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आरएसएस की विकृत परंपरा के वाहक हैँ सांसद प्रताप चंद्र सारंगी

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‘भारत के अधिकांश लोगों के हिंदू धर्म से दूसरे धर्मों में शामिल होने का एकमात्र कारण यह है कि उनमें से अधिकांश ने जाति व्यवस्था से तंग आकर धर्म परिवर्तन किया है। भेदभाव को खत्म करने के बजाय, संघ उसमें सांप्रदायिक जहर घोलकर जातिवाद को बढ़ावा दे रहा है। उन्हें हटाना फादर ग्राहम स्टेन्स और भागलपुर से लेकर गुजरात तक सांप्रदायिक दंगों में मारे गए अन्य सभी लोगों को सच्ची श्रद्धांजलि होगी! और वर्तमान समय में तथाकथित हिंदुत्ववादी धर्म संसद के नाम पर हमारी संसद और संविधान को नष्ट करने का काम कर रहे हैं। इसे रोकने के लिए सभी धर्मों के बीच शांति, सद्भाव और सद्भाव में विश्वास रखने वाले सभी लोगों को एक साथ आने और इसे रोकने के लिए सक्रिय रूप से कार्रवाई करने की आवश्यकता है। यह फादर स्टेन्स और अन्य लोगों को सच्ची श्रद्धांजलि होगी जो सांप्रदायिकता की आग में जल गए थे

डॉ. सुरेश खैरनार

25 साल पहले 22 जनवरी 1999 की आधी रात यानी 23 जनवरी को मयूरभंज के महाराज रामचंद्र भंजदेव ने उड़ीसा के आदिवासियों के बीच रोगियों की सेवा के लिए 1895 में मयूरभंज कुष्ठ आश्रम की स्थापना की थी। इसे चलाने की जिम्मेदारी उन्होंने एक ऑस्ट्रेलियाई मिशनरी महिला केंट एलेनबी को सौंपी थी। केंट की उम्र 19 साल थी, जब उन्होंने इस आश्रम को चलाने की जिम्मेदारी संभालनी शुरू की। उनकी मदद के लिए फादर ग्राहम स्टेन्स जनवरी 1965 में भारत आए। उस समय उनकी उम्र 24 साल थी। उनका जन्म 18 जनवरी 1941 को हुआ था। उन्होंने अपने सोते हुए जलने की घटना से पांच दिन पहले अपना 58वां जन्मदिन मनाया था। 25 साल पहले 1999 में 23 जनवरी को उड़ीसा के मनोहर पुकुर नामक स्थान पर बीमारों की सेवा करने वाले फादर ग्राहम स्टेन्स और उनके दो बच्चों (11 वर्षीय फिलिप्स और 7 वर्षीय टिमोथी हेरोल्ड) को उनकी जीप के अंदर आग लगाकर सोते हुए ही जिंदा जला दिया गया। वैसे भारत में दलितों, आदिवासियों और महिलाओं को जलाकर मार डालने की परंपरा बहुत पुरानी है।

संसद में तथाकथित जख्मी सांसद प्रताप चंद्र सारंगी पच्चीस साल पहले ओडिशा  प्रदेश विश्व हिन्दू परिषद का अध्यक्ष पद पर था जब कंधमाल के फादर ग्रॅहम स्टेन्स और उनके दो मासुम बच्चों को जलाने की घटना विश्व हिन्दू परिषद के दारासिंह बजरंग ने कुछ अन्य असामाजिक तत्वों के साथ मिलकर इस कांड को अंजाम दिया था। यह आदमी भारत सबसे बडे सभागार जिसमें देश के कानून बनाया जाता है और अभी डॉ बाबा साहब आंबेडकर को लेकर चल रहे आंदोलन से ध्यान भटकाने के लिए इसने अपने आप को जख्मी कर के सहानुभूति बटोरने का का नाटक  कर रहा है। जैसे पिछली लोकसभा में मालेगांव विस्फोट की आरोपी प्रज्ञा सिंह ठाकुर को भोपाल से लोकसभा क्षेत्र से भाजपा ने टिकट देकर उसे जिताने के लिए भाजपा और आर एस एस ने पूरी ताकत झोक दी थी और वह पिछली लोकसभा में पांच साल सांसद थी। कई संवेदनशील कमेटियों में सदस्य भी रही है। वैसे ही सांसद प्रताप चंद्र सारंगी भी कंधमाल के घटना से संबंधित रहने की वजह से ही उसे लोकसभा का टिकट भाजपा ने दिया है। आज वह बालासोर लोकसभा सांसद है मतलब भाजपा में किसी भी व्यक्ति को टिकट देने का क्राईटिरिया क्या है यह बात सामने है। खुद नरेंद्र मोदी व अमित शाह के ट्रेक रिकॉर्ड सभी को मालूम है।

