इंदौर अपनी विविधता और आधुनिकता के मेल से भारत के सबसे जीवंत शहरों में से एक है। इस शहर की पहचान उसके लोगों की सादगी, समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और तेज़ी से उभरते आर्थिक केंद्र के रूप में है। इंदौर के लोग अपनी सरलता और मेहमाननवाजी के लिए मशहूर हैं। यहां के निवासियों की जीवनशैली व्यस्त होने के बावजूद सहज और सकारात्मक है। सुबह-सुबह चाय की दुकानों और पोहा-जलेबी के ठेलों पर बातचीत और हंसी-ठिठोली का जो माहौल होता है, वह इंदौर की आत्मा को दर्शाता है। यहां के लोग हर मेहमान को परिवार का हिस्सा मानते हैं। इंदौर विभिन्न संस्कृतियों और परंपराओं का संगम है। यहां राजस्थान, गुजरात, पंजाब और दक्षिण भारत से आए लोग मिल-जुलकर रहते हैं। यह शहर व्यापार, उद्योग और शिक्षा के क्षेत्र में देशभर के लोगों को आकर्षित करता है। इंदौर न केवल अपनी ऐतिहासिक धरोहर और आधुनिकता के लिए जाना जाता है, बल्कि यह अपने बहुरंगी सामाजिक ताने-बाने के कारण सचमुच एक कॉस्मोपॉलिटन शहर है। यह शहर आधुनिकता और परंपराओं का एक ऐसा संगम है जो हर किसी का दिल जीत लेता है।

डॉ. प्रकाश हिन्दुस्तानी
इंदौर को मुंबई का बच्चा क्यों कहा जाता है, सवाल कई लोगों के मन में होगा। जवाब यही है कि जैसे बच्चा अपने पिता की रेप्लिका होता है , वैसे हो इंदौर मुंबई की रेप्लिका ही है। वैसा ही उद्यमी स्वभाव, कॉस्मोपोलिटन जीवन, आधुनिकता और पुरातन का सम्मिश्रण, 24 घंटे जागने वाला, नई तकनीकों और विचारों स्वागत करता हुआ मराठी भाषियों का प्रिय शहर ! यहां मराठीभाषियों का वर्चस्व इसलिए रहा कि महाराष्ट्र से नज़दीकी है और यहाँ के शासकों मराठी भाषी रहे हैं। बेशक, यहां समंदर और बंदरगाह नहीं हैं, स्टॉक एक्सचेंज नहीं है और फिल्म उद्योग भी नहीं है। लेकिन चारों तरफ काली मिट्टी वाला विशाल कृषि क्षेत्र होने के कारण यह कारोबार का प्रमुख केंद्र है। यहां कपास की प्रचुर खेती होती है, इसलिए अनेक बड़ी कपड़ा मिलें यहाँ खोली गई। इसलिए इंदौर को सेन्ट्रल इण्डिया का मैनचेस्टर भी कहा जाता था। अब कपड़ा मिलें बंद हो गईं और शेयर बाजार ऑनलाइन हो गया है। इंदौर में फिल्म स्टूडियो भले ही नहीं हों, लेकिन फिल्म डिस्ट्रीब्यूशन का सेंट्रल सर्किट इंदौर ही रहा और मध्य प्रदेश, राजस्थान और महाराष्ट्र के कुछ इलाकों में फिल्म प्रदर्शन यहीं के डिस्ट्रीब्यूटर करते रहे। मध्य प्रदेश सोयाबीन उत्पादक राज्य है और सोयाबीन एक्सट्रैक्शन कारखानों के कारण यहां वैश्विक कारोबार बहुत होता है।

देश के दस प्रमुख विकसित होते शहरों में इंदौर का स्थान सूरत के बाद दूसरा है। पिछले पांच साल से इंदौर जिस गति रहा है, उस बढ़ने की गति बंगलुरु, पुणे, हैदराबाद, अहमदाबाद, नोएडा, ग्रेटर नोएडा, चेन्नई, कोच्चि और नागपुर से ज्यादा है। इनमें से कई शहर इंदौर से ज्यादा आबादीवाले हैं, इसलिए वहां जीवन महानगरीय है। इंदौर में महानगरों की खूबियां भी हैं और किसी मध्यम शहर खूबियां भी! यहाँ विकास के लिए पर्याप्त भूमि, जल, मानव श्रम मौजूद है। आवागमन के साधन अच्छे हैं। घंटे भर में शहर के एक छोर से दूसरे छोर तक पहुंचा जा सकता है। इंदौर का आईआईएम परिसर देश के तमाम आईआईएम की तुलना मन सबसे सुंदर परिसर है और इंदौर का आईआईटी परिसर देश बड़ा आइआइटी परिसर है। यह देश का लगातार छह बार से देश का सबसे स्वच्छ शहर है। यहाँ नौ विश्वविद्यालय हैं, सभी प्रमुख आईटी कंपनियां हैं और देश के सबसे ज्यादा स्टार्टअप वाला शहर इंदौर ही है। स्टार्टअप्स की बात करें तो इंदौर धीरे-धीरे एक उभरता हुआ इनक्यूबेशन सेंटर बनता जा रहा है। यहां की युवा पीढ़ी नवाचार और उद्यमिता में अपने झंडे गाड़ रही है। हमेशा अनुकूल मौसम, शानदार इंफ़्रा और जिंदादिल लोग इंदौर को विशेष शहर बनाते हैं।

