीं देतीं. गुजरात हाईकोर्ट में 4 अगस्त को तुषार गांधी की जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान साबरमती आश्रम के कानूनी प्रतिनिधि ने कोर्ट को बताया कि ट्रस्ट को आश्रम का सरकारीकरण न किए जाने का पूर्ण आश्वासन दिया गया है और आश्वासन के बारे में किसी को कोई शंका नहीं है और इसलिए याचिकाकर्ता को भी इस पर शक नहीं करना चाहिए.
हालांकि दूसरे ट्रस्ट उपरोक्त एसेसमेंट से सहमत हैं लेकिन ट्रस्टों के बीच लंबे समय से जारी समन्वय की कमी के चलते वर्तमान भ्रम की स्थिति को और बढ़ा दिया है और इसने आश्रम परिसरों के एकीकरण को भी नहीं होने दिया है. पिछले सालों में ट्रस्ट ने जमीन को कई कामों के लिए किराए पर दिया है. शुरुआती विरोध के बावजूद अधिकांश आश्रमवासियों ने सरकार के 60 लाख रुपए मुआवजा को स्वीकार कर लिया है और कुछ लोग आश्रम से 5 किलोमीटर के दायरे में सरकार द्वारा मुहैया कराए गए चार बेडरूम के अपार्टमेंट में चले गए हैं.
जब 200 परिवार जमीन खाली कर देंगे तो आश्रम खाली हो जाएगा. लेकिन अभी यह स्पष्ट नहीं है कि फिर इसके बाद यहां किसका मालिकाना होगा. गांधी जी ने जमीन आश्रम के हवाले कर दी थी और जमीन ट्रस्ट द्वारा निजी रूप से रखी गई है और अब जबकि राज्य सरकार जनता के पैसों का इस्तेमाल कर यह जगह खाली करवा रही है यह तय नहीं हुआ है कि पुनर्विकास प्रक्रिया पूरी होने के बाद इसका प्रबंधन कौन करेगा.
आश्रम के नए परिसर के तीन भाग होंगे. जब मैंने उनसे इस बारे में पूछा तो साराभाई ने मुझे समझाया कि साबरमती आश्रम संरक्षण और स्मारक ट्रस्ट का मूल भाग होगा. दूसरा भाग उससे बड़ा होगा जिसमें 18 नवनिर्मित भवन होंगे. यह एरिया उस भाग में होगा जहां से आश्रमवासियों को खाली कराया गया है. इस स्थान पर घूमने आने वालों के लिए प्रवेश द्वार, पार्किंग, ऑडिटोरियम और रेस्टोरेंट्स होंगे. साराभाई ने बताया कि एसएपीएमटी उस जमीन का प्रबंधन करता रहेगा जो अभी उसके अधीन है बाकी की जमीन का प्रबंधन संभवतः एमजीएसएएमटी करेगा.
पुनर्विकास के नाम पर मूल साइट के लिए जमीन को अधिग्रहित करना मोदी की ड्रीम परियोजनाओं का चरित्र सा हो गया है. उदाहरण के लिए काशी विश्वनाथ कॉरिडोर परियोजना में मंदिर क्षेत्र को 250 स्क्वायर मीटर से बढ़ा कर लगभग 50000 स्क्वायर मीटर कर दिया गया है. इसी तरह सेंट्रल विस्ता का विमल पटेल का प्लान चार लाख स्क्वायर मीटर सार्वजनिक और अर्ध सार्वजनिक जगह सरकार के नियंत्रण में लाता है. बहुत से लोगों ने इस बारे में चिंता व्यक्त की है.
हालिया दिनों देखे जा रहे नए तमाशों, जो अब हमारी दिनचर्या का हिस्सा बन चुके हैं, की तरह पुनर्विकास परियोजना का तमाशा भी हमारे जीवन का हिस्सा बनी रहेगी, यह साफ है. पुनर्विकास परियोजना अन्य चीजों से इसलिए अलग है कि इसमें बहुत हिंसक विनाश होता है. इससे पर्यावरण को जो क्षति पहुंचती है उसे आवश्यक बताया जाता है, कहा जाता है कि यह विनाश बेहतरी के लिए जरूरी है.