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पत्र-पत्रिका में भी परिवारवाद -एक विकृत-मनोवृत्ति

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संजय गोस्वामी

आजकल पत्र-पत्रिका में भी परिवारवाद का समावेश हो रहा है जो समाज में एक बुराई और गलत मनोवृत्ति है लेखन सदा ही समाज में सार्थक बदलाव तथा वास्तविक उन्नति का केंद्र रहा हैं। अतः अपने आप को उड़ने का अवसर प्रदान करें। कौन जानता हैं कि कल को आप की मौलिक कविता, सायद आप के अपने कद से भी ऊँची उड़ान भर, समाज के कितने ही लोगों के लिए प्रेरणा का सबक बनें

।लेख को संपादक द्वारा छुपाने के लिए तो बिल्कुल भी नहीं होना चाहिए उसका जबाव देना चाहिए क्योंकि उसकी मेहनत को ध्यान में रख कर खुशी को बाँटना चाहिए कौन कब काम आएगा मालूम नहीं। जिनमें आप भी सम्लित होकर देश की समस्या लोगों के सामने रख सकते हैं लेकिन आज स्व रामधारी सिंह और स्व निराला जैसे कवि क्यों नहीं बन रहें हैं क्योंकि लेखन में उन्हें जगह नहीं मिलता और मंच पर आजकल ऐसा होता है आप बुलाएंगे तो हम भी बुलायेंगे और कविता या कवि क़ोई भी मंच पर चढ़ जाता है और बरसाती मेढकों की तरह टर्र टर्र करते नजर आते हैं जो किसी पद या पार्टी से सम्बंधित होते हैं आज चुनाव आ रहा है और पुनः ऐसे कवियों की बाढ़ आने वाली है यही हाल कुछ पत्रिका में भी है कलम की कीमत आप और हम को छुपाने के लिए तो बिल्कुल भी नहीं मिली।पहले जो कविता थी वो अटलजी को प्रधानमंत्री बना दी और देश की सुरक्षा के लिए ऐ कविता देशवासियों को एक जूनून मिला खासकर ऐ कविता : भारत का शीश झुका लोगे यह मत समझो- अटल बिहारी वाजपेयी की पड़ोसी देश को चेतावनी दी.कलम को हाथ में थामने वाले सभी कविगण हमारे ही नहीं समाज के लिए अति हैं।

जिनमें ऐसी कविता हो जो वास्तविक हो और जनमानस में अपनी छाप छोड़ सके ।जहाँ तक पत्रिकाओ का सवाल है हिंदी में कभी भी ऐसा नहीं करना चाहिए कि अच्छे लेख जो मेहनत से लिखें जाते हैं उन्हें किसी के दबाव में किसी अयोग्य लेखक का लेख बार बार छापते रहना एक उनकी मज़बूरी हो जाती है और परिवार ना होते हुए आपसे उसका पारिवारिक रिश्ता हो जाता है और परिवारवादी है हैसियत उसकी जो ज्यादा समय टिक नहीं सकता है क्योंकि हर समय एक जैसा नहीं होता परिवर्तन संसार का नियम है आपका लेख यदि संपादक को पसंद आता है तो संपादक अपनी सहूलियत या लेखों की संख्या के हिसाब, या लेख के विषय के हिसाब से वो किसी अंक में सम्मिलित कर लेता है.आप किसी पत्रिका के मुख्य कार्यालय में जाकर संपादक से मिलकर अपने लेख का विषय बता सकते हैं अगर उसे पसंद आया तो आपसे लेख एक निश्चित फॉर्मेट में लिख के देने के लिए कहेगा, या हो सकता है आपसे किसी विषय पर लिखने को कहे और निश्चित समय पर देने के लिए कहे.यही तरीका आप अपने लेख को किसी अख़बार में छपवाने के लिए भी इश्तेमाल कर सकते हैं.

अक्सर आपने दैनिक अख़बारों में सम्पादकीय पन्ना होता है, या कोई विशेष दिन निकलने वाला शीर्षक में आप देख सकते हैं की ‘अपने लेख उसके पते पर भेजे’.लेकिन भेजते भेजते आप परेशान और वह छापता ही नहीं क्योंकि वो हमेशा अपने लोगों को घुमफिर कर आ जाता है ऐसे इसमें संपादक मंडल उससे वर्जित है क्योंकि संपादक का अधिकार होता है अपने हिसाब उसे सजाना और रोचक बनाना जो उचित भी है यदि लेख स्तरीय हो लेख छपने का एक और आसान तरीका अगर आप किसी संपादक को जानते हैं तो, उसे आप लिख कर दे दीजिये या ईमेल कर दें अगर उसे पसंद आता है तो उसे छाप सकता हैं लेकिन उसमें बड़े बड़े लेखक छोटे लेखक को अच्छा लेख भी पढ़ते ही नहीं उनका ज्ञान विज्ञान सब रद्दी की टोकरी में चली जाती है आजकल खासकर मानदेय देने वाली अधिकतर पत्रिका में सदियों से परिवारवाद चला आ रहा है जिसे ना तो क़ोई पाठक पढ़ना पसंद करता है नहीं वो खुद क्योंकि वो कभी अपने लड़के या पत्नी के नाम से और माल मिला बाई बाई,

इससे अच्छे लेखक का नुकसान नहीं होता उसे ही नुकसान होता है क्योंकि उसे उसपर निर्भर रहना पड़ता है, अतः हमें अच्छे लेखक को भी जोड़ कर रखना चाहिए क्योंकि पत्रिका में भी संपादक हमेशा नहीं रहता और जब बदल दिए गए तो मोह में दुःख के सिवा कुछ भी हासिल नहीं होगा क्योंकि कहा गया है विद्वान हर जगह पूजनीय है जबकि राजा तो सिर्फ अपने राज में ही पूजनीय है,चलिए मिल कर एक नई उड़ान का सुभारंभ करें कि पत्रिका में किसी तरह का परिवारवाद नहीं होगा सबको मौका मिले मोदी जी का न्यारा सबका साथ,सबका विकास ।

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