पवन कुमार
_गंगा महज एक विशालकाय नदी है, ये वैसी ही एक नदी है जैसे एशिया में आमूर, ह्वांगहो, यमुना, कावेरी, नर्मदा सिन्धु, यांग्त्सी, मेकोग और अफ्रीकी भू-भाग में नील, कांगो, नाइजर, जाम्बेजी व उत्तरी अमेरिका में मिसीसिपी, हडसन, डेलावेअर, मैकेंजी नदी और दक्षिण अमेरिका – आमेजन यूरोपीय भू-भाग में – वोल्गा, टेम्स और यूराल ऑस्ट्रेलिया में मर्रे डार्लिंग…मात्र गंगा को छोड़कर ये नदियां “मां” की भूमिका में नहीं हैं न ही पांखड के चरमोत्कर्ष में फंसी हैं.. इसलिए साफ हैं अविरल हैं…गंगा मां है इसलिए आज यह मां अपने मोक्ष के लिए आपकी ओर देख रही है._
गंगा आपके पापों को मुक्त कर पा रही है या नहीं इस बात का वैज्ञानिक आधार तो मेरे पास नहीं है लेकिन यह कहने व लिखने का आधार व तर्क है मेरे पास कि हम सब ने एक नदी को मां बनाकर उसका जितना शोषण किया है, ऐसा कहीं और किसी नदी के साथ नहीं हुआ।
गंगा के नाम पर “धन-धर्म-पाखंड-भ्रष्टाचार” का जो नंगापन विगत सैकड़ों सालों से चला आ रहा है, उसने इस खूबसूरत जीवनदायिनी नदी को मार दिया है। गंगा अब महज नदी नहीं है ..वह अपने ही नाम पर हो रहे, हो चुके भ्रष्टाचार के बोझ को ढो रही है…गंगा को आपसे मोक्ष की आस है।
गंगा के नाम पर केंद्र ने 2014 से लेकर अब तक गंगा सफाई में 3475.46 करोड़ रुपये खर्च किए। बीते वित्तीय वर्ष में 1625.11 करोड़ रुपये खर्च हो गये लेकिन सरकार को ये नहीं पता कि अब तक गंगा कितने प्रतिशत साफ हुई है!!… लेकिन गंगा खामोश है क्योंकि वह मां है..!! ग्रेटर नोएडा के रामवीर सिंह ने एक आरटीआई लगाई।
जवाब भी आया। जल संसाधन मंत्रालय ने कह दिया कि गंगा की सफाई तो निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है। गंगा को 2020 तक पूरी तरह से साफ करने की योजना है। मंत्रालय ने आरटीआई के जवाब में कहा कि नमामी गंगे कार्यक्रम के तहत अब तक 100 सीवेज ढांचे और एसटीपी परियोजनाओं को मंजूरी दी जा चुकी है।
इनमें से 20 परियोजनाएं पूरी हो चुकी हैं, अन्य में काम चल रहा है…और अब 2022 चल रहा है और “नमामि गंगे” अभियान में विशिष्ट टाइप का स्नान चल रहा है। गंगा आज भी सीवेज और फैक्ट्रियों का कचरा ढो रही है और धर्म ढोने का भारत उस पर पहले से ही था।
आरटीआई में बताया गया कि केंद्र और राज्यों के कार्यक्रम के तहत 2014 से अब तक कुल 3475.46 करोड़ रुपये 2014 से खर्च किए गए हैं जबकि 5298.22 करोड़ रुपये जारी किए गए। इसमें 2014-15 में 170.99 करोड़ रुपये, 2015-16 में 602.60 करोड़ रुपये, 2016-17 में 1062.81 करोड़ रुपये और सर्वाधिक 2017-18 में 1625.11 करोड़ रुपये खर्च किए गए।
अब गंगा सफाई अभियान का बजट 20 हजार करोड़ हो गया है लेकिन गंगा कितनी साफ हुई पता नहीं.
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गंगा को साफ करने में गंगा नदी को साफ करने में कितना पैसा खर्च हुआ है इसका हिसाब नेशनल गंगा क्लीन मिशन के महानिदेशक से मांगा है। इसके साथ ही यूपी में जिन शहरों से गंगा गुजरी हैं, वहां संचालित एसटीपी से कितने ड्रेनेज जोड़े गए हैं।
इसकी जानकारी मुहैया कराने के लिए यू पी जल निगम को निर्देश दिया है। यह आदेश जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायमूर्ति की अगुवाई वाली तीन जजों की पीठ ने दिया है। इसके पहले कोर्ट ने मामले से जुड़े पक्षकारों से रिपोर्ट जाननी चाही। रिपोर्ट न पेश होने पर नाराजगी जाहिर की।
अगर थोड़ी सी भी संवेदना शरीर के किसी कोने में शेष हो तो प्रोफेसर अग्रवाल को याद करिएगा…वह जीवन भर मां गंगा के लिए संघर्ष करते रहे.
