हरियाणा के कतलाहेड़ी गांव में फरवरी की एक सुबह है. सर पर लाल रंग के दुपट्टे से पल्लू लिए हाउस-वाइफ नहीं — बल्कि ड्रोन पायलट सीता देवी काम पर जाने के लिए आंगन में खड़े इलेक्ट्रिक ऑटो को स्टार्ट कर रहीं हैं, जिसकी आवाज़ सुनते ही मौहल्ले वाले उन्हें देखने के लिए छतों पर आ गए.
अपने ऑटो में बैठते वक्त उन्होंने कहा, ‘‘जब से दिल्ली से लौटी हूं, गांव वालों को लगता है कि मैंने क्या सीख लिया.’’ यह कहते हुए मुस्कुरा कर‘नमो ड्रोन दीदी’ सीता अपने खेतों की तरफ निकल गईं क्योंकि उनका आज का टारगेट पास के गांव में स्थित दो एकड़ खेत में नैनो-यूरिया के छिड़काव करने का है, यह नाम उन महिला पायलट्स को दिया गया है, जिन्हें नरेंद्र मोदी सरकार की ‘नमो ड्रोन दीदी योजना’ के तहत ट्रेनिंग दी गई है.
ग्रामीण महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने में मदद करने के उद्देश्य से, इस योजना की घोषणा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले साल स्वतंत्रता दिवस के दौरान लाल किले की प्राचीर से की थी और इसे पिछले साल 30 नवंबर को लॉन्च किया गया था, जिसका उद्देश्य स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) की 15,000 महिलाओं को ट्रेनिंग देना और सक्षम बनाना है ताकि वे ड्रोन उड़ाने, डेटा विश्लेषण, ड्रोन के रखरखाव के साथ-साथ के ड्रोन का इस्तेमाल करके कृषि के अलग-अलग कार्यों के लिए भी प्रशिक्षित किया जाएगा, इनमें फसलों की निगरानी, कीटनाशकों और उर्वरकों का छिड़काव और बीज बुआई शामिल है.
डीजीसीए के मुताबिक, ड्रोन चलाने में पारंगत होने के लिए महिलाओं को यहां कुल पांच दिन की कम्पल्सरी ट्रेनिंग के दौरान थियरी, कम्प्यूटर में ड्रोन चलाना, वाइवा और फिर प्रेक्टिक्ल एग्ज़ाम (ड्रोन फ्लाइंग टेस्ट) पास करना ज़रूरी है, जिसके बाद ही उन्हें ड्रोन चलाने का लाइसेंस मिल पाएगा.