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भारतीय श्रम आन्दोलन के जनक  नारायण मेघाजी लोखंडे

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नारायण लोखंडे जी का जन्म 1848 में पुणे जिले के कन्हेरसर में एक गरीब फूल माली जाति के साधारण परिवार में हुआ था कालांतर में इनका परिवार आजीविका के लिए थाने आ गया यही से लोखंडे ने मैट्रिक की परीक्षा पास की थी परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी न होने के कारण यह उच्च शिक्षा जारी न रख सके और गुजर-बसर के लिए उन्होंने आरंभ में रेलवे के डाक विभाग में नौकरी करनी शुरू कर दी थी.

बाद में यह मुंबई टेक्सटाइल मेल में स्टोर कीपर के रूप में कुछ समय तक कार्य किया यहीं पर लोखंडे जी को मजदूरों की दयनीय स्थिति को समझने का अवसर मिला और वह कामगारों की तमाम समस्याओं से अवगत हुए और उन्होंने खुद ने भी करीब से यह सब महसूस किया था इसके बाद लोखंडे जी ने 1880 में दीनबंधु नामक जनरल के संपादन का दायित्व ग्रहण किया और उसे वह अपनी मृत्यु सन 1897 तक निभाते रहे।इसके बाद सन 1884 में “बॉम्बे हेड एसोसिएशन” नाम से भारत में उन्होंने प्रथम ट्रेड यूनियन की स्थापना की और इसके अध्यक्ष भी रहे 1881 में तत्कालीन अंग्रेजी सरकार ने मजदूरों की मांग व दबाव के चलते कारखाना अधिनियम बनाया लेकिन मजदूर इस अधिनियम से संतुष्ट नहीं थे अंग्रेजी सरकार को 1884 में इस अधिनियम में सुधार के लिए जांच आयोग नियुक्त करना पड़ा था.

एजुकेशन के माध्यम से उन्होंने पहली बार अंग्रेजों से कारखाना अधिनियम में बदलाव करने की बात रखी थी लेकिन उनकी मांगों को सरकार ने खारिज कर दिया था उसी साल लोखंडे ने देश की पहली श्रमिक सभा का आयोजन किया था.

इसमें उन्होंने मजदूरों के लिए रविवार के अवकाश की मांग को उठाया, इसके साथ ही भोजन करने के लिए छुट्टी, काम के घंटे निश्चित करने का प्रस्ताव, काम के लिए किसी तरह की दुर्घटना हो जाने की स्थिति में कामगार को सवेतन छुट्टी और दुर्घटना के कारण किसी श्रमिक की मृत्यु हो जाने की स्थिति में उसके आश्रितों को पेंशन मिलने के प्रस्ताव पर गुहार लगाई गई इन सभी मांगों को लेकर एक याचिका तैयार की गई.

जिसमें 5500 मजदूरों ने हस्ताक्षर किए जैसे याचिका फैक्ट्री कमीशन के सामने पहुंची मिल मालिकों ने विरोध शुरू कर दिया उनकी मिलों में काम करने वाले मजदूरों को क्षमता से दोगुना काम देकर प्रताड़ित किए जाने लगा घर के बच्चों को भी काम में झोंक दिया गया.

जब लोखंडे ने देखा कि उनकी याचिका को सरकार ने नजरअंदाज कर दिया तो उन्होंने पूरे देश में आंदोलन छेड़ दिया जिसमें मिल मजदूरों ने भी उनका साथ दिया था. इसके बाद लोखंडे जी देश के अलग-अलग हिस्सों में गए और श्रमिकों के लिए सभाएं की इनमें सबसे अहम सभा 1890 में मुंबई के रेसकोर्स मैदान में आयोजित हुई जिसमें मुंबई के अलावा आसपास के जिलों से आए करीब 10000 मजदूरों ने हिस्सा लिया इस सभा का असर यह हुआ कि मजदूरों ने मिलों में काम करने से साफ इनकार कर दिया था. आन्दोलन के दबाव में सरकार द्वारा फैक्ट्री श्रम आयोग का गठन किया गया जिसमें श्रमिकों का प्रतिनिधित्व लोखंडे जी ने किया था इसके बाद मजदूरों को भोजन का अवकाश मिलने लगा और काम के घंटे तय हो गए लेकिन साप्ताहिक अवकाश अभी तय होना बाकी था इसके लिए 1890 में एक बार फिर से लोखंडे ने श्रमिक आंदोलन शुरू किया इस संघर्ष में सबसे ज्यादा महिला कर्मचारियों ने भागीदारी दिखाई थी.

तब जाकर 10 जून1890 को रविवार के दिन भारत को पहला साप्ताहिक अवकाश मिला था इसके बाद अंग्रेजों ने 1947 को भारत से विदाई ले ली लेकिन उनका निर्धारित किया गया रविवार अवकाश आज भी दिया जा रहा है भारत सरकार ने साल 2005 में लोखंडे के नाम से डाक टिकट जारी कर उन्हें सम्मान दिया था.

लोखंडे जी ने रविवार का अवकाश मजदूरों के लिए मांगा था ताकि वे एक दिन अपने परिवार और देश की सेवा कर सके 1895 में हिंदुओं और मुसलमानों के बीच दंगों के दौरान उनके काम के लिए “राव बहादुर” की उपाधि से भी उन्हें सम्मानित किया गया था. 9 फरवरी 1897 को मुंबई में मेघा जी की मृत्यु हो गई थी.🧘🏼‍♂️🪷भारतीय श्रमिकों के प्रथम नायक को शत शत सादर नमन.

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