प्रो. अग्रवाल ने 2008 में 13 जून से 30 जून तक उत्तरकाशी में गंंगा के लिए पहली बार अनशन किया। इसके बाद 14 जनवरी 2009 से 20 फरवरी 2009 तक पूज्य अग्रवाल जी अनशन पर रहे।
तीसरी बार मातृसदन जगजीतपुर कनखल में 20 जुलाई से 22 अगस्त 2010 में 28 दिन अनशन किया।
प्रो0 अग्रवाल ने अपने अंतिम अनशन पर “मां गंगा के पुत्र नरेंद्र मोदी” को लगातार खत लिखे लेकिन एक का भी जवाब न आया… मुझे लगता है कि उनका अंतिम खत आप सभी को पढ़ना चाहिए.
“मा० प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी,
मैंने गंगा सफाई अभियान को लेकर आपको कई पत्र लिखे, लेकिन अभी तक इस संबंध में कोई जवाब नहीं मिला है। मुझे उम्मीद थी कि प्रधानमंत्री बनने के बाद आप गंगा सफाई पर गहराई से विचार करेंगे, क्योंकि आपने 2014 में चुनाव प्रचार के दौरान बनारस में कहा था कि गंगा जी ने आपको उनकी सेवा के लिए बुलाया है।
…मुझे उम्मीद थी कि आप आगे बढ़कर एक नई पहल करेंगे। ‘प्रधानमंत्री जी आपने गंगा सफाई को लेकर एक अलग मंत्रालय भी बनाया, लेकिन इस बात का अफसोस है कि पिछले साढ़े चार साल में कोई प्रगति देखने को नहीं मिली।
अभी तक आपने सिर्फ गंगा जी द्वारा लाभ अर्जित करने वाले बिंदुओं की ओर ही ध्यान दिया है। … तीन अगस्त 2018 को उमा भारतीजी मुझसे मिलने पहुंची थीं। उन्होंने फोन पर मेरी गडकरीजी से बात कराई थी लेकिन गंगा सफाई के मुद्दे पर मुझे आप से जवाब की अपेक्षा थी।
गंगाजी के लिए मुझे अपनी जान देने में कोई समस्या नहीं है, वह मेरे जीवन की प्राथमिकता हैं। मैं आइआइटी में प्रोफेसर था और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सदस्य के साथ-साथ गंगाजी से संबंधित सरकारी संगठनों के सदस्य था।
विभिन्न पदों पर अपने अनुभवों के आधार पर मैं कह सकता हूं कि पिछले चार साल में आपकी सरकार की ओर से गंगा की भलाई के लिए एक काम भी नहीं किया गया है। मैं उमा भारती जी के माध्यम से आपको पत्र भेज रहा हूं और फिर से दोहराता हूं कि मेरे जिक्र किए गए 4 बिंदुओं पर गंभीरता से विचार करते हुए कार्य किया जाए …
चूंकि मुझे 13 जून 2018 तक आपकी तरफ से कोई जवाब नहीं मिला इसलिए मैंने 22 जून 2018 से फिर से उपवास प्रारंभ कर दिया है।’
आपका : जी. डी. अग्रवाल.
स्वामी सानंद यानी प्रो. अग्रवाल की गंगा मां के मोक्ष के लिए चार मांगें थीं-
० केंद्र गंगा और उसकी सहायक नदियां अलकनंदा, धौलिगंगा, नंदाकिनी, पिंडर और मंदाकिनी नदियों पर में बनने वाली जल विद्युत परियोजनाओं को तुरंत बंद करे।
० गंगा के प्रति समर्पित लोगों की गंगा भक्त परिषद बनाई जाए।
० गंगा में हो रहा खनन रोका जाए।
० केंद्र सरकार संसद में गंगा रक्षा के लिए प्रस्तावित गंगा अधिनियम, 2012 पास कराए।
प्रोफेसर अग्रवाल को एक भी खत का जवाब न मिला। अंतिम खत का भी नहीं…गंगा पुत्र अभी भी गंगा के नाम पर कुलांचें भर रहा है. प्रोफेसर अग्रवाल गंगा के लिए गंगा की गोद में समा चुके हैं।
(चेतना विकास मिशन)