बिहार के एक गांव लक्ष्मण बाथे में 125 दलितों को उनके बच्चों, महिलाओं और बुजुर्गों के साथ जलाने की घटना के बारे में पूरा देश जानता है और सभी अपराधियों को उच्च जाति के न्यायाधीशों द्वारा बाइज्जत बरी कर दिया गया क्योंकि सभी अपराधी उच्च जाति के थे। अगर लॉर्ड बेंटिक ने राजा राम मोहन राय की बात नहीं मानी होती, तो आज भी महिलाओं को उनके पति की मृत्यु के बाद जलाने की प्रथा जारी रहती लेकिन उसके बावजूद राजस्थान के देवराला की रूपकुंवर का सती होने का समर्थन और उसके बाद सती मंदिरों की होड़। यह इस देश में अस्सी के दशक में देखा गया था और आज भी दहेज के लिए बहुओं को जलाने की घटना बंद नहीं हुई है। क्या इसी बर्बरता के कारण भगवान गौतम बुद्ध, भगवान महावीर और महात्मा गांधी को अहिंसा के सिद्धांत का प्रचार करने के लिए इतना प्रयास करना पड़ा? वरना अहिंसा का मंत्र इतना जपने की क्या जरूरत थी? क्योंकि आज भी दलित महिलाओं और आदिवासियों के खिलाफ दंगे या अत्याचार, उनकी बस्तियों को घेरना और जलाना बदस्तूर जारी है।

श्रीमती ग्लेडिस स्टेंस ने वहीं रहकर अपने पति के हत्यारों से क्षमा मांगी और उनके अधूरे काम को आगे बढ़ाने का दृढ़ संकल्प दिखाया। यह ईसा मसीह के माफ करो और भूल जाओ के दर्शन का सबसे बड़ा उदाहरण है। जिन्होंने खुद को सूली पर चढ़ाया, उनके लिए ईसा मसीह ने ईश्वर से प्रार्थना की कि वे मूर्ख हैं। वे नहीं जानते कि वे क्या कर रहे हैं। इसलिए उन्हें माफ कर दो। हालांकि दर्शन के स्तर पर यह सही है। लेकिन पच्चीस साल पहले उड़ीसा के कंधमाल जिले के मनोहरपुकुर में हुई इस जघन्य घटना के बाद गोधरा की साबरमती एक्सप्रेस के एस-6 कोच में आग लगा दी गई।   गुजरात, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में ईसाई धर्म के अनुयायियों पर लगातार हमले हुए हैं और लगातार जारी हैं। उनके धार्मिक स्थलों को भी जला दिया गया है। (यह 27 फरवरी 2002 के राज्य प्रायोजित दंगों से पहले भी चल रहा था।) ​​

हमने खुद महाराष्ट्र की सीमा से लगे जिले डांग-आह्वा में चर्चों और चर्च संचालित स्कूलों पर हुए हमलों की जांच करते हुए पाया कि इन घटनाओं के पीछे 1990 के दशक में बंगाल से आए संघ परिवार के असीमानंद नामक व्यक्ति का हाथ था। स्वामी असीमानंद ने स्थानीय भील आदिवासियों और संघ परिवार की मदद से इन हमलों को अंजाम दिया। हालाँकि, इतने वर्षों में डांग जिले की कुल 1.9 लाख की आबादी में से केवल 1.5 से 2 प्रतिशत ही ईसाई हैं। ऐसी खबरें हैं कि लगभग पूरे भारत में ईसाई आबादी का अनुपात बढ़ने के बजाय घट रहा है। आज भी यह डेढ़ से दो प्रतिशत से अधिक नहीं है क्योंकि तीन साल पहले के आखिरी महीने में भारत में कर्नाटक के बेलूर नामक स्थान पर (यह घटना हासन जिले की है) तथाकथित हिंदुत्ववादी लोगों ने एक पूजा स्थल पर हमला किया था और उसके बाद देश के अन्य हिस्सों में भी चर्चों पर हमले जारी हैं। इसके खिलाफ केंद्र में बैठी वर्तमान भाजपा सरकार के किसी भी जिम्मेदार व्यक्ति ने अब तक ऐसी घटनाओं पर चिंता या आपत्ति व्यक्त नहीं की है। यह क्या दर्शाता है?

