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NAPM ने जम्मू-कश्मीर में 6 ‘पर्यावरण रक्षकों’ की त्वरित रिहाई की मांग की

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 260 से अधिक सामाजिक और पर्यावरणीय कार्यकर्ताओं ने जम्मू-कश्मीर में छह कार्यकर्ताओं की जन सुरक्षा अधिनियम (PSA) के तहत गिरफ्तारी का विरोध करते हुए उनकी तुरंत रिहाई और उन पर लगाए गए सभी मामलों को वापस लेने की मांग की है। नेशनल एलायंस ऑफ पीपल्स मूवमेंट्स (NAPM) द्वारा जारी बयान में कहा गया है कि इन कार्यकर्ताओं ने बड़े परियोजनाओं के सामाजिक-पर्यावरणीय प्रभावों और ठोस कचरा प्रबंधन जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों को उठाया था। इस अपील पर 263 से अधिक हस्ताक्षरकर्ताओं ने समर्थन किया है, जो लोकतांत्रिक अधिकारों और न्याय सुनिश्चित करने की आवश्यकता पर जोर देती है।

हिरासत में लिए गए कार्यकर्ताओं में मोहम्मद अब्दुल्ला गुज्जर (सिगड़ी भाटा), नूर दिन (काकरवागन), गुलाम नबी चोप्पन (तृंगी-दछन), मोहम्मद जाफर शेख (नट्टास, डूल) और मोहम्मद रमज़ान (डांगदूरू-दछन) शामिल हैं, जो किश्तवाड़ जिले के ट्रेड यूनियन नेता, ये कार्यकर्ता उन सामाजिक और पर्यावरणीय मुद्दों पर आवाज उठा रहे थे, जो बड़े परियोजनाओं के प्रभाव और ठोस कचरा प्रबंधन से संबंधित हैं।

263 नागरिक संगठनों संस्‍थाओं, व्‍यक्तियों, और संगठन से जुडे में ख्‍यातनाम सामाजिक कार्यकर्ता, शोधकर्ता, शिक्षाविद, पत्रकार, पर्यावरणविद, और विभिन्न पेशों से जुड़े गणमान्‍य शामिल हैं, जो भारत और अन्य देशों से संबंद्ध हैं। बयान पर हस्‍ताक्षर करने वाली संस्‍थाओं में पीयूसीएल (पीपल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज), फ्राइडेज फॉर फ्यूचर इंडिया,  साउथ एशिया नेटवर्क ऑन डैम्स, रिवर्स एंड पीपल (एसएएनडीआरपी), हैजर्ड्स सेंटर, फूड सॉवरेनिटी एलायंस, इंडिया, पेनुरिमाई इयक्कम, बेबाक कलेक्टिव,  देयर इज़ नो अर्थ बी, लेट इंडिया ब्रीद, डब्ल्यूएसएस (यौन हिंसा और राज्य उत्पीड़न के खिलाफ महिलाएं), भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (हैदराबाद इकाई), जम्मू और कश्मीर आरटीआई आंदोलन, हिमालयन अलायंस फॉर वाटर एंड एग्रीकल्चर (एचएडब्ल्यूए), नॉर्थ ईस्ट ह्यूमन राइट्स ऑर्गनाइजेशन आदि मुख्‍य है। ये सभी जम्मू और कश्मीर में सामाजिक और पर्यावरणीय कार्यकर्ताओं के मनमाने गिरफ्तारी के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं।

नेशनल अलायंस ऑफ पीपल्स मूवमेंट्स (NAPM) द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि सरकार का दावा है कि ये लोग ‘राष्ट्रीय महत्व की परियोजनाओं’ में बाधा डाल रहे थे। लेकिन स्थानीय सूत्रों और चिनाब घाटी के कार्यकर्ताओं व पत्रकारों के सोशल मीडिया पोस्ट के अनुसार, ये कार्यकर्ता जलविद्युत परियोजनाओं से जुड़े बुनियादी ढांचे के प्रभाव, पर्यावरणीय उल्लंघन, मुआवजा और पुनर्वास की अनदेखी जैसे मुद्दों पर आवाज उठा रहे थे। उन्होंने आरोप लगाया है कि परियोजनाओं से जुड़े विस्फोटों के कारण स्थानीय मकानों और संपत्तियों को गंभीर क्षति हुई है। साथ ही, निर्माण कार्य ने आसपास की इमारतों की संरचनात्मक सुरक्षा को भी प्रभावित किया है।

प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि यह भी पता चला है कि 22 अन्य लोगों को राज्य की निगरानी में रखा गया है और आशंका है कि उन्हें भी मनमाने ढंग से हिरासत में लिया जा सकता है।

इसके अलावा, 25 वर्षीय युवा जलवायु कार्यकर्ता रहमतुल्लाह (देसा भट्टा, डोडा) को भी PSA के तहत हिरासत में लिया गया है। रहमतुल्लाह ने पर्यावरणीय मुद्दों पर मुखरता से आवाज उठाई थी और एक ठोस कचरा प्रबंधन घोटाले को उजागर किया था। उनके कार्यों ने धन के दुरुपयोग और स्थानीय कचरे के प्रबंधन में लापरवाही को उजागर किया, जो सार्वजनिक स्वास्थ्य और पर्यावरण को प्रभावित कर रहा था।

NAPM का मानना है कि इन कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी, जो स्थानीय पारिस्थितिक तंत्र और लोकतांत्रिक अधिकारों की रक्षा के लिए काम कर रहे थे, मौलिक अधिकारों का दमन है। यह शांतिपूर्ण प्रदर्शन और निर्णय प्रक्रियाओं में सामुदायिक भागीदारी के अधिकार को कमजोर करता है। लोकतंत्र में जागरूक नागरिकों के लिए यह गंभीर चिंता का विषय होना चाहिए। नेशनल अलायंस ऑफ पीपल्स मूवमेंट्स ने मांग की है कि सभी कार्यकर्ताओं को तुरंत रिहा किया जाए और उनके खिलाफ लगाए गए आरोप वापस लिए जाएं। जलविद्युत और बड़ी परियोजनाओं के प्रभावों की स्वतंत्र जांच हो। भ्रष्टाचार के आरोपों की निष्पक्ष जांच हो तथा पर्यावरणीय न्याय सुनिश्चित करते हुए निर्णय प्रक्रियाओं में स्थानीय समुदायों की भागीदारी हो।

NAPM का कहना है कि पर्यावरण और सामाजिक न्याय की रक्षा के लिए उठाई गई आवाज़ें “राष्ट्र विरोधी” नहीं हो सकतीं। ऐसी आवाज़ों को दबाने से लोकतांत्रिक मूल्यों को खतरा पहुंचता है। हमें इन कार्यकर्ताओं के अधिकारों और उनकी न्यायसंगत मांगों के समर्थन में एकजुट होकर खड़ा होना चाहिए।

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