अग्नि आलोक
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भित्ति और भूख !

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चंद्रशेखर शर्मा

भित्ति यानी दीवार। दीवार से कौन परिचित नहीं। पुराने जमाने में भित्ति चित्र होते थे। जाहिर है तब कैनवास, कूची और मकान आदि ईजाद न हुए होंगे। सो तब का गुफा मानव अपनी कला या अन्य अभिव्यक्ति या बात को तब उपलब्ध साधनों से अभिव्यक्त करता था। वो कहलाए भित्ति चित्र।

लेकिन अब ? अब तो सब सुलभ है। कूची, रंग, मकान सब और यदि चित्र बनाना न आता हो तो रेडीमेड कलाचित्र या पेंटिंग्स भी ! अब तो तमाम पेंट कम्पनियां टीवी पर महंगे विज्ञापन देती हैं और कहती हैं अपने घर की दीवारों को हमारी कम्पनी के रंगों से सजाइए ! जाहिर है अपने घर को सजाने की चाह किसे नहीं होती ?

एक होती है भूख। इसके कई प्रकार हैं। देखा जाए तो भूख से ही सृष्टि और सारा संसार संचालित है। उधर, कहते हैं कि दुनिया की तमाम अच्छी बातें बहुत पहले ही कही जा चुकी हैं ! फिर भी उनकी अहमियत और कीमत आज भी वैसी ही है। खासकर लिखने-पढ़ने के शौकीनों और सुरुचि सम्पन्न लोगों की निगाहों में। पता नहीं क्यों यह हुआ कि स्टेट प्रेस क्लब के प्रतिष्ठा प्रसंग के तहत आयोजित तीन दिनी भारतीय पत्रकारिता महोत्सव के दौरान रविन्द्र नाट्य गृह के परिसर में लगे उस स्टॉल पर नजर गयी तो मैं खुद को उसका मुआयना करने से रोक नहीं पाया !

वहां घर की दीवारों को सजाने के लिए ऐसी ही अच्छी बातों को पोस्टर्स आदि के रूप में बहुत कलात्मक तरीके से प्रस्तुत किया गया है। जी हां, वो वहां विक्रय के लिए रखी गयी हैं और आप चाहें तो उन्हें खरीद भी सकते हैं, लेकिन उनको पढ़ना-निहारना मुफ्त है। बेशक उनको मोहक रंगों और कलाकारी के परिश्रम से तैयार किया गया है। अलबत्ता निगाह सबसे पहले और सबसे ज्यादा उन अच्छी बातों या कोट्स पर जाती है जो उन पर दर्ज है। यकीन न हो तो आप भी निहार देखिए। पढ़ने-लिखने वालों के अलावा ऐसी बातों की भूख बेशुमार दीगर लोगों को भी होती है। दरअसल उनको देखने के बाद बहुत मन हुआ कि इनसे घर की दीवारों को सजाया जाए। यों यह स्टॉल आयोजक स्टेट प्रेस क्लब की सुरुचि का भी पता देता है ! महोत्सव जारी है और कल उसका समापन होगा।
चंद्रशेखर शर्मा

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