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चपेट में आ सकते हैं पार्किंसन रोग की 2.5 करोड़ से अधिक लोग

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नई दिल्लीः पार्किंसन रोग साल 2050 तक दुनियाभर में ढाई करोड़ से ज्यादा लोगों को चपेट में ले सकता है। चीन स्थित कैपिटल मेडिकल यूनिवर्सिटी सहित अन्य संस्थानों के शोधकर्ताओं ने अपने हालिया शोध में यह अनुमान जताया है। शोधकर्ताओं के मुताबिक, 2050 में पार्किंसन रोग से पीड़ित लोगों की संख्या 2021 के मुकाबले 112 फीसदी अधिक हो सकती है। उन्होंने कहा कि 2050 में पूर्वी एशिया (एक करोड़ से अधिक) के बाद पार्किंसन रोग के सबसे ज्यादा 68 लाख मरीज दक्षिण एशिया में हो सकते हैं। 

शोधकर्ताओं के अनुसार, ये अनुमान “स्वास्थ्य संबंधी अनुसंधान को बढ़ावा देने, नीतिगत फैसले लेने और संसाधनों का बेहतर आवंटन सुनिश्चित करने में मददगार साबित हो सकते हैं।” पार्किंसन रोग तंत्रिका तंत्र से जुड़ी एक बीमारी है, जिसमें मरीज की शारीरिक गतिविधियां धीरे-धीरे घटने लगती हैं और संतुलन लगातार बिगड़ता चला जाता है। इस रोग में मरीज की आवाज, याददाश्त और व्यवहार भी प्रभावित हो सकता है। पार्किंसन रोग के लक्षणों में शरीर के कुछ हिस्सों में कंपन और मांसपेशियों में अकड़न महसूस होना शामिल है। 

शोधकर्ताओं ने दुनिया के 195 देशों और क्षेत्रों में 2022 से 2050 के बीच पार्किंसन रोग के मरीजों की संख्या में संभावित वृद्धि और इसके लिए जिम्मेदार कारकों का अनुमान लगाने के लिए ‘ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज स्टडी 2021′ के आंकड़ों का विश्लेषण किया। 

उन्होंने पाया कि 2050 में दुनियाभर में 2.52 करोड़ लोगों के पार्किंसन रोग से पीड़ित होने का अनुमान है और यह संख्या 2021 के मुकाबले 112 फीसदी अधिक है। पश्चिमी उप-सहारा अफ्रीका में मरीजों की संख्या में सबसे ज्यादा 300 फीसदी की वृद्धि दर्ज की जा सकती है, जबकि पूर्वी और दक्षिण एशिया में इस रोग के सर्वाधिक मामले सामने आ सकते हैं। शोध में तेजी से बढ़ती बुजुर्ग आबादी को पार्किंसन रोग के मरीजों की संख्या में वृद्धि का मुख्य कारक करार दिया गया है। 

इसमें कहा गया है कि लगभग 90 फीसदी संभावित मामलों के लिए यही कारक जिम्मेदार होगा। शोध के मुताबिक, दुनियाभर में पार्किंसन रोग के मामलों में पुरुषों और महिलाओं का अनुपात 2021 के 1.46 से बढ़कर 2050 में 1.64 हो सकता है। शोध के नतीजे ‘द ब्रिटिश मेडिकल जर्नल’ में प्रकाशित किए गए हैं। 

Ramswaroop Mantri

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