(फ्रांसीसी मनोवैज्ञानिक पावलोफ़ की कहानी)
~ आरती शर्मा
_चार्ली और मैं धूप में बैठे थे। हम दोनों में से कोई ज़्यादा बात नहीं कर रहा था। बस दिमाग़ में आ रहे ऊलजलूल ख़यालों के बारे में परस्पर बतिया रहे थे। ईमानदारी से कहूँ, तो मैं उसकी बात पर बहुत ध्यान नहीं दे रहा था। हम कॉफ़ी की चुस्कियाँ ले रहे थे और समय सुखद गति से व्यतीत हो रहा था। हम दुनिया की गतिशीलता को निहार रहे थे।_
वह मुझे अपने कुत्ते के बारे में कुछ बता रहा था। किसी इंजेक्शन के बारे में जो उसे कुत्ते को देना पड़ा था। लेकिन तब भी मैंने वाकई ज़्यादा गौर नहीं किया।
बेचारे जानवर की तकलीफ़ दुखद थी। हालाँकि ईमानदारी से कहें तो उसकी उम्र पन्द्रह साल थी, जो कुत्ते के लिए एक भरी-पूरी आयु है, इसलिए आप सेाच सकते थे कि वह इस बात से वाकिफ़ है कि कुत्ते को किसी दिन जाना ही है।
‘देखो,’ चार्ली ने कहा, ‘मैं उसे भूरे रंग का तो नहीं बता सकता था।’
‘हाँ, ज़ाहिर है। आख़िर वह लेब्राडोर था, काला लेब्राडोर ही तो था न ? खैर छोड़ो, उसे हुआ क्या था ?’
‘कुछ भी नहीं। बस यही कि वो भूरा कुत्ता नहीं था। बस इतना ही।’
‘क्या ? तो उन्होंने अब कुत्तों पर भी शुरू कर दिया है।’
‘हाँ।’
पिछले महीने बिल्लियों के साथ ऐसा हुआ था। मैं बिल्लियों के बारे में जानता था। मेरे पास भी एक थी। एक आवारा बिल्ली जिसे मैंने पाला था। काले और सफ़ेद रंग की एक नन्हीं सी गन्दी-सी बिल्ली। मैं उसे पसंद करता था। लेकिन मुझे उससे छुटकारा लेना पड़ा।
मेरे कहने का मतलब है कि उनके पास भी तर्क हैं। बिल्लियों की आबादी बेकाबू हो रही थी। और जैसा कि सरकारी वैज्ञानिक कह रहे थे कि मुख्य चीज़ है भूरी बिल्लियों को ही पालना। ताज़ा प्रयोगों के मुताबिक भूरे पालतू जानवर दूसरों के मुकाबले हमारी आधुनिक शहरी ज़िन्दगी के लिहाज़ से ज़्यादा अनुकूल है। वे कम गन्दगी करते हैं और खाते भी बहुत कम हैं। किसी भी हालत में, बिल्ली आख़िर बिल्ली है और भूरे रंग से इतर रंग वाली बिल्लियों से छुटकारा पाकर एक बार में ही समस्या का निदान कर लेना ही समझदारी की बात है।
सैनिक पुलिस आर्सेनिक की गोलियाँ मुफ़्त दे रही थी। आपको यह करना होता था कि उनके खाने में गोलियां मिला दो और कहानी ख़त्म। एकबारगी मेरा दिल टूट गया। लेकिन मै जल्द ही इससे उबर गया।
मुझे यह बात मान लेनी चाहिए कि इस ख़बर ने मुझे थोड़ा सा झिझोंड़ दिया था। मुझे नहीं पता था कि क्यों। शायद इसलिए कि, कुत्ते अपेक्षाकृत बड़े होते हैं। या शायद इसलिए कि, वे मनुष्य के सबसे अच्छे दोस्त होते हैं, जैसा कि कहा जाता है।
खैर, चार्ली ने इस मामले में कदम बढ़ा ही दिये थे, और ये सही भी था। आख़िरकार इन चीज़ों के बारे में ज़्यादा माथापच्ची करने से कुछ होना-हवाना नहीं था। और जहाँ तक भूरे कुत्तों की बात है कि वे औरों से बेहतर हैं, मैं समझता हूँ ये बात सही ही होगी।
हम दोनों के बीच ज़्यादा कुछ बात करने लायक नहीं बचा तो थोड़ी देर बाद हमने अपनी-अपनी राह ली। लेकिन दिमाग़ के एक कोने में मुझे लग रहा था कि कुछ अनकहा रह गया है। बाकी का दिन इसी सन्देह के साये में गुज़रा।
इस घटना को ज़्यादा दिन भी नहीं हुए थे कि चार्ली को ब्रेकिंग न्यूज़ देने की मेरी बारी आ गयी। मैंने उसे बताया कि ‘डेली’ अब कभी नहीं छपेगा। ‘द डेली’, जिसे वह कॉफ़ी पीते हुए हर सुबह पढ़ता था।
‘तुम कहना क्या चाह्ते हो? क्या वे हड़ताल पर हैं? क्या वे दिवालिया हो गये हैं या कुछ और?’
