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ज़रूरी है सांप्रदायिक ताकतों और असमानता के विरुद्ध आन्दोलन : प्रो अरुण चतुर्वेदी

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भगत सिंह , राजगुरु , सुखदेव , डॉ लोहिया, गणेश शंकर विद्यार्थी और अवतार सिंह पाश के सपनो के भारत के
लिए

उदयपुर , भगत सिंह , राजगुरु ,सुखदेव , अवतार सिंह पाश और गणेश शंकर विद्यार्थी के शहादत दिवस और डॉ
राम मनोहर लोहिया के जन्म दिवस पर समता संवाद मंच द्वारा एक गोष्ठी का आयोजन रविवार 26 मार्च को
किया गया | गोष्ठी के मुख्य वक्ता मोहन लाल सुखाडिया विश्वविद्यालय के राजनीती शास्त्र विभाग के पूर्व अध्यक्ष
प्रो अरुण चतुर्वेदी ने कहा कि इन सभी क्रन्तिकारी ,पत्रकारों और नेताओं के बीच यह समानता थी कि वे
साम्प्रदायिकता के विरोधी थे और समाजवाद के पक्षधर थे | सभी ने समाज के वंचित वर्ग के लिए समान अवसरों
की वकालत की और लोकतंत्र के माध्यम से सामाजिक न्याय और समता स्थापित करना चाहते थे | डॉ लोहिया
साम्प्रदायिकता से लड़ने के लिए उदार हिंदुत्व का सहारा लेना चाहते थे और इसलिए उन्होंने पौराणिक साहित्य और
महाकाव्यों के नायकों का अच्छे से उपयोग किया | भगत सिंह मार्क्सवादी थे और एक राज्यविहीन व्यवस्था में
विश्वास करते थे जो साम्यवाद का भी अंतिम लक्ष्य था |उन्होंने वर्त्तमान समय के संकट से निबटने के लिए एक
व्यापक समाजवादी –वामपंथी एकता की आवश्यकता पर बल दिया | संगोष्ठी के दुसरे प्रमुख वक्ता प्रो हेमेन्द्र
चण्डालिया ने पाश की कविताओं के पाठ से अपने वक्तव्य का प्रारंभ किया | उन्होंने कहा कि पाश फासीवाद,
धार्मिक कठमुल्लावाद और साम्राज्यवाद के खिलाफ संघर्ष कर रहे थे |वे भगत सिंह के अनुयायी थे और देश और
दुनिया से साम्प्रदायिकता और फासीवाद को समाप्त करने के लिए संगर्ष कर रहे थे | प्रो चण्डालिया ने कहा कि
स्वतंत्रता के समय वामपंथ प्रमुख विपक्ष के रूप में था लेकिन शनैः शनैः शासक वर्ग को समर्थन देते रहने से वे
कमज़ोर होते चले गए | इसी तरह गैर कांग्रेसवाद के नाम पर दक्षिण पंथी ताकतों का समर्थन लेकर डॉ लोहिया
और उनके समर्थकों ने जनसंघ और भारतीय जनता पार्टी को मज़बूत बनाने में परोक्ष योगदान दिया | जबकि
समाजवादी और वामपंथी एकता की कमी से दोनों कमजोर होते चले गए | उन्होंने कहा कि इस समय लोकतंत्र और
संविधान दोनों पर संकट है | मीडिया , कॉर्पोरेट और दक्षिण पंथी राजनैतिक दलों की साझेदारी से एक बड़े खतरे
का सामना भारतीय जनतंत्र के सामने आ गया है | वर्गीय आधार पर लोगों को लामबंद कर एक लम्बे संघर्ष के
लिए तैयार करना ही एक मात्र रास्ता है | उन्होंने कहा कि इ वी एम् पर तो प्रश्न तो उठ ही रहे हैं पर उस से भी
बड़ा खतरा लोगों के मस्तिष्क के अपहरण का है | मीडिया ने लोगों के स्वतंत्र चिंतन पर ही घातक हमला कर दिया
है जिस से जनता को सावधान कर बाहर निकालना आवश्यक है | प्रारंभ में समता संवाद मंच के संयोजक हिम्मत सेठ ने सभी का स्वागत किया और विषय प्रवर्तन करते हुए आजादी के संघर्ष में भगत सिंह , राजगुरु और सुखदेवके योगदान का उल्लेख किया और स्वतंत्रता के पश्चात भी संसदीय राजनीती के माध्यम से सत्ता के प्रतिरोध केलिए डॉ लोहिया का स्मरण किया | चर्चा में अशोक जैन मंथन, पियूष जोशी , शैलेन्द्र सिंह आदि ने भाग लिया |संगोष्ठी की अध्यक्षता समता संवाद मंच की अध्यक्ष डॉ सरवत खान ने की |

हिम्मत सेठ

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