‘सितारों के आगे जहां और भी हैं, अभी वक्त का इम्तिहां और भी हैं..’ अल्लामा इकबाल की गजल दोहराकर मुख्तार अब्बास नकवी भविष्य की बात करते हैं। मंत्री पद छोड़ दिया, राज्यसभा सांसद रहे नहीं। आपातकाल से शुरू हुआ नकवी का सफर आज इस मुकाम तक आ पहुंचा है। चर्चा है कि उन्हें कोई बड़ी जिम्मेदारी दी जा सकती है। उनका नाम उपराष्ट्रपति पद के लिए भी चल रहा है। एक चर्चा यह भी है कि उन्हें राज्यपाल बनाया जा सकता है। नकवी के राज्यसभा कार्यकाल के साथ संसद में बीजेपी का मुस्लिम प्रतिनिधित्व खत्म हो गया। 395 सांसदों में बीजेपी के तीन मुस्लिम MPs थे- नकवी, एमजे अकबर और सैयद जफर इस्लाम। बाकी दोनों के कार्यकाल पहले ही खत्म हो चुके थे। नकवी तीन बार राज्यसभा सांसद रहे हैं। वह बीजेपी के चुनिंदा मुस्लिम नेताओं में से हैं जिन्हें पार्टी ने सांसद बनाया। वह नरेंद्र मोदी सरकार 2.0 का इकलौता मुस्लिम चेहरा भी रहे। मोदी 2.0 में नकवी को अल्पसंख्यक मामलों का मंत्रालय दिया गया था। बुधवार को नकवी ने मंत्रिमंडल से त्यागपत्र दे दिया।
17 की उम्र में गिरफ्तारी, जनता पार्टी और अयोध्या..
नकवी की शुरुआती पहचान एक युवा नेता के तौर पर बनी। जब आपातकाल लागू हुआ तो नकवी को महज 17 साल की उम्र में मेंटेनेंस और इंटरनल सिक्योरिटी एक्ट (MISA) के तहत जेल में डाल दिया गया। नकवी को नैनी सेंट्रल जेल में डिटेन करके रखा गया। जनता पार्टी की यंग ब्रिगेड का हिस्सा रहे नकवी ने जेपी आंदोलन में भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। 1980 में राज नारायण के नेतृत्व वाली जनता पार्टी (सेक्युलर) के टिकट पर इलाहाबाद वेस्ट से चुनाव लड़ा। 1989 में उन्होंने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में अयोध्या से ताल ठोकी। अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय की वेबसाइट पर नकवी के प्रोफाइल के अनुसार, नकवी ने बीजेपी टिकट पर दो विधानसभा चुनाव (1991, 1993) लड़े।
राज्यसभा का कार्यकाल जरूर पूरा हुआ है लेकिन सियासी और सामाजिक जीवन का कार्यकाल पूरा नहीं हुआ है। इसलिए सितारों के आगे जहां और भी हैं, अभी वक्त का इम्तिहां और भी हैं। पूरे समर्पण के साथ समाज के सरोकार को लेकर शुरू से जिस प्रकार काम करता रहा हूं, आगे भी करेंगे।
मुख्तार अब्बास नकवी
1998 में नकवी ने रामपुर लोकसभा सीट का चुनाव जीता और पहली बार संसद पहुंचे। अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली सरकार में उन्हें सूचना और प्रसारण मंत्रालय में राज्य मंत्री बनाया गया। नकवी के पास संसदीय मामलों के मंत्रालय का अतिरिक्त चार्ज भी रहा। बीजेपी के भीतर भी नकवी का कद बढ़ता चला गया। वह पार्टी उपाध्यक्ष रहे हैं और लंबे समय तक प्रवक्ता भी।
तीन बार राज्यसभा सदस्य रहे हैं मुख्तार अब्बास नकवी
2014 में करीब 15 साल बाद, नरेंद्र मोदी ने नकवी का कमबैक कराया। उन्हें अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय में राज्य मंत्री बनाया गया। संसदीय मामलों के मंत्रालय का भी जिम्मा नकवी के पास रहा। 2016 में नजमा हेपतुल्ला के इस्तीफे के बाद नकवी को अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय का स्वतंत्र प्रभार दे दिया गया। मोदी 2.0 में भी नकवी का मंत्रालय बरकरार रखा गया। लंबे अरसे से पार्टी नकवी का इस्तेमाल मुस्लिम मसलों पर राय रखने के लिए करती आई है।
मुख्तार अब्बास नकवी (फाइल)
‘चलते-चलते यूं ही कोई मिल गया था…’
कोई चार दशक पहले की बात होगी। नकवी तब इलाहाबाद यूनिवर्सिटी (अब प्रयागराज) में पढ़ते थे, उनकी मुलाकात सीमा से हुई। नकवी नेतागिरी में आगे थे, सीमा सीधी-साधी शर्मीली सी। एक इंटरव्यू में अपनी लव स्टोरी के बारे में पूछे जाने पर नकवी गुनगुना उठते हैं, ‘चलते-चलते यूं ही कोई मिल गया था… सरे राह चलते-चलते…’ सीमा लड़कों से बात नहीं करती थीं, नकवी से उनका मिजाज बिल्कुल जुदा था लेकिन प्यार हो गया। सीमा के घरवालों, खासतौर पर उनकी मां को रिश्ता पसंद नहीं था। उन्हें मुख्तार से मिलने को भी मना कर दिया गया।