‘नहीं, नहीं। ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। इसका सम्बन्ध कुत्तों वाले मामले से है।’
‘क्या भूरे वाले?’
‘बिल्कुल सही। एक भी दिन ऐसा नहीं गुज़रा जब उन्होंने उस नये क़ानून के बारे में अख़बार में चर्चा न की हो। बात यहाँ तक आ पहुँची कि उन्होंने वैज्ञानिक तथ्यों पर ही सवाल उठाने शुरू कर दिए थे। मेरे कहने का मतलब ये कि पाठकों को पता ही नहीं था कि वे और क्या सोचें। उनमें से कुछ ने अपने कुत्ते छिपाने शुरू कर दिये थे।’
‘लेकिन ये तो संकट को बुलावा है।’
‘हां, बिल्कुल, और इसीलिए अब अख़बार पर पाबन्दी लगा दी गयी है।’
‘तुम मज़ाक कर रहे हो। रेसिंग का क्या होगा?’
‘हूँ, मेरे दोस्त, अब तुम्हें उस बारे में टिप्स आने वाले दिनों में ‘ब्राउन न्यूज़’ से लेनी शुरू करनी होगी। नहीं लोगे क्या। और कुछ भी नहीं है यहाँ। ख़ैर घुड़दौड़ का उनका सेक्शन ऊपरी तौर पर इतना बुरा भी नहीं है।’
‘दूसरे बहुत आगे निकल गये हैं। लेकिन आख़िरकार तुम्हें किसी तरह का अख़बार तो मिल ही रहा है । यानी क्या चल रहा है ये जानने का तुम्हारे पास कोई ज़रिया तो रहेगा ही। क्यों?’
मैं चला था कि चार्ली के साथ इत्मीनान से कॉफ़ी पिऊँगा, और यहां मैं ‘ब्राउन न्यूज़’ का एक पाठक बनने की चर्चा में ही उलझा हुआ था। कैफ़े में मेरे पास बैठे और लोग अपने में व्यस्त थे जैसे कि कुछ हुआ ही नहीं हो। मैं जाहिरा तौर पर ख़ामख़्वाह हलक़ान हुए जा रहा था।
उसके बाद बारी थी लाइब्रेरी की किताबों की। इस बारे में कुछ ऐसा था जो सही नहीं था। ‘द डेली’ सरीखे संगठनों से जुड़े प्रकाशन संस्थानों को अदालत में घसीटा गया था और उनकी किताबें, पुस्तकालयों और किताबों की दुकानों से हटा ली गयी थीं। लेकिन फिर दोबारा उनकी प्रकाशित हर चीज़ में कुत्ता या बिल्ली शब्दों का उल्लेख होता महसूस होता था। हमेशा ‘भूरे’ शब्द के साथ न भी हो, तब भी। तो उनकी मंशा ज़ाहिर थी।
‘ये तो बिल्कुल बेवकूफ़ी की बात है,’ चार्ली ने कहा। ‘क़ानून, क़ानून है। उसके साथ चूहे-बिल्ली का खेल करने का कोई मतलब नहीं।’
‘भूरा,’ उसने जोड़ा, अपने आसपास देखते हुए कि कहीं कोई हमारी बातचीत सुन तो नहीं रहा है था। ‘भूरा चूहा।’
सुरक्षा के लिहाज़ से हमने वाक्याशों, या दूसरे खास शब्दों के पीछे ‘भूरा’ जोड़ना शुरू कर दिया था। हम ब्राउन पेस्ट्री के बारे में दरयाफ़्त करते, शुरू में ये थोड़ा अटपटा लगा लेकिन स्लैंग तो यूं भी हमेशा बदलता रहा है, इसलिए हमें कोई फ़र्क नहीं पड़ता था कि हम अपनी बात के आख़िर में ‘भूरा’ जोड़े या कहें, भाड़ में जाओ। जो कि हम आमतौर पर कहते ही थे। कम से कम इस तरह हमने कोई मुसीबत मोल नहीं ली थी, और यही तरीक़ा हमें अच्छा लगता था।
यहाँ तक कि हमें घोड़ों पर भी जीत नसीब हुई। मेरा मतलब, ये कोई जैकपॉट या और कुछ नहीं था। लेकिन ये थी तो जीत ही। हमारी पहली भूरी विजय। और इस तरह बाक़ी हर चीज़ ठीक लगने लगी।
चार्ली के साथ बिताया एक दिन मैं हमेशा याद रखूँगा। मैंने उसे कप का फ़ाइनल देखने के लिए अपने घर बुलाया था। और जैसे ही एक दूसरे से मिले, हम हँस पड़े। उसने नया कुत्ता लिया था। वह एक विशाल भारी जानवर था। पूँछ की नोक से लेकर थूथन तक भूरा का भूरा। उसकी आँखें भी भूरी थीं।
‘है न ग़ज़ब का, ये मेरे पुराने कुत्ते से ज़्यादा दोस्ती वाला है। ज़्यादा स्वामिभक्त भी। मैं भी उस काले लेब्राडोर के बारे में क्या बातें लेकर बैठ गया था।’
जैसे ही उसने यह कहा, उसके नये कुत्ते ने सोफे के नीचे छलाँग मारी और भौंकना शुरू कर दिया। और हर भूँक में मानो वह कहता था, ‘मैं भूरा हूँ! मैं भूरा हूँ! और कोई मुझे नहीं बताता कि मुझे क्या करना है!’
