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नीट यूजी की परीक्षा भी भूकंप जैसी ही त्रासदी ?

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डॉ. राज शेखर यादव

रिक्टर स्केल पर 2-3 की तीव्रता वाले भूकंप बहुत बार आते हैं। हम सामान्यतः जान भी नहीं पाते कि भूकंप कब आया। कभी किसी कच्चे घर की दीवार या कोई झोपड़ी गिर जाती है। लेकिन उस पर किसी का ध्यान नहीं जाता। सामान्य जीवन प्रभावित नहीं होता। धीरे-धीरे ऐसी घटनाओं की आदत पड़ जाती है।

5-6 से अधिक तीव्रता वाले भूकंप काफी नुकसान कर सकते हैं। रिक्टर स्केल पर 7 या 8 तीव्रता वाले भूकंप से बड़े स्तर पर हानि होती है। यदि रिक्टर स्केल पर भूकंप की तीव्रता आठ से अधिक हो तो एक बहुत बड़ी त्रासदी घटित होती है। सैकड़ों घर मलबे में बदल जाते हैं। हजारों लोग मारे जाते हैं। लाखों का जीवन प्रभावित होता है। करोड़ों के सपने हमेशा के लिए टूट जाते हैं।

भूकंप का समाचार मीडिया में आता है, स्थानीय प्रशासन तुरंत होता है। राहत और बचाव अभियान शुरू किया जाता है। मलबे में दबे लोगों को निकालकर राहत शिविरों में भेजा जाता है। भूकंप के दो-तीन दिन बाद मीडिया गांव-गांव जाकर भूकंप से हुई हानि का मार्मिक चित्रण करता है।

फिर विपक्ष सरकार को कटघरे में खड़ा करता है। कैसे राहत बचाव समय पर नहीं शुरू हुआ, कैसे अस्पतालों में संसाधन कम थे, कैसे बिना अनुमति के बड़ी-बड़ी इमारत बनने दी गई। कुछ महीनों बाद सरकार कड़े कानून बनाती है। बिल्डिंग्स को भूकंप रोधी बनाने की कवायद शुरू होती है ताकि भविष्य में कभी बड़ा भूकंप आए तो हानि न हो।

नीट यूजी की परीक्षा भी एक ऐसी ही त्रासदी है। स्केल पर मापा जाए तो इसकी तीव्रता आठ से कम न निकलेगी। नीट परीक्षा वाले दिन एक खतरनाक भूकंप आया जिसने हजारों जिंदगियों को प्रभावित किया। बिहार पुलिस ने पांच मई के दिन कहा कि यहां बड़े स्तर पर पेपर लीक हुआ है। लेकिन एनटीए ने उनकी सूचना को नजरंदाज करते हुए कहा कि ये मामूली तो रिक्टर स्केल दो के भूकंप जैसी कोई मामूली चीटिंग की घटना है। इधर बिहार पुलिस ने अपनी जांच जारी रखी। उधर सरकार इसे लगातार खारिज करती रही।

एनटीए ने तो जांच में सहयोग तक न किया। धीरे-धीरे मीडिया में खबरें आने लगी। पता चलने लगा कि पेपर लीक का स्केल बहुत बड़ा है। इसका एपिसेंटर पटना या हजारीबाग हो लेकिन इसका असर कई राज्यों में हुआ है। पीड़ित छात्र सोशल मीडिया में गुहार लगाने लगे। सिसक सिसक कर अपने टूटे हुए सपनों की कहानियां दुनिया को बताते रहे। लेकिन कोई बचाव या राहत नहीं पहुंची। विपक्षियों ने सड़क और संसद में विषय उठाया तो सरकार ने माना कि पेपर लीक हुआ है। लेकिन उसकी तीव्रता चार-पांच से अधिक मानने को अब भी तैयार न थे। कहा गया कि पेपर लीक हुआ है। अब सरकार यह सुनिश्चित करेगी कि भविष्य में किसी परीक्षा के पेपर लीक न हों। सभी आरोपियों को पकड़ा जाएगा, कड़ी सजा दी जाएगी।

सीबीआई को जांच सौंप दी गई, डायरेक्टर जनरल को पद से हटा दिया गया। एनटीए में बड़े सुधारों के लिए उच्च स्तरीय कमेटी भी बना दी गई। लेकिन इस त्रासदी का दंश झेल रहे छात्र और उनके परिजन आज भी राहत और बचाव के लिए एनडीआरएफ (नीट डिजास्टर मैनेजमेंट फोर्स) के पहुंचने की प्रतीक्षा कर रहे हैं। हजारों बच्चों के सपने टूट गए हैं। उनके माता-पिता ने उनकी पढ़ाई-लिखाई के लिए जो कर्ज लिए थे, इस आशा में कि बच्चा डॉक्टर बनेगा तो सब चुका देगा, आज घोर निराशा में डूबे हुए हैं। आने वाले सालों में नीट परीक्षा देने वाले छात्र भी मानसिक अवसाद में हैं। सोच रहे हैं कि वे अब क्या लक्ष्य लेकर पढ़ें? 670 अंक ले भी आएं तो क्या सरकारी कॉलेज मिलेगा?

इन सभी परिवारों की जिंदगी मानो ठहर सी गई है। इन्हें समझ नहीं आ रहा कि इस अंधेरी रात की सुबह कब होगी। पूरा सिस्टम आगे की बात तो कर रहा है लेकिन इस नीट त्रासदी के मलबे में दबे मासूम बच्चों की फिक्र किसी को भी नहीं जिनके कोमल मन लहू-लुहान हैं।उनके क्षत विक्षत सपनो को समेटने वाला कोई हाथ नजर नहीं आता। बहुत से बच्चे शायद अब डॉक्टर बनने का स्वप्न देखना बंद कर देंगे। बन भी गए तो इस त्रासदी को इतने करीब से देखने के बाद आगे चलकर किसी दूसरे देश में पलायन करना पसंद करें। इस देश को शायद इनकी प्रतिभा की आवश्यकता ही नहीं।

(डॉ. राज शेखर यादव यूनाइटेड प्राइवेट क्लिनिक्स एंड हॉस्पिटल्स एसोसिएशन ऑफ राजस्थान के स्टेट कन्वेनर हैं)

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