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*सप्ताह के दिनों का नामकरण*

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             ~ सुधा सिंह

भूमण्डल एवं अन्तरिक्ष का सूक्ष्म ज्ञान हमारे ऋषि- मुनियों ने प्राप्तकर विश्वको दिया। ब्रह्मगुप्त, आर्यभट, भास्कराचार्य आदि गणितज्ञोंने ग्रहों एवं नक्षत्रों-सम्बन्धी अपूर्वज्ञान प्राप्तकर ज्योतिषविज्ञानके क्षेत्रमें विश्वका मार्गदर्शन किया।

      हमारे ज्योतिर्विदोंने नक्षत्रों, ग्रहों एवं राशियोंका प्रत्यक्ष ज्ञान प्राप्त किया। उनकी गति, उनके परिभ्रमण एवं परिक्रमणके मार्गका अवलोकनकर उनके आधारपर कालगणनाका सिद्धान्त निर्धारित किया। वेद और पुराण इसके साक्षी हैं। विश्वने उन सिद्धान्तोंको कालान्तरमें परखा और सही पाया तथा स्वीकारा।

        यह निर्विवाद सत्य है कि आजका साधनसम्पन्न विज्ञान भी प्राचीन भारतके उस सूक्ष्मतम ज्ञानतक नहीं पहुँच पाया है।

सप्ताह के दिन जिन्हें हम रविवार, सोमवार आदि नामसे पुकारते हैं, क्या किसी वैज्ञानिक आधारपर आधारित हैं? रविवारके बाद सोमवार एवं सोमवारके पश्चात् मंगलवार ही क्यों आता है? क्या आपने कभी इसपर विचार किया ? सम्भवतः आप सोचते होंगे कि यह एक मनगढन्त क्रम है, जो आदिकालसे चला आ रहा है।

     कोई पाश्चात्य सभ्यताप्रेमी यह भी कह सकता है कि वारोंके इस क्रमको हमने पश्चिमसे प्राप्त किया, पर इसमें कोई अत्युक्ति नहीं है कि कैलेण्डरके लिये सारा विश्व भारतका ऋणी है। केवल वार एवं मास ही नहीं, बल्कि घण्टा (आवर्स), मिनट, सेकेण्ड तक भारतीय पंचांगका ही रूप है। 

अथर्ववेद में वारों के नाम एवं क्रम का उल्लेख :

     आदित्यः सोमो भीमश्च तथा बुधबृहस्पतिः।

 भार्गवः शनैश्चरश्चैव एते सप्तदिनाधिपाः॥

       ~अथर्वज्योतिष (९३)

     यह ग्रन्थ कम-से-कम पाँच हजार वर्ष पुराना है, जबकि पश्चिमी देश वारोंके नामोंका प्रयोग दो सहस्र वर्षोंसे कर रहे हैं। अतः निश्चित रूपसे सप्ताहके वारोंका नामकरण संस्कार भारतमें हुआ तथा शेष विश्वने भारतसे ही तत्सम्बन्धी ज्ञान प्राप्त किया।

वारों का क्रम का आधार :

      हमारे ऋषि-मुनियोंने ठोस वैज्ञानिक आधारपर सप्ताहके वारोंका क्रम निर्धारित किया है। पृथ्वी और सूर्यसे घनिष्ठ सम्बन्ध रखनेवाले सात ग्रहोंकी कक्षाओंके अनुसार सात वार निश्चित किये गये हैं, जो सम्पूर्ण विश्वमें प्रचलित हैं। वार शब्द (वासर) दिनका ही संक्षिप्त रूप है। आज भी कई समाचार पत्र रविवारीय अंकके स्थानपर रविवासरीय अंक लिखते हैं। एक अहोरात्र (दिन-रात ) एक वासर अर्थात् एक दिन होता है।

      अहोरात्रसे ही होरा शब्द लिया गया है, जो कालमानकी एक छोटी इकाई है। होरा एक अहोरात्रका २४वाँ भाग होता है, जिसे अँगरेजीमें ऑवर्स कहते हैं। दिन रातमें २४ घण्टे होते हैं। अतः एक होरा एक घण्टे अथवा २/२ घटीके बराबर होता है। इसी होरासे वारोंकी गणना प्रारम्भ हुई।