हमने उसे हैरत से देखा।
‘तुम भी?’ चार्ली ने कहा।
‘मैं डर गया हूँ।’
आप देखिए, उसी वक़्त मेरी नई बिल्ली कमरे में कूदी और आलमारी के ऊपर छिपने के लिए पर्दे पर जा चढ़ी। भूरे फर वाली बिल्ली। और वे भूरी आँखें जो लगता था, आप जहाँ-जहाँ जाते हैं, वे आपका पीछा करती रहती हैं। और इसलिए हम दोनों हँस पड़े थे। संयोग के भी क्या कहने!
‘मैं भी बिल्ली वाला आदमी हूँ वैसे। देखो कितनी प्यारी है, है न?’
‘सुन्दर,’ उसने अपना सिर हिलाते हुए कहा।
फिर हम टीवी की ओर मुख़ातिब हुए। हमारे दोनों भूरे जानवर अपनी आँखों के कोनों से एक दूसरे को होशियारी से घूर रहे थे।
मैं आपको नहीं बता सकता कि इतना सब होने के बाद आख़िर उस दिन फ़ाइनल किसने जीता। मैं उस दिन को वास्तविक हँसी के दिन की तरह याद रखता हूँ। हमने वाकई महसूस किया कि शहर भर में जो बदलाव किये जा रहे थे उनके बारे में आख़िरकार चिन्तित होने की कोई वज़ह नहीं थी। मतलब, आप वही करते थे जो आपसे अपेक्षित था। और आप सुरक्षित थे। शायद नये निर्देशों ने हरेक की ज़िन्दगी आसान बना दी थी।
ज़ाहिर है, मैंने उस छोटे बच्चे को भी अपने ख़्यालों में जगह दी थी जो उस दिन सुबह मुझे दिखा था। वह् सड़क के दूसरे किनारे पर घुटनों के बल बैठा रो रहा था। उसके सामने ज़मीन पर एक नन्हा-सा सफ़ेद कुत्ता मरा पड़ा था। मैं जानता था कि वह जल्द ही इस हादसे से उबर जायेगा। आख़िरकार ऐसा नहीं था कि कुत्तों की मनाही कर दी गयी थी। उसे करना यह था कि भूरा कुत्ता लाना चाहिए था। आपको ठीक वैसा ही गोद में खिलाया जाने वाला पूडल मिल सकता था, जो वहाँ उस बच्चे के पास था। तब वह भी हमारी तरह होता। ये जानकर अच्छा लगता है कि आप क़ानून का सही पालन करते हैं।
और फिर कल, ठीक ऐसे वक़्त जब मुझे लगता था कि सब कुछ सही है, मैं बाल-बाल बचा वरना सेना पुलिस ने मुझे घेर लिया होता। भूरी पोशाक़ वाले लोग। वे कभी भी आपको यूँ ही नहीं जाने देते। ख़ुशकिस्मती से उन्होंने मुझे नहीं पहचाना क्योंकि वे इलाके में नये थे और हर किसी को अभी नहीं जानते थे। मैं चार्ली के घर जा रहा था। इतवार का दिन था, और मैं उसके घर ताश खेलने जा रहा था। मैं अपने साथ बीयर की कुछ बोतलें भी ले जा रहा था। आपको ताश के मज़ेदार खेल तो जब-तब खेलते ही रहने होंगे। मेज़ पर ताल बजाते हुए और कुछ चना-चबैना करते हुए दो-एक घण्टे बिताने की ही बात थी।
जैसे ही मैं सीढ़ियों पर चढ़ा, मुझे अपनी ज़िन्दगी का पहला धक्का लगा। उसके घर का दरवाज़ा खुला पड़ा था और सैनिक पुलिस के दो अफ़सर दरवाज़े के सामने खड़े थे। वे लोगों से चलते रहने को कह रहे थे। मैंने ऐसे ज़ाहिर किया जैसे कि मैं ऊपर की मंज़िल के किसी फ़्लैट में जा रहा हूँ और सीढ़ियों पर चढ़ गया। ऊपर से मैं लिफ़्ट के ज़रिए नीचे उतर आया। बाहर सड़क पर फुसफुसाहटें शुरू हो चुकी थीं।
‘लेकिन उसके पास तो भूरा कुत्ता है। हम सबने देखा है।’
‘ठीक है, हाँ, लेकिन वे कह रहे हैं कि पहले तो उसके पास काला था।’
‘पहले?’