इसके विपरीत हरिद्वार से लेकर रायपुर तक हिंदुत्ववादी तत्व तथाकथित धर्म संसद के नाम पर अल्पसंख्यक समुदायों के खिलाफ लगातार जहर उगल रहे हैं। वर्तमान सरकार ने संविधान की हजारों बार शपथ ली है लेकिन उनके ट्रैक रिकॉर्ड को देखते हुए, संविधान की शपथ लेना एक रस्म अदायगी के अलावा और कुछ नहीं है क्योंकि वर्तमान प्रधानमंत्री ने जब 10 अक्टूबर 2001 को पहली बार गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली थी, तब उन्होंने कहा था कि ‘मैं, नरेन्द्र दामोदरदास मोदी, आज से गुजरात राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में कार्यभार ग्रहण करते हुए यह शपथ लेता हूँ कि मैं इस राज्य में रहने वाले प्रत्येक नागरिक के जीवन, संपत्ति और सुरक्षा के हित में बिना किसी भेदभाव के अपने कर्तव्यों का निर्वहन करूँगा।’ 2014 में प्रधानमंत्री बनने से पहले उन्होंने तीन बार मुख्यमंत्री के रूप में एक ही शपथ ली थी। इसके बावजूद 27 फरवरी, 2002 के दंगों में उनकी बहुत गंभीर भूमिका थी।

भारत के इतिहास में पहला राज्य-प्रदत्त दंगा जानबूझकर अपनी राजनीतिक जमीन तैयार करने के लिए, और दंगों को हवा देने के लिए आयोजित किया गया था। उन्होंने अपनी संवैधानिक भूमिका का रत्ती भर भी पालन नहीं किया है। इसके विपरीत तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को नरेन्द्र मोदी को यह बताना पड़ा था! कि ‘आपने अपना राजधर्म नहीं निभाया।’ भले ही नानावटी आयोग और एसआईटी पूछताछ में तकनीकी आधार पर उन्हें बरी कर दिया गया हो अगर उस समय उनकी भूमिका की उचित जांच की जाए और उनके खिलाफ फिर से कार्रवाई की जाए तो उन्हें दोषी साबित किया जा सकता है।

हरिद्वार से लेकर रायपुर और अन्य स्थानों पर हिंदुत्ववादी लोगों द्वारा अल्पसंख्यक समुदायों के खिलाफ जो जहर फैलाया जा रहा है, उसका उपयोग हिंदू राष्ट्र की ओर मार्ग प्रशस्त करने के लिए माहौल बनाने के लिए किया जा रहा है। फादर ग्राहम स्टेन्स और उनके दो मासूम बच्चों की शहादत हिंदू राष्ट्र की ओर मार्ग प्रशस्त करने की शुरुआत है।  तत्कालीन एनडीए सरकार ने उड़ीसा में फादर ग्राहम स्टेन्स और उनके दो बच्चों को जलाने की घटना की जांच के लिए जॉर्ज फर्नांडिस के नेतृत्व में उस घटना की जांच के लिए जॉर्ज फर्नाडीज के साथ मुरली मनोहर जोशी को जानबूझकर रखा था।  वे जॉर्ज फर्नांडिस से एनडीए के लिए क्लीन चिट पाने में कामयाब रहे। इसी तरह, लोकसभा में गुजरात दंगों के समर्थन में जॉर्ज फर्नांडिस के बोलने का रिकॉर्ड लोकसभा की कार्यवाही में मौजूद है। ये वही जॉर्ज फर्नांडिस हैं जिन्होंने नरेंद्र मोदी के मुख्यमंत्री रहते हुए गोदरा कांड के तुरंत बाद तीन दिनों तक भारतीय सेना को  अहमदाबाद शहर में जाने देने की बजाए  एयरपोर्ट पर रोका रखा। जॉर्ज फर्नांडिस को यह बात अच्छी तरह पता होने के बावजूद पूरी दुनिया ने उन्हें भारत की सबसे बड़ी संसद में गुजरात दंगों का समर्थन करते देखा है। जॉर्ज फर्नांडिस की यहां क्या मजबूरी थी कि वे दंगों के पक्ष में बोले? उड़ीसा के फादर ग्राहम स्टेन्स और उनके दो किशोर बच्चों की घटना में राज्य सरकार को बचाने के पीछे कौन सी धर्मनिरपेक्ष या समाजवादी व्यवस्था देखी गई थी, तथा गुजरात के दंगों में, जो भारत के इतिहास में राज्य सरकार से सम्मानित होने वाला पहला राज्य था। इन दोनों घटनाओं में उनकी भूमिका के कारण जॉर्ज फर्नांडिस ने राजनीतिक आत्महत्या की। मेरी यह राय उनके अंधभक्तों को बहुत अप्रिय लग सकती है। वैसे तो समता पार्टी के गठन के साथ ही उनका पतन शुरू हो गया था। लेकिन उड़ीसा और गुजरात के अपराधियों को क्लीन चिट देने का कार्य नानावटी आयोग द्वारा दी गई क्लीन चिट से कहीं अधिक मायने रखता है। यह दोनों पाप 100% जॉर्ज फर्नांडिस ने किए थे। लेकिन अंधभक्त केवल भाजपा के साथ ही नहीं हैं। तथाकथित समाजवादियों में भी इनकी भरमार है। आज भी वे जॉर्ज फर्नांडिस की गलत नीतियों का समर्थन करते रहते हैं। मेरे हिसाब से समाजवादियों के राजनीतिक जीवन के पतन का यह दौर जारी है।  इस समूह को इस तरह से नष्ट होते देखना मेरे जैसे ‘राष्ट्र सेवा दल’ के सिपाही के लिए बहुत ही पीड़ादायक है, जो पचास साल से भी ज़्यादा समय से समाजवाद के लिए समर्पित है।

