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कांवड़ रूट पर ‘नेमप्लेट’ वाला आदेश ‘सबका साथ’ की भावना के खिलाफ

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उत्तर प्रदेश सरकार ने कांवड़ यात्रा के दौरान इस रूट की दुकानों पर मालिकों के नाम प्रदर्शित करने का आदेश दिया है। इस फैसले को लेकर सियासी घमासान छिड़ा हुआ है। हालांकि, इस आदेश के पीछे तर्क यह दिया गया है कि कांवरियों को ये पता रहे कि वो जो कुछ भी खाने-पीने की चीजें ले रहे उस दुकानदार का नाम क्या है। जानिए क्यों विपक्षी पार्टियां इस फैसला का विरोध कर रहे।

 स्वामीनाथन एस अंकलेसरिया अय्यर
कांवड़िए शिव के उपासक होते हैं जो गंगा जल लाने के लिए गंगोत्री और हरिद्वार जाते हैं और अपने स्थानीय शिव मंदिरों में ले जाते हैं। यह यात्रा पिछले कुछ वर्षों में काफी लोकप्रिय हो रही है और अब इसमें 12 मिलियन कांवड़िए आते हैं। इस साल, कई सड़कों को बंद करने के साथ-साथ, उत्तर प्रदेश सरकार ने कांवड़ियों के मार्गों पर सभी दुकानदारों को अपनी दुकानों पर अपना नाम चिपकाने का निर्देश दिया है। एक पुलिस अधिकारी ने बताया कि इसका उद्देश्य कांवड़ियों के मन में ‘किसी भी तरह की उलझन’ को रोकना है। और यह उलझन क्या है? सरकार को चिंता है कि कांवड़िए अनजाने में किसी मुस्लिम की दुकान पर खाना खा सकते हैं। यही वजह है कि कांवड़ यात्रा के रूट पर दुकान किसकी है, उसके मालिक मुस्लिम हैं या हिंदू, ये दिखाने के लिए नाम प्रदर्शित करना जरूरी है। ऐसा न करने वाली दुकानों को बंद किया जा सकता है। बुलडोजर से ध्वस्तीकरण के मामले में राज्य सरकार के पिछले रिकॉर्ड को देखते हुए, यह कोई बेकार की धमकी नहीं है।

यूपी सरकार के फैसले पर क्यों उठे सवाल

संविधान कहता है कि भारत एक ऐसा राज्य है जहां धर्म, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जा सकता। यह किसी भी भारतीय को कहीं भी व्यवसाय शुरू करने के अधिकार की गारंटी भी देता है। हरिद्वार के हिंदू संतों का बहुत बड़ा राजनीतिक प्रभाव है, लेकिन इससे पहले कभी भी राज्य सरकार ने ऐसा कोई नियम नहीं बनाया। जिसके तहत सैकड़ों किलोमीटर लंबे कांवड़ियों के मार्गों पर गैर-हिंदुओं को दुकानें चलाने के लिए बहिष्कृत किया गया हो।

मुझे कट्टर लिबरल लोगों के आरोप पसंद नहीं कि बीजेपी हिटलरवादी है। फिर भी, मुझे लिबरल मित्रों से सहमत होना चाहिए कि यूपी सरकार के हालिया निर्देश में यहूदी दुकानों को चिह्नित करने के साथ दुर्भाग्यपूर्ण समानताएं हैं। इसी के कारण 9 नवंबर, 1938 को कुख्यात ‘क्रिस्टलनाच्ट’ (Kristallnacht) हुआ, जब नाजी निगरानीकर्ताओं ने जर्मनी भर में यहूदी दुकानों पर हमला किया। दुकानों की खिड़कियां तोड़ दीं और सामान लूट लिया। यह हिटलर के ‘फाइनल सॉल्यूशन’ की शुरुआत थी।

धर्म से दुकान की पहचान तो क्या होगा?

