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झारखंड में एनडीए का होगा बड़ा नुकसान

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रांची। झारखंड में चार चरणों में होने वाले चुनाव में चौथे, पांचवें, छठे और सातवें चरण के तहत राज्य में 13, 20, 25 मई और 1 जून को मतदान होगा। झारखंड में लोकसभा की कुल 14 सीटें हैं। साल 2019 के लोकसभा चुनाव में एनडीए गठबंधन के आजसू पार्टी को एक और भाजपा को कुल 11 सीटें मिली थी। वहीं कांग्रेस व झामुमो को एक-एक सीट से संतोष करना पड़ा था।

बता दें कि साल 2019 के लोकसभा चुनाव में भी झारखंड में चार चरणों में मतदान हुए थे। वहीं विधानसभा का भी चुनाव इसी साल अक्टूबर-नवंबर में हुआ था। यानी राज्य में लोकसभा चुनाव के चार पांच महीने बाद ही विधानसभा का चुनाव भी होगा।

झारखंड की 14 लोकसभा सीटों में से 8 सीटें सामान्य वर्ग के लिए और 5 सीटें अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए आरक्षित है। अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए आरक्षित 5 लोकसभा सीटों में सिंहभूम, खूंटी, लोहरदगा, राजमहल और दुमका है। वहीं पलामू की एकमात्र सीट अनुसूचित जाति (एससी) के लिए आरक्षित है।

मतदान की तारीखों की बात करें तो सिंहभूमि, खूंटी, लोहरदगा और पलामू में 13 मई, चतरा, हजारीबाग और कोडरमा में 20 मई, रांची, जमशेदपुर, धनबाद और गिरिडीह में 25 मई, वहीं गोड्डा, राजमहल और दुमका में 1 जून को मतदान होगा।

इस चुनाव में राज्य की चार सीटें दुमका, चतरा, धनबाद और कोडरमा के चुनावी गणित पर लोगों की नजर टिकी हुई है।

दुमका

दुमका लोकसभा सीट की बात करें तो यहां झामुमो के नलिन सोरेन और भाजपा की सीता सोरेन में कांटे के संघर्ष की संभावना अधिक दिखती है। दुमका लोकसभा सीट शिबू सोरेन की सीट रही है और भाजपा की सीता सोरेन शिबू सोरेन की बहू हैं जो पारिवारिक नाराज़गी को लेकर हाल ही में झामुमो छोड़कर बीजेपी का दामन थाम लिया था।

सीता सोरेन ने पिछले दिनों न केवल झामुमो के सभी पदों से इस्तीफा दे दिया था, बल्कि विधानसभा से भी त्यागपत्र दे दिया था। ये दिशोम गुरु शिबू सोरेन के बड़े पुत्र स्व. दुर्गा सोरेन की पत्नी और झारखंड के पूर्व सीएम हेमंत सोरेन की भाभी हैं। बताया जाता है कि शिबू सोरेन परिवार को कमज़ोर करने की कूटनीति के तहत भाजपा बहुत पहले से ही सीता सोरेन पर अपना जादू चलाता रहा था। आखिरकार भाजपा को हेमंत सोरेन के सत्ताच्युत होने के बाद और लोकसभा 2024 चुनाव के पहले सफलता मिल ही गई। सीता सोरेने झारखंड मुक्ति मोर्चा की जामा विधानसभा से विधायक थीं।

चतरा

चतरा लोकसभा सीट पर कांग्रेस के केएन त्रिपाठी और भाजपा के कालीचरण सिंह में कांटे की टक्कर की संभावना है। केएन त्रिपाठी और कालीचरण सिंह दोनों सवर्ण हैं। केएन त्रिपाठी जहां ब्राह्मण परिवार के हैं वहीं कालीचरण सिंह भूमिहार परिवार से आते हैं। चतरा लोकसभा सीट से भाजपा ने सांसद सुनील कुमार सिंह का टिकट काट कर कालीचरण सिंह को मौका दिया है। ये झारखंड के चतरा जिले के सोनबीघा गांव के रहनेवाले हैं। ये फिलहाल भाजपा के झारखंड प्रदेश उपाध्यक्ष हैं।

बता दें कि सुनील कुमार सिंह का टिकट कटने से उनके समर्थकों में निराशा है और उनमें मतदान के प्रति उदासीनता देखी जा रही है। इस उदासीनता से संभवतः भाजपा को नुकसान की ज्यादा संभावना है। क्योंकि “लोकतंत्र बचाओ अभियान-2024” के आलोक में राज्य के बुद्धिजीवियों, सामाजिक कार्यकर्ताओं ने क्षेत्र के गांव-गांव जाकर मतदान के महत्व को समझाया था और इंडिया गठबंधन के पक्ष में मताधिकार प्रयोग पर बल दिया था। जिसका असर संभवतः आम मतदाताओं पर देखने को मिल रहा है। वहीं भाजपा के समर्थकों में मतदान के प्रति उदासीनता दिख रही है।