सिर्फ़  ग्राहम स्टेंस के शहादत दिवस पर आंसू बहाने से काम नहीं चलेगा।  इन जल्लादों को रोकने के लिए सभी शांतिप्रिय और धार्मिक रूप से संतुलित लोगों को एकजुट होकर लड़ना होगा। तत्कालीन राष्ट्रपति के.आर. नारायणन ने कहा था कि ‘कई सालों से कुष्ठ रोगियों की सेवा करने वाले फादर ग्राहम स्टेन्स के प्रति कृतज्ञ होने के बजाय, उनकी हत्या करने वाले उड़ीसा के लोगों ने सहिष्णु और मानवतावादी भारत की छवि को नुकसान पहुंचाया है। इस घटना के कारण भारत अनैतिक बन रहा है!’ भारत को दुनिया में मानवता के ऐसे अपराधियों की सूची में शामिल करने के लिए संघ परिवार पिछले 100 सालों से लगातार सांप्रदायिक नफरत फैला रहा है। इसी संदर्भ में 1989 के भागलपुर दंगों को भी शामिल किया गया है। तेरह साल बाद, 27 फरवरी 2002 को गुजरात दंगों के दौरान, राज्य सरकार की भूमिका बहुत गंभीर थी।

लेकिन अब वे देश के प्रधानमंत्री के रूप में दो बार शपथ ले चुके हैं। जिसके बाद 15 अगस्त को लाल किले पर अपने संबोधन में उन्होंने 135 करोड़ लोगों को टीम इंडिया बताया। क्या फादर ग्राहम स्टेन्स और उनके दो बेटे, गुजरात के अहसान जाफरी, इशरत जहां, अखलाक, जुनैद, बिलकिस बानो, कौसर बीका, मलिका शेख और अल्पसंख्यक समुदाय के अन्य सभी लोग उन 135 करोड़ लोगों में शामिल नहीं हैं? जो आज डर में जी रहे हैं। क्या किसी भी देश के सामाजिक स्वास्थ्य के लिए यह बहुत खतरनाक नहीं है कि 30-35 करोड़ लोग ऐसी असुरक्षित स्थिति में रहें? 23 साल पहले आने वाली 27 फरवरी को गुजरात में अल्पसंख्यकों के जान-माल को नष्ट कर दिया गया था। आजादी के बाद भारत में यह पहला राजकीय दंगा है। इसी दंगाई ने देश का प्रधानमंत्री बनने के बाद पिछले दस सालों में मॉब लिंचिंग में सैकड़ों लोगों की जान ले ली है। कानून-व्यवस्था बनाए रखने की शपथ लेने के बावजूद वह ‘मंदिर वहीं बनाएंगे’ की गतिविधियों को अंजाम दे रहा है। इसके लिए देश के सर्वोच्च न्यायालय को भी संविधान के विरुद्ध निर्णय लेने पर मजबूर होना पड़ा है।

अठारहवीं सदी में वसई की लड़ाई के दौरान चिमाजी अप्पा पेशवा ने छत्रपति शिवाजी महाराज जैसे सुशोभित पुर्तगाली परिवार में एक पुर्तगाली महिला को सुरक्षित भेजने की व्यवस्था की थी। तो बैरिस्टर विनायक दामोदर सावरकर ने उनके बारे में भी अच्छी-बुरी बातें कही हैं। संघ के सबसे लंबे समय तक संघ प्रमुख (33 वर्ष) रहे श्री. माधव सदाशिव गोलवलकर ने भी अपने लेख में कहा है कि ‘अल्पसंख्यक समुदायों के लोगों को बहुसंख्यक समुदायों की दया पर जीने की आदत डालनी होगी।’ इसका मतलब यह है कि उनका जीवन और संपत्ति के साथ-साथ उनकी महिलाओं का सम्मान और गरिमा हिंदुओं की सद्भावना पर निर्भर करेगी इसलिए बिलकिस बानो के दोषियों को माफ करने का कार्य और फादर ग्राहम स्टेन्स व उनके दो बच्चों को जलाने की घटना को अंजाम देने वाले दोषियों को। सबसे महत्वपूर्ण बात, बाबरी मस्जिद विध्वंस और गुजरात दंगों के दोषियों को न केवल क्लीन चिट देना, बल्कि उन्हें पुरस्कारों से सम्मानित करना। खासतौर पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री जैसे संवैधानिक पद पर रहते हुए उन्हें इस देश के सर्वोच्च पद पर बिठाने की मानसिकता को देखते हुए वे खुलेआम गैर जिम्मेदार  बयान दिया कि ‘अगर एक हिन्दू मारा जाता है तो FIR दर्ज करने की बजाय दस मुसलमानों को मार कर आ जाना चाहिए।’  ‘जो भी हम कह रहे हैं वह सही है, हमें कानून और कोर्ट की कोई परवाह नहीं है। आज वे देश के ठेकेदार बन गए हैं और यह सब वे हिन्दू धर्म के नाम पर कर रहे हैं। हाँ, क्यों नहीं करेंगे? क्योंकि जिस मनुस्मृति को संघ भारत का संविधान मानता है उसके अनुसार! अगर कोई ब्राह्मण बलात्कार करता है तो उसे मामूली सजा देकर छोड़ देना चाहिए, यही प्रावधान है। तो दूसरी तरफ हिंदुत्ववादियों ने कहा कि बिलकिस बानो के अपराधी ब्राह्मण हैं और जेल में उनके साथ अच्छा व्यवहार हुआ। उनके द्वारा ऐसा अपराध करने का कोई कारण नहीं है।  क्योंकि ब्राह्मण ऐसा कभी नहीं कर सकता! आज ये बात हज़ारों सालों से भी ज़्यादा समय से चली आ रही है।

डॉ. बाबा साहब अंबेडकर ने अपने जीवनकाल में ही 25 दिसंबर 1927 को इस सड़ी हुई मनुस्मृति को जला दिया और फिर अंततः तथाकथित महान हिंदू धर्म को त्याग दिया। इसके बाद 14 अक्टूबर 1956 को अपने लाखों अनुयायियों के साथ हिंदू धर्म को त्याग कर बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया। स्वामी विवेकानंद ने भी कहा है कि ‘भारत के अधिकांश लोगों के हिंदू धर्म से दूसरे धर्मों में शामिल होने का एकमात्र कारण यह है कि उनमें से अधिकांश ने जाति व्यवस्था से तंग आकर धर्म परिवर्तन किया है। भेदभाव को खत्म करने के बजाय, संघ उसमें सांप्रदायिक जहर घोलकर जातिवाद को बढ़ावा दे रहा है। उन्हें हटाना फादर ग्राहम स्टेन्स और भागलपुर से लेकर गुजरात तक सांप्रदायिक दंगों में मारे गए अन्य सभी लोगों को सच्ची श्रद्धांजलि होगी! और वर्तमान समय में तथाकथित हिंदुत्ववादी धर्म संसद के नाम पर हमारी संसद और संविधान को नष्ट करने का काम कर रहे हैं। इसे रोकने के लिए सभी धर्मों के बीच शांति, सद्भाव और सद्भाव में विश्वास रखने वाले सभी लोगों को एक साथ आने और इसे रोकने के लिए सक्रिय रूप से कार्रवाई करने की आवश्यकता है। यह फादर स्टेन्स और अन्य लोगों को सच्ची श्रद्धांजलि होगी जो सांप्रदायिकता की आग में जल गए थे।

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