एक बार जब यूपी की हर दुकान धर्म से पहचानी जाने लगेगी, तो यह बहिष्कृत हो जाएगी। ये निगरानी करने वालों के हमलों का प्रतीक बन जाएगी। मुजफ्फरनगर के बघरा आश्रम के प्रमुख स्वामी यशवीर का कहना है कि जो मुसलमान अपनी दुकानों पर हिंदू नाम या हिंदू देवताओं के नाम और फोटो का इस्तेमाल करते हैं, वे ग्राहकों को गुमराह करने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की है, जिसमें सभी मुस्लिम दुकानदारों को नए निर्देश का पालन करने या फिर परिणाम भुगतने की चेतावनी दी है। उनका कहना है कि अगर राज्य सरकार सात दिनों के भीतर उन लोगों के खिलाफ कार्रवाई नहीं करती है, जो अपना नाम दुकानों पर नहीं देंगे तो वह और उनके अनुयायी यह सुनिश्चित करेंगे कि ऐसी दुकानें बंद हों। उन्होंने आगे ये भी ऐलान किया कि ऐसी कार्रवाई केवल कांवड़ियों के जुलूस के दौरान ही नहीं, बल्कि हमेशा के लिए जरूरी है।

संवैधानिक मानदंडों का उल्लंघन

इस तरह के बयान और धमकियां संवैधानिक मानदंडों का उल्लंघन हैं। एक सच्चे धर्मनिरपेक्ष राज्य में, सरकारें ऐसे भाषण देने वालों को गिरफ्तार करती हैं या कम से कम चेतावनी देती हैं कि वे ऐसा न करें। लेकिन यूपी में, यह आदेश पहले ही लागू हो चुका है और खाने-पीने की दुकानों और रेहड़ी-पटरी वालों पर नाम बोर्ड लगे हुए हैं। यह धारणा कि किसी धार्मिक समूह का व्यवसाय पर मालिकाना हक है और बेतुकी लगती है।

मुस्लिम फैमिली के हाथ ये दिग्गज कंपनियां

हिमालय ड्रग कंपनी, जिसका नाम अब हिमालय वेलनेस कंपनी रखा गया है, एक बहुराष्ट्रीय कंपनी है। इसकी दुनिया भर में ब्रांच हैं और यह भारत की आयुर्वेदिक दवाओं की सबसे बड़ी निर्यातक है। इसे एक मुस्लिम परिवार, मनल की ओर से चलाया जाता है। यूसुफ हामिद ने सिप्ला दवा कंपनी को न केवल फेमस बनाया बल्कि पश्चिमी बहुराष्ट्रीय कंपनियों की तुलना में बेहद सस्ते रेट पर एंटी एचआईवी दवा उपलब्ध कराई। इस दवा के रेट अन्य दवाओं की कीमत का करीब दसवां हिस्सा है। एक अन्य मुस्लिम ग्रुप, खोराकीवाला, वॉकहार्ट चलाता है, जो एक शीर्ष भारतीय दवा कंपनी है। क्या चरमपंथी यह मांग कर सकते हैं कि कंपनियों को अपने सभी उत्पादों पर अपने मुस्लिम मालिकों के नाम डालने के लिए मजबूर किया जाए ताकि हिंदुओं को उनकी दवाइयां खरीदने से धार्मिक ‘प्रदूषण’ का सामना न करना पड़े?

बीजेपी के ‘सबका साथ-सबका विकास’ का क्या होगा

ईसाई मिशनरी स्कूलों की प्रतिष्ठा के कारण, भारत में सेंट जॉन्स स्कूल या मदर मैरी कॉन्वेंट स्कूल जैसे नाम वाले स्कूलों की बाढ़ आ गई है। इनमें से कई हिंदुओं के स्वामित्व में हैं। क्या उन्हें बंद करने के लिए मजबूर किया जाना चाहिए क्योंकि वे ईसाइयों या उस मामले में हिंदू धर्म के लोगों को यह सोचने के लिए गुमराह कर सकते हैं कि वे ईसाईयों की ओर से संचालित हैं? ताजमहल एक शानदार मुस्लिम मकबरा है। टाटा समूह ने इसके नाम को एक ब्रांड के रूप में अपनाया है। यह ताजमहल चाय का उत्पादन करता है और ताजमहल होटलों की एक श्रृंखला चलाता है। क्या हर चाय की थैली और होटल को यह घोषित करना चाहिए कि इसके मालिक पारसी हैं? मुसलमान मोहर्रम पर जुलूस निकालते हैं। क्या मोहर्रम मार्ग पर सभी हिंदू दुकानदारों को ‘भ्रम से बचने के लिए’ दुकानों पर अपना नाम चिपकाने के लिए मजबूर किया जाना चाहिए? क्या ईस्टर पर ईसाई जुलूस पर भी इसी तरह के नियम लागू होने चाहिए? बीजेपी का नारा है ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास’। यह नारा सभी धार्मिक जुलूस और कार्यक्रम पर भी लागू होना चाहिए।

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