     यह उल्लेखनीय है कि भारतीय ज्योतिषमें सम्पूर्ण गणना पृथ्वीको केन्द्र मानकर की गयी है, जबकि वास्तवमें सौर-परिवारका केन्द्र सूर्य है, जिसके चारों ओर अपनी-अपनी कक्षाओंमें पृथ्वीसहित समस्त ग्रह परिक्रमण करते हैं, पर भारतीय ज्योतिष दृश्य-स्थितिको स्वीकारता है। पृथ्वीसे देखनेपर विभिन्न राशियोंमेंसे अन्य ग्रहोंकी भाँति सूर्य भी परिक्रमण करता हुआ प्रतीत होता है।

     अतः सूर्यको भी ज्योतिर्विज्ञानमें एक ग्रह मान लिया गया है। अन्तरिक्षमें ग्रहोंकी कक्षाओंकी वास्तविक स्थिति निम्न प्रकार है- 

‘सूर्य, बुध, शुक्र, पृथ्वी, मंगल, गुरु, शनि।’ वास्तवमें यही कक्षा-क्रम सप्ताहके वारोंके क्रमका आधार है। सृष्टिके प्रारम्भिक दिन चैत्र शुक्ल प्रतिपदा रविवारको प्रातः समस्त ग्रह मेषराशिके प्रारम्भिकभाग अश्विनी नक्षत्रपर थे. जैसा कि ‘कालमाधव-ब्रह्मपुराण’ की निम्न पंक्तियोंसे प्रमाणित होता है- 

     चैत्रे मासि जगद् ब्रह्मा ससर्ज प्रथमेऽहनि।

 शुक्लपक्षे समग्रे तत्तदा सूर्योदये सति॥

 प्रवर्तयामास तदा कालस्य गणनामपि।

 ग्रहान्नागानृतून्मासान् वत्सरान्वत्सराधिपान्॥

      उस दिनसे गणनाकर भारतीय ज्योतिर्विदोंने सौर- मण्डलका केन्द्र होनेके कारण सूर्यको प्रथम होराका स्वामी माना। तत्पश्चात् ग्रहोंके दृश्य-कक्षानुसार द्वितीय एवं तृतीय होराका स्वामी क्रमशः शुक्र और बुधको स्वीकारा।

       चन्द्रका मानवजीवनमें महत्त्व होनेके कारण उपग्रह होते हुए भी उसे चतुर्थ होराका अधिपति माना। तत्पश्चात् बायीं क्षितिजसे दाहिनी क्षितिजकी ओर बढ़ते हुए पंचम होराका स्वामी शनि, छठी होराका स्वामी गुरु तथा सातवीं होराका स्वामी मंगलको स्वीकार किया।

      इस प्रकार इन सातों ग्रहोंको होराका अधिपति मानकर प्रत्येक दिन सूर्योदयके समय जिस ग्रहकी होरा होती हैं, उस दिनका नाम उस ग्रहके नामपर रख दिया गया। 

चूँकि एक अहोरात्रमें २४ घण्टे होते हैं अर्थात् २४ होरा होती हैं, अतः दूसरे दिनका नाम २५वीं होराके अधिपतिके नामपर रख दिया गया तथा २५वीं होराको उस दिनकी प्रथम होरा मानकर अगली २५वीं होराके स्वामीके नामपर तृतीय वारका नाम रख दिया गया।

        इसी क्रमसे सातों वारोंका नामकरण-संस्कार एवं क्रमका निर्धारण हुआ। सूर्यसे गणना करनेपर २५वीं होराका स्वामी चन्द्र होता है, अतः रविवारसे अगला दिन सोमवार हुआ। सोमवारकी होराओंकी गणना करनेपर २५वीं होराका स्वामी मंगल आता है। इसी क्रमसे सातों वारोंका क्रम एवं नामका निर्धारण किया गया।

साप्ताहिक वारों के नामकरण की सारणी :

     प्रथम दिनका नाम प्रथम होराधिपतिके नामपर तथा दूसरे दिनका नामकरण उससे २५वीं होराके अधिपति ग्रहके नामपर हुआ।

      अतः २५ में ७ का भाग देनेपर शेष ४ बचते हैं अर्थात् किसी भी दिनकी होरासे ४ तक गिननेपर चौथी होरा जिस ग्रहकी होगी, दूसरे दिनका नाम भी उसी ग्रहके नामपर होगा।

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