धनबाद

धनबाद लोकसभा सीट से भाजपा ने ढुलू महतो जो गिरिडीह लोकसभा क्षेत्र के बाघमारा विधनसभा क्षेत्र से वर्तमान में विधायक हैं, को अपना प्रत्याशी बनाया है। ढुलू महतो पर विधायक रहते हुए क्षेत्र के विभिन्न थानों में 53 मामले दर्ज हैं, वहीं चार मामलों में इन्हें सजा भी मिली हुई है। एक मामले में अधिकतम डेढ़ साल की सजा हुई है। जबकि 2 साल की सजा पर ही किसी भी जनप्रतिनिधि की सदस्यता रद्द होने का प्रावधान है। इस आधार पर ढुलू महतो की सदस्यता रद्द हो जाना चाहिए थी। तब सवाल उठता है कि ऐसा क्या है कि इनकी सदस्यता आज तक बरकरार है? वहीं दूसरी ओर यह भी सवाल उठता है कि भाजपा आलाकमान ने उनको किस आधार पर धनबाद लोकसभा से अपना उम्मीदवार बनाया है? धनबाद लोकसभा सीट से पशुपतिनाथ सिंह पिछले तीन बार से लगातार सांसद रहे हैं, उन्हें भाजपा ने चलता कर दिया है। भाजपा आलाकमान के इस अप्रत्याशित फैसले से क्षेत्र के भाजपा के नेता, कार्यकर्ता और समर्थक भी भौचक हैं। इसे लेकर क्षेत्र में विरोध के धीमे स्वर सुनने को मिल रहा है। जिसका नुकसान भाजपा को धनबाद लोकसभा सीट पर उठाना पड़ सकता है।

इन राजनीतिक विसंगतियों के बीच इण्डिया गठबंधन ने कांग्रेस से अनुपमा सिंह को अपना उम्मीदवार बनाया है। अनुपमा सिंह वरिष्ठ कांग्रेसी नेता दिवंगत राजेंद्र प्रसाद सिंह की बहू और विधायक अनुप सिंह उर्फ जयमंगल की पत्नी हैं। राजेंद्र प्रसाद सिंह एकीकृत बिहार में दो बार मंत्री रह चुके हैं। वहीं झारखंड में हेमंत सोरेन की सरकार में उप-मुख्यमंत्री सहित ऊर्जा, स्वास्थ्य, वित्त एवं संसदीय कार्य मंत्री भी रहे हैं। वे ट्रेड यूनियन की राजनीति में इंटक के राष्ट्रीय महामंत्री होने के साथ साथ इंडियन माइन वर्कर्स फेडरेशन के अध्यक्ष और राष्ट्रीय कोलियरी मजदूर संघ के केंद्रीय अध्यक्ष सहित कोल इंडिया सुरक्षा परिषद और जेबीसीसीआई के सदस्य भी रहे थे।

ऐसे में राजनीतिक क्षेत्र में राजेंद्र प्रसाद सिंह की सशक्त पहचान का लाभ उनकी बहू को मिलने संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता।

कोडरमा

कोडरमा लोकसभा का चुनाव और भी रोचक बनता जा रहा है। यहां से भाजपा की अन्नपूर्णा देवी की उम्मीदवारी है। वहीं भाकपा-माले से विनोद सिंह इन्डिया गठबंधन के उम्मीदवार हैं। विनोद सिंह बगोदर से वर्तमान में विधायक हैं। बगोदर विधानसभा क्षेत्र से तीन बार विधायक रहे विनोद सिंह एक प्रतिबद्ध नेता के रूप में जाने जाते हैं और उन्हें 2022 में झारखंड विधानसभा में ‘उत्कृष्ट विधायक’ की उपाधि से सम्मानित किया गया था।

अपने पिता शहीद का. महेंद्र सिंह की तरह विनोद का भी जीवन सादगी पूर्ण है। ऐसे में लोगों को विनोद सिंह में महेंद्र सिंह की छवि दिखाई देती है। इसका कारण यह भी है कि विनोद सिंह अपने पिता की तरह आम लोगों की समस्याओं पर समाधान को लेकर लगातार आवाज उठाते रहे हैं। वे केवल अपने विधानसभा क्षेत्र की समस्याओं की ही बात नहीं करते बल्कि जनसरोकार से जुड़े तमाम मुद्दों पर वे मुखर होकर आवाज बुलंद करते हैं।

कहना होगा कि क्षेत्र के लोग विनोद की इन तमाम खूबियों से काफी परिचित है। ऐसे में देखना लाज़मी होगा कि क्षेत्र के मतदाता इनकी खूबियों पर कितना साकारात्मक पहल करते हैं। इतना तो तय है कि मोदी के हिप्नोटिज्म का प्रभाव अगर मतदाताओं पर नहीं हुआ तो इस बार कोडरमा में लाल परचम तो लहराएगा ही राज्य के बाकी सीटों पर भी इसका प्रभाव पड़ेगा।

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