पुष्पा गुप्ता
मोदी आजकल अपने चुनावी भाषणों में ज़ोर देकर बात करते हैं कि देश से “भ्रष्टाचार” को ख़त्म करना है, “भ्रष्टाचारियों” को सबक सिखाना है! दिल्ली में भी कई जगह यही बताते हुए बड़े-बड़े होर्डिंग लगे हैं। चुनाव की घोषणा के बाद भी जाँच एजेंसियों द्वारा विपक्षी नेताओं पर कार्रवाई की जा रही है, यह साफ़ है कि यह सब सिर्फ़ चुनाव जीतने के लिए किया जा रहा है।
मोदी-भाजपा के लिए “भ्रष्टाचार” को ख़त्म करने का सबसे क़ारगार तरीका है, ईडी-सीबीआई के ज़रिये धमकी दो और अपनी पार्टी के शामिल करो और इसके बाद भ्रष्टाचारी तुरन्त सदाचारी बन जाता है.
हाल ही में जारी आँकड़ों के अनुसार 2014 के बाद से जाँच एजेंसियों की कार्रवाई के बाद से विपक्ष के 25 बड़े नेता भाजपा में शामिल हुए और उनमें से 23 पर अब कोई कार्रवाई नहीं हो रही। इसमें से 3 केस बन्द हो चुके हैं और 20 केस ठण्डे बस्ते में डाले जा चुके हैं। इसमें अजीत पवार से लेकर प्रफुल्ल पटेल जैसे कई नाम शामिल हैं।
अजीत पवार पर तो ख़ुद मोदी 17,000 हज़ार करोड़ के घोटाले का आरोप लगा चुके हैं। प्रफुल्ल पटेल व नवीन जिन्दल जैसे लोगो के ख़िलाफ़ भाजपा ने 2014 से पहले करोड़ों के भ्रष्टाचार का आरोप लगाया था। इसमें दस नेता कांग्रेस के, चार शिव सेना व एनसीपी के, तीन टीएमसी, दो टीडीपी और एक समाजवादी पार्टी व वाईएसआरसीपी से हैं।
आइए एक बार कुछ नेताओं के नाम और उनके द्वारा किये घोटालों को जान लेते हैं, जो अब भाजपा में शामिल होकर सदाचारी बन चुके हैं।
सुवेन्दु अधिकारी जो पहले तृणमूल कांग्रेस में थे। बीजेपी ने विधानसभा चुनाव के पूरे अभियान में अधिकारी को शारदा चिट फण्ड घोटाले का आरोपी बताया। जैसे ही अधिकारी भाजपा में शामिल हुए उनके ख़िलाफ़ जारी सभी जाँच को रोक दिया गया।
हेमन्त बिस्वा शर्मा जो आज असम के मुख्यमंत्री हैं, यह 2015 में भाजपा में शामिल हुए, इससे पहले यह कांग्रेस में थे। बीजेपी द्वारा इन्हे पानी घोटाले का आरोपी बताते हुए इनके घोटालों पर एक पुस्तिका भी निकाली थी। अब इसी व्यक्ति को भाजपा ने मुख्यमंत्री बना दिया। इनके द्वारा भी किये गये तमाम घोटालों के जाँच को अब रोका जा चुका है।
मुकुल रॉय भी पहले तृणमूल कांग्रेस में शामिल थे। इन्हें भी शारदा चिट घोटाले का आरोपी बताया गया। जब ये बीजेपी में शामिल हुए, उसके बाद यह भी साफ़-सुथरे हो गये। पर नीतीश कुमार की तरह पलटी मारते हुए फिर यह वापस तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गये।
यह फ़ेहरिस्त काफ़ी लम्बी है जैसे: छगन भुजबल, नारायण राणे, प्रेम खाण्डू, नवीन जिन्दल आदि। ये कुछ प्रतिनिधिक नाम थे, जो भाजपा में शामिल होने से पहले भ्रष्टाचारी और भाजपा में शामिल होने के बाद सदाचारी बन गये। भाजपा में शामिल होने से पहले तमाम केन्द्रीय एजेंसियाँ इनके पीछे पड़ी थी और भाजपा में शामिल होने के बाद इनके सारे पाप धुल गये और इनपर जारी सभी जाँचों को रोक दिया गया या ठण्डे बस्ते में डाल दिया गया।
दूसरी तरफ़ यह भी स्पष्ट है कि आज कांग्रेस या तमाम पार्टियाँ इसके ख़िलाफ़ नहीं लड़ सकती। इन तमाम पार्टियों में अवसरवादी-भ्रष्टाचारी नेता भरे पड़े हैं, जो मौका मिलते ही या फिर दबाव बनाये जाने के बाद भाजपा में शामिल हो जाते हैं। एक आँकड़ा बता है कि अब तक क़रीब 80 हज़ार विपक्ष के नेता व कार्यकर्ता भाजपा में शामिल हो चुके हैं। ख़ुद ही सोचिए कि इनसे क्या उम्मीद की जा सकती है!
आज इसका विकल्प सिर्फ़ जनता की जुझारू एकजुटता के ज़रिये ही खड़ा किया जा सकता है। आज सत्ता में बैठी भाजपा पूरी तरह बौखलायी हुई है और किसी भी तरह चुनाव जीतने पर आमादा है। आज देश में तमाम भ्रष्टाचार और घोटालों को क़ानूनी जामा पहनाया जा चुका है। सरकारें पूँजीपतियों के हित में सभी क़ानूनों को तोड़-मरोड़ देती हैं या उनकी धज्जियाँ उड़ाती रहती हैं।
बदले में पूँजीपति वर्ग उनकी पार्टियों को अरबों रुपये चन्दों के रूप में देते हैं। आज भाजपा ही ऐसी पार्टी है जो आज के संकट के दौर में हर तरह के नियमों-क़ानूनों को ताक पर रखकर, हर तरह के साम-दाम-दण्ड-भेद की सहायता लेकर पूँजीपति वर्ग के मुनाफ़े की गिरती दर को पूरा कर सकती है और दूसरी ओर जनता के असन्तोष को जाति-धर्म, मन्दिर-मस्ज़िद, हिन्दू-मुसलमान के नाम पर उलझा सकती है।
स्पष्ट है कि जैसे-जैसे पूँजीवाद का यह संकट बढ़ेगा, भाजपा का चाल-चेहरा-चरित्र भी इसी तरह उजागर होता जायेगा।