इंदौर का नाम भगवान इंद्र के नाम पर पड़ा। इस शहर का विकास ‘इंद्रेश्वर महादेव मंदिर ‘ के आसपास हुआ, जिसे आज भी शहर के एक ऐतिहासिक स्थल के रूप में देखा जाता है। इंदौर को 1715 में मालवा क्षेत्र के प्रमुख व्यापारिक केंद्र के रूप में स्थापित किया गया। यह मराठा शासकों के शासनकाल के दौरान विकसित हुआ, खासकर 18वीं शताब्दी में जब यह होलकर राजवंश की राजधानी बना। 1733 में मराठा शासक मल्हारराव होलकर ने इंदौर पर कब्जा किया और इसे अपनी राजधानी बनाया।
रानी अहिल्याबाई होलकर (1767-1795) ने इंदौर के विकास में अहम भूमिका निभाई। उन्होंने पूरे देश में मंदिरों, घाटों और अन्य सांस्कृतिक स्थलों का निर्माण कराया। उन्हीं के नाम पर इंदौर का हवाई अड्डा और प्रमुख विश्वविद्यालय भी है। होल्कर वंश के अन्य शासकों ने भी इंदौर को व्यापार और संस्कृति का प्रमुख केंद्र बनाया। 1818 में इंदौर ब्रिटिश प्रभाव में आया और इसे एक प्रशासनिक केंद्र के रूप में विकसित किया गया। इंदौर के पास महू को फौजी छावनी विकसित किया गया। ब्रिटिश शासन के दौरान इंदौर ने शिक्षा, रेल नेटवर्क और व्यापारिक गतिविधियों में तेजी देखी। इंदौर शहर स्वतंत्रता संग्राम के दौरान भी सक्रिय रहा और कई आंदोलनों का गवाह बना।
इंदौर अपनी विविधता और आधुनिकता के मेल से भारत के सबसे जीवंत शहरों में से एक है। इस शहर की पहचान उसके लोगों की सादगी, समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और तेज़ी से उभरते आर्थिक केंद्र के रूप में है। इंदौर के लोग अपनी सरलता और मेहमाननवाजी के लिए मशहूर हैं। यहां के निवासियों की जीवनशैली व्यस्त होने के बावजूद सहज और सकारात्मक है। सुबह-सुबह चाय की दुकानों और पोहा-जलेबी के ठेलों पर बातचीत और हंसी-ठिठोली का जो माहौल होता है, वह इंदौर की आत्मा को दर्शाता है। यहां के लोग हर मेहमान को परिवार का हिस्सा मानते हैं। इंदौर विभिन्न संस्कृतियों और परंपराओं का संगम है। यहां राजस्थान, गुजरात, पंजाब और दक्षिण भारत से आए लोग मिल-जुलकर रहते हैं। यह शहर व्यापार, उद्योग और शिक्षा के क्षेत्र में देशभर के लोगों को आकर्षित करता है। इंदौर न केवल अपनी ऐतिहासिक धरोहर और आधुनिकता के लिए जाना जाता है, बल्कि यह अपने बहुरंगी सामाजिक ताने-बाने के कारण सचमुच एक कॉस्मोपॉलिटन शहर है। यह शहर आधुनिकता और परंपराओं का एक ऐसा संगम है जो हर किसी का दिल जीत लेता है।
राजवाड़ा और लालबाग पैलेस जैसे ऐतिहासिक धरोहरें होलकर राजवंश की भव्यता की गवाही देती हैं। कृष्णपुरा की छत्रियां, गोपाल मंदिर और गांधी हॉल जैसे स्थान शहर की सांस्कृतिक धरोहर को समृद्ध करते हैं। इस शहर का नाम इंद्रेश्वर मंदिर से लिया गया, जो आज भी शहर की ऐतिहासिक धरोहर का हिस्सा है। होलकर वंश ने इंदौर को अपनी राजधानी बनाया और इसे एक सांस्कृतिक और व्यापारिक केंद्र के रूप में विकसित किया। देवी अहिल्याबाई होलकर, जो न्यायप्रियता और जनसेवा के लिए प्रसिद्ध थीं, ने इस शहर को समृद्ध और विकसित बनाया। सात मंजिला महल राजवाड़ा मराठा वास्तुकला का अद्भुत उदाहरण है। राजवाड़ा इंदौर की पहचान और उसकी ऐतिहासिक भव्यता का प्रतीक है। आज भी यह स्थल त्योहारों और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का केंद्र बना रहता है तो लालबाग पैलेस यूरोपीय शैली में बने इस महल में होलकर राजवंश के वैभव और शान का प्रतीक देखा जा सकता है। कृष्णपुरा की छत्रियां होलकर शासकों की समाधि स्थल हैं जो संगमरमर की खूबसूरत नक्काशी और वास्तुकला का उत्कृष्ट उदाहरण हैं। यह स्थान इंदौर की आध्यात्मिक विरासत को भी प्रदर्शित करता है। इंडो-गॉथिक शैली में बनी गांधी हॉल इमारत सांस्कृतिक कार्यक्रमों का मुख्य केंद्र है।इंद्रेश्वर मंदिर वही ऐतिहासिक मंदिर है जिसके नाम पर इंदौर का नाम पड़ा। इसकी पौराणिक और ऐतिहासिक महत्ता इसे विशेष बनाती है।
इंदौर की पहचान यहाँ खिलाड़ी और संगीतकार भी हैं। कैप्टन मुश्ताक अली, कर्नल सी के नायडू, राहुल द्रविड़, नमन ओझा, नरेंद्र हिरवानी, चंदू सर्वटे, शंकर लक्ष्मण, किशनलाल, मीर रंजन नेगी, संध्या अग्रवाल जैसे खेल सितारों ने इंदौर का नाम रोशन किया। संगीत और कला के क्षेत्र में बड़े गुलाम अली खान साहब, लता मंगेशकर, राहत इंदौरी, सलमान खान, जॉनी वॉकर, मकबूल फ़िदा हुसैन, सितारवादक रईस खान साहब, पलक मुछाल आदि और पत्रकारिता में राजेंद्र माथुर, प्रभाष जोशी, राहुल बारपुते, संपादक और व्यंग्यकार शरद जोशी कुछ हैं जिन्होंने देश में आग पहचान बनाई और एक पूरी नई पीढ़ी तैयार की।
इंदौर के लोग मजाकिया और जिंदादिल होते हैं। उनकी बातचीत में मजेदार जुमले और चुटकुले आम होते हैं। उनका दोस्ताना स्वभाव हर किसी को प्रभावित करता है। लोग अपने दैनिक जीवन में कई ऐसे जुमले (मुहावरे) इस्तेमाल करते हैं, जो हास्य से भरपूर होते हैं और उनकी बातचीत को दिलचस्प बना देते हैं। इंदौरी बोली में मालवी और हिंदी का अनूठा मिश्रण देखने को मिलता है। जब कोई व्यक्ति कुछ अजीब या असामान्य करता है, तो कहा जाता है कि ‘सटके क्या? ‘ तो इसका अर्थ है ‘क्या तुम पागल हो गए हो? ‘ और जब किसी को शांत रहने या ज्यादा उत्तेजित न होने की सलाह देनी हो तब कहा जाता है ‘अरे बेटा, ठंड रख! ‘
जब कुछ बेहद शानदार हो, तो इंदौरवासी इसे ‘चकाचक ‘ कहते हैं। इसका मतलब है, ‘सबकुछ बहुत अच्छा है। ‘ इंदौर के व्यावहारिक दृष्टिकोण को दर्शाता है यह जुमला – ‘आलू ले लो, चोखा बना लो! ‘ इसका मतलब होता है, हर परिस्थिति में समाधान निकालना। और जब कोई बहुत तेजी या उत्साह में हो, तो उसे थोड़ा शांत करने के लिए कहा जाता है अब बस कर मामा ! इंदौर में ‘मामा ‘ दोस्ताना तरीके से किसी को संबोधित करने का तरीका भी है। जब कोई बात कम प्रभावी लगे या उम्मीद से कम हो, तो कहा जाता है – ‘पानी कम चाय हो गई!
जब दो इंदौरी मिलते हैं तब राम राम, नमस्कार, प्रणाम आदि की जगह केवल ‘भिया’ बोलते हुए निकल जाते हैं। इसी में सब कुछ समाहित है ! जब कोई झूठ बोलता है तब कहते हैं कि क्यों फ़ोकट डिजाइन बना रहे हो यार? इसी तरह ‘पेलवान’ शब्द किसी मज़बूत दमखम वाले आदमी लिए और धर्म कर्म में रूचि रखनेवाले के लिए ‘दादा दयालु’ शब्द चलन में हैं।
उज्जैन में महाकाल लोक का निर्माण होने के बाद इंदौर में पर्यटकों की संख्या में बहुत बढ़ोतरी हो गई है। इंदौर -उज्जैन फोरलेन सड़क अब सिक्स लेन की जा रही है। इंदौर में मेट्रो रेल मार्ग का निर्माण जारी है, जिसे उज्जैन तक बढ़ने की योजना है। इंदौर से ओंकारेश्वर-ममलेश्वर की दूरी करीब 70 किलोमीटर है और इंदौर दो ज्योतिर्लिंग के बीच में है। 2028 में उज्जैन में सिंहस्थ का मेला लगने वाला है, तब तक उज्जैन और इंदौर दोनों ही नए स्वरूप जाएंगे।
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