अग्नि आलोक
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देह मेरी हल्दी तेरे नाम की

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देह मेरी
हल्दी तेरे नाम की
हाथ मेरे
मेंहदी तेरे नाम की
मॉंग मेरी
सिंदूर तेरे नाम का
माथा मेरा
बिंदिया तेरे नाम की
गला मेरा
मंगलसूत्र तेरे नाम का
हाथ मेरे
चूड़ी तेरे नाम की
पैर मेरे
बिछुए तेरे नाम के
और हॉं
बड़े बूढ़ों के पॉंव मैं छूती हूँ
और
‘अखण्ड सौभाग्यवती भवः’
आशीर्वाद मात्र तुम्हें
वट सावित्री का व्रत मेरा
और जीवन का वरदान तुम्हें
घर की चिंता करनेवाली मैं
और दरवाज़े पर नेमप्लेट तुम्हारी
नाम मेरा
पर उसके पहले पहचान मात्र तुम्हारी
इतना ही नहीं
पेट मेरा
रक्त मेरा
दूध भी मेरा
और बच्चे
बच्चे तेरे नाम के
मेरा सब कुछ
सब तेरे नाम पर
नहीं…
कोई विवाद नहीं है
और हॉं
ग़ुस्सा भी मत होओ
अत्यंत विनम्रतापूर्वक
बस एक प्रश्न करती हूँ
बस इतना ही बताओ
तुम्हारे पास क्या है
मेरे नाम पर?

‘लोकायत’ के पेज पर वायरल कविता का-मंजुल भारद्वाज द्वारा किया गया अनुवाद।

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