अग्नि आलोक
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*मदर ऑफ मैथमेटिक्स*

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*(व्यंग्य : राजेंद्र शर्मा)*

चंडीगढ़ में मेयर के चुनाव में जो हुआ, वह क्या था? सिंपल है — डैमोक्रेसी की मम्मी का चमत्कार हुआ है! माना कि चमत्कार जरा बड़ा है, पर है तो चमत्कार ही। एक तो डैमोक्रेसी की मम्मी और ऊपर अमृतकाल; फिर रामलला भी आ चुके हैं — चमत्कार तो दहलाने वाला होना ही था। अमृतकाल से पहले, जिसे पक्की हार मिली होती, वह जीत की मिठाई बांट रहा है और जिसका पहले कभी भी जीतना तय था, अमृतकाल मेें हार कर आंसू बहा रहा है! बोलो जैकारा, डैमोक्रेसी की मम्मी का!

पर चंडीगढ़ में जो हुआ, डैमोक्रेसी के चमत्कार से बढक़र है। आखिर, ये गणित का भी तो चमत्कार है। इंडिया वालों के वोट थे बीस। एनडीए के वोट थे सब जोड़-बटोर कर सोलह। पर सोलह की गिनती, बीस पर भारी पड़ गयी। यह सिंपल डैमोक्रेसी के चमत्कार का मामला नहीं है। असल में इसके पीछे मैथमेटिक्स यानी गणित का चमत्कार है। डैमोक्रेसी की मम्मी कितना ही चमत्कार कर ले, पर बीस को सोलह से छोटा नहीं बना सकती है। बीस को सोलह से छोटा बनाने के लिए तो गणित का चमत्कार ही चाहिए था। और गणित ने वह चमत्कार किया; बीस को सोलह से छोटा कर दिया। अब प्लीज अमृतकाल में चीजों के नाम आपस में बदले जाने की जो तूफानी हवाएं चल रही हैं, उससे इस चमत्कार को गड्डमड्ड कोई न करे। बीस का नाम बदलकर सोलह और सोलह का नाम बदलकर, बीस नहीं किया गया है। बीस अब भी बीस ही कहलाता है और सोलह भी सोलह ही। पर उनमें किस का वजन ज्यादा है और किस का वजन कम है, मोदी जी के नेतृत्व में बस इसे बदल दिया गया है। बेशक, यह अमृतकाल में हुआ है। पर मोदी जी की मर्जी के बिना अमृतकाल में तो पत्ता तक नहीं खडक़ता है। मदर ऑफ डैमोक्रेसी के बाद, मोदी जी अब लाए हैं, मदर ऑफ मैथमेटिक्स — बीस से बड़ा सोलह! आगे-आगे देखिए, आती हैं काहे-काहे की मदर्स।

सुना है, मदर ऑफ मैथमेटिक्स तो रांची में भी अपना चमत्कार दिखाना चाहती थी, बत्तीस को अट्ठावन से बड़ा साबित करने पर तुली हुई थी। पर मोदी जी हिचक गए। एक साथ इतना चमत्कार, एक ही हफ्ते में, बिहार और झारखंड, दोनों में जै श्रीराम की सरकार; मदर ऑफ मैथमेटिक्स का चमत्कार बहुत ज्यादा हो जाता, नहीं! सो झारखंड फिलहाल कैंसल। अगला चमत्कार अगले हफ्ते, देखते रहिए केजरीवाल का नंबर आने तक।

*(व्यंग्यकार वरिष्ठ पत्रकार और साप्ताहिक ‘लोकलहर’ के संपादक हैं।)*

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