‘हाँ, पहले। आपके पास पहले से ही कोई भूरा कुत्ता न होना भी एक जुर्म है। और इस बात की जानकारी मिलना मुश्किल नहीं है। वे कुछ नहीं करेंगे सिर्फ़ पड़ोसियों से पूछ लेंगे, बस।’
मैं फ़ौरन चला आया। मेरी गर्दन के पीछे पसीने की ठण्डी धार रेंगती हुई चली गयी।
अगर पहले आपके पास किसी और रंग का जानवर होना अपराध है तो सैनिक पुलिस किसी भी वक़्त मेरे भी पीछे लग जायेगी। मेरे ब्लॉक में सब जानते थे कि पहले मेरे पास एक काली-सफ़ेद बिल्ली थी। पहले! मैंने इस बारे में तो कभी सोचा ही नहीं था।
आज सुबह, ब्राउन रेडियो ने समाचार की पुष्टि कर दी। गिरफ़्तार किये पाँच सौ लोगों में चार्ली भी था। अधिकारियों का कहना था कि भले ही उन लोगों ने हाल में भूरा जानवर ख़रीद लिया हो लेकिन इसका ये अर्थ नहीं था कि उन्होंने वास्तव में अपने सोचने का तरीका भी बदल लिया हो।
‘किसी पुराने समय में ऐसे कुत्ते या बिल्ली का स्वामी होना जो क़ानून के मुताबिक नहीं है, एक अपराध है,’ उदघोषक ने ऐलान किया। फिर उसने जोड़ा, ‘ये राज्य के विरुद्ध अपराध है।’
उसके बाद जो हुआ वह और भी बुरा था। अगर आपने ख़ुद कभी कुत्ते या बिल्ली ना रखे हों लेकिन अगर आपके परिवार में किसी ने, आपके पिता या भाई या रिश्तेदार ने, अपनी ज़िन्दगी में कभी भी ऐसे कुत्ते-बिल्ली पाले हों जो भूरे न रहे हों, तो ऐसी स्थितियों में भी आप दोषी हैं। आप हर हाल में दोषी हैं।
मुझे नहीं मालूम कि उन्होंने चार्ली के साथ क्या किया।
ये पूरा मामला हाथ से निकल रहा था। दुनिया बौरा गयी थी और मैं अब तक सोच रहा था कि मैं अपनी नयी भूरी बिल्ली के साथ सुरक्षित हूँ।
ज़ाहिर है, अगर वे पहले पाले गये जानवर के रंग को आधार बनायें तो जिसे चाहें उसे गिरफ़्तार कर सकते हैं।
मैं उस रात पलक तक नहीं झपका सका। मुझे शुरू से ही ‘ब्राउन्स’ पर सन्देह होना चाहिए था। जानवरों के बारे में उनका पहला क़ानून। मुझे उस समय कुछ कहना चाहिए था। आख़िरकार, वह मेरी बिल्ली थी, और कुत्ता चार्ली का था। हमें सिर्फ़ ये कहना चाहिए था: नहीं। उनके सामने खड़ा हो जाना चाहिए था। लेकिन हम क्या कर सकते थे? मतलब सब कुछ इतनी तेज़ी से हुआ। और फिर कामकाज भी था और दुनिया भर की दूसरी चिन्ताएँ। और यूँ भी हम कोई अकेले तो थे नहीं। हर किसी ने ऐसा किया था। अपने सिर झुकाए रखे। हम महज़ थोड़ी-सी शान्ति और तसल्ली चाहते थे।
कोई दरवाज़ा खटखटा रहा है। ये तो सुबह का वक़्त है। बहुत सुबह। इस समय तो कोई राउण्ड पर नहीं आता। अभी तो उजाला भी नहीं फूटा है। अभी तो सुबह का रंग भूरा है।
ज़ोर-ज़ोर से दरवाज़ा पीटना बन्द करो। मैं आ रहा हूँ…!
(चेतना विकास मिशन)