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जजों के व्यवहार पर वकीलों का राष्ट्रव्यापी विद्रोह?

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-सनत कुमार जैन

गाजियाबाद जिला कोर्ट की हालिया घटना ने देशभर में न्यायपालिका और वकीलों के बीच तनावपूर्ण संबंधों को मैदान में लाकर खड़ा कर दिया है। कोर्ट के कमरे में वकीलों पर पुलिस की बर्बरता और जिला जज के रवैये ने वकीलों को उद्देलित कर दिया है। वकीलों के आत्म-सम्मान और सुरक्षा को लेकर गंभीर चिंता जताई जा रही है। इस घटना के विरोध में सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन, इलाहाबाद हाईकोर्ट बार एसोसिएशन और गाजियाबाद बार एसोसिएशन ने आपातकालीन बैठक कर जज के खिलाफ कई कड़े प्रस्ताव पास किए हैं। जज और पुलिस अधिकारियों के खिलाफ जांच की मांग करते हुए आपराधिक अवमानना का केस चलाने की मांग की है। एक याचिका इलाहाबाद हाईकोर्ट में बार एसोसिएशन की ओर से पेश की गई है। वकीलों का आरोप है, जज के निर्देश पर कोर्ट के बंद कमरे में उन्हें पुलिस द्वारा जज की उपस्थिति मे पीटा गया है। इस मारपीट में कई वकील गंभीर रूप से घायल हुए हैं। अधिवक्ताओं ने दावा किया है, उन्हें अपनी बात अदालत में रखने से रोका गया। कोर्ट के अंदर जज ने धमकी दी। बिना शर्त माफी मांगने पर मजबूर किया गया।


सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने इस घटना पर बड़ी मुखरता के साथ न्यायपालिका में कार्यरत जजों के व्यवहार पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा, निचली अदालतों के जज, उच्च अदालतों के प्रभाव में आकर न्यायिक स्वतंत्रता की अवहेलना करते हुए मनमानी कर रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट, हाईकोर्ट से लेकर अब यह जिला न्यायालय के जज भी वकीलों के साथ मनमाने तरीके से व्यवहार कर रहे हैं। देश भर के वकीलों ने न्यायपालिका में अपने अधिकारों की सुरक्षा और सम्मान की मांग उठाना शुरू कर दी है। अधिवक्ताओं का कहना है, न्यायपालिका में वकीलों के अधिकार सुरक्षित नहीं हैं, तो आम लोगों को न्याय मिलेगा इस बात की उम्मीद कैसे की जा सकती है। इस घटना ने न्यायपालिका में बार और जजों के संबंध और समन्वय पर गंभीर प्रश्न खड़े कर दिए हैं। वकीलों की मांग है, उच्च न्यायालय इस मामले की निष्पक्ष जांच कराए। ताकि भविष्य में इस तरह की घटनाओं की पुनरावृत्ति ना हो। इस घटना के बाद कई बार काउंसिल ने न्यायपालिका की कार्यप्रणाली में तत्काल सुधार लाने की मांग की है। पिछले कुछ वर्षों में जिस तरह से सुप्रीम कोर्ट के जजों द्वारा सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ताओं को अपनी बात रखने से रोका जा रहा है। याचिका वापस लेने के लिए दबाव बनाया जाता है। जनहित और अन्य याचिकाओं में जुर्माना लगाया जा रहा है। जमानत जैसे मामलों पर लंबी-लंबी तारीख दी जा रही हैं। सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में जिस तरह का व्यवहार वकीलों के साथ हो रहा था। इसका असर निचली अदालतों तक पहुंच गया है। निचली अदालतों में भ्रष्टाचार बड़ी तेजी के साथ बढ़ रहा है। जांच एजेंसियों कार्यपालिका और और जजों के बीच में एक गठजोड़ बन गया है। जो वकील इस गठजोड़ का हिस्सा नहीं होता है। यदि वह वकील अपना पक्ष पूरे कानूनी तरीके से रखना चाहता है। नियमों के अनुसार काम नहीं होने पर जब विरोध करता है। ऐसी स्थिति में जज साहब नाराज हो जाते हैं। उसके बाद कोर्ट का कहर वकील पर टूटता है। निचली अदालत के जज उसे सबक सिखाने पर उतारू हो जाते हैं। न्यायपालिका में जिस तरह से जजों की मनमानी बढ़ी है। नियम, कानून और संविधान की खुलेआम अवहेलना न्यायलयों में हो रही है। इसका असर अब वकीलों पर भी पड रहा है। गाजियाबाद कोर्ट जैसी स्थिति कई स्थानों पर बनने लगी है। जज अपने आप को भगवान की तरह मानने लगे हैं। ऐसी स्थिति में अब वकीलों का विद्रोह खुलकर सामने आने लगा है। न्यायालय में यदि वादी-प्रतिवादी को समान अवसर नहीं दिए गए। अधिवक्ताओं को मुकदमे से संबंधित बात कहने से रोका गया। अदालत द्वारा मनमाने फैसले दिए जाने के खिलाफ जिस तरह से वकील अब एकजुट होकर विरोध कर रहे हैं। इससे बार और बेंच के बीच एक स्थायी मतभेद देखने को मिल रहे हैं। यह मतभेद न्यायपालिका और न्याय पर अभी तक आम जनता को जो विश्वास था। यदि वह विश्वास नहीं रहेगा, तो ना जज सुरक्षित रहेंगे, ना वकील सुरक्षित रहेंगे। न्यायपालिका के खिलाफ जिस तरह की स्थिति बांग्लादेश और श्रीलंका में देखने को मिली थी, वही स्थिति भारत में भी आ सकती है। इसको ध्यान में रखना जरूरी है। जनता को जब तक विश्वास होता है, तभी तक नियम और कानून का शासन होता है। जब विश्वास खत्म हो जाता है, तो अराजकता फैलने लगती है। इस अराजकता से ना जज बचेंगे और ना वकील बचेंगे। नाही न्यायपालिका का अस्तित्व रहेगा। आम जनता का विश्वास न्यायपालिका पर बना रहे, इसके लिए जजों की भूमिका अति महत्वपूर्ण है। संविधान के अनुसार आम जनता को बेहतर न्याय प्रदान करने की दिशा में कोर्ट आगे बढ़े, तभी विद्रोह को रोका जा